- 15 अक्तूबर 2015
आम आदमी के भोजन का अभिन्न हिस्सा मानी जाने वाली अरहर की दाल के दाम आसमान छूने लगे हैं.
पिछले एक साल में क़रीब दो गुने से भी ज़्यादा वृद्धि दर्ज करते हुए अरहर की दाल 200 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है.त्यौहारों के क़रीब आने से दामों में और उछाल आने की आशंका बनी हुई है.
अरहर जिसे तुअर या येलो दाल भी कहा जाता है, की देश में पैदावार मांग के मुक़ाबले काफ़ी कम है और हर साल इसका आयात करना पड़ता है.
इस साल समय रहते दाल का आयात न होने के कारण स्थिति तेज़ी से ख़राब हुई.
क़ीमतों में हुई उछाल में ख़राब मॉनसून भी एक बड़ी वजह है.
पढ़ें विस्तार से
दाल तैयार होने के बाद थोक और फुटकर कारोबारी से होते हुए यह उपभोक्ता को 180 से 200 रुपये के भाव में मिल रही है.
जानकार बताते हैं कि चंद बड़े किसान ही फसल को स्टॉक कर पाते हैं. सारे सूत्र बिचौलियों और बड़े कारोबारियों के हाथ में होते हैं.
दाल चावल विक्रेता मोतीराम वाधवानी कहते हैं, "टाटा, रिलायंस और वॉलमार्ट जैसी बड़ी कंपनियां जब ख़रीदार हो जाती हैं तो दाम ख़ुद ब ख़ुद बढ़ने लगते हैं."
"यदि सरकार बड़े घरानों को बीच से हटा दे तो दाल पुराने रेट पर लौट आएगी. जब तक यह नहीं होगा, विदेश से आने वाली दाल से भी कोई ख़ास अंतर नहीं पड़ने वाला. जो माल आया है, वो पहले इन बड़े लोगों के गोदामों में पहुंच रहा है."
'क्यों उगाएं दाल?'
वो कहते हैं, "मिल और बाज़ार के दूसरे खर्चों को जोड़ने के बाद भाव बहुत से बहुत 70 रुपये होना था, लेकिन ऐसा नहीं है. दामों में भले आग लगी हो, मगर किसान तो आत्महत्या कर रहा है."
दाल कारोबारी शंकर सचदेव के अनुसार, बड़े स्टाकिस्ट जब से इस धंधे में उतरे हैं दाल का गणित गड़बड़ा गया है.
मध्यप्रदेश में पैदावार बढ़ी
पैदावार में 353 किलो प्रति हेक्टेयर की वृद्धि हुई. पिछले साल 981 किलो प्रति हेक्टेयर रिकॉर्ड पैदावार दर्ज की गई.
इस साल अरहर की फसल का रक़बा 58 हज़ार हेक्टेयर ज़्यादा है.
लेकिन यहां भी दालों के दाम आसमान पर हैं. कृषि विभाग के अफ़सर दबी ज़ुबान में होर्डिंग को इसका ज़िम्मेदार ठहराते हैं.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें