मीणा समाज में प्राचीन काल में विवाह से पहले कन्या का मूल्य लेने की परंपरा थी जिसे दापा या चारी कहा जाता था । कमजोर आर्थिक स्थिति वाले माँ-बाप रूपये लेकर अपनी कन्या का विवाह करते थे । उस समय कन्या को बोझ नहीं समझा जाता था । दक्षिण राजस्थान में यह कन्या-विक्रय का कार्य दापा व दक्षिण-पूर्व राजस्थान में चारी के नाम से जाना जाता था । परंतु बर्तमान में शिक्षा एवं दहेज़ के कारण मीणा जाति में ये दोनों प्रथाएं समाप्त होती जा रही हैं ।
दिल्ली भले ही देश का दिल हो, मगर इसके दिल का किसी ने हाल नहीं लिया। पुलिस मुख्यालय, सचिवालय, टाउनहाल और संसद देखने वाले पत्रकारों की भीड़ प्रेस क्लब, नेताओं और नौकरशाहों के आगे पीछे होते हैं। पत्रकारिता से अलग दिल्ली का हाल या असली सूरत देखकर कोई भी कह सकता है कि आज भी दिल्ली उपेक्षित और बदहाल है। बदसूरत और खस्ताहाल दिल्ली कीं पोल खुलती रहती है, फिर भी हमारे नेताओं और नौकरशाहों को शर्म नहीं आती कि देश का दिल दिल्ली है।
शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015
दापा प्रथा
मीणा समाज में प्राचीन काल में विवाह से पहले कन्या का मूल्य लेने की परंपरा थी जिसे दापा या चारी कहा जाता था । कमजोर आर्थिक स्थिति वाले माँ-बाप रूपये लेकर अपनी कन्या का विवाह करते थे । उस समय कन्या को बोझ नहीं समझा जाता था । दक्षिण राजस्थान में यह कन्या-विक्रय का कार्य दापा व दक्षिण-पूर्व राजस्थान में चारी के नाम से जाना जाता था । परंतु बर्तमान में शिक्षा एवं दहेज़ के कारण मीणा जाति में ये दोनों प्रथाएं समाप्त होती जा रही हैं ।
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