7 मार्च 2015
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थिम्पू में होटल ताज के सामने भूटान की स्ट्रीट मार्केट है। जहां भूटान के हस्त शिल्प की झलक मिलती है तथा हस्त शिल्प की बिक्री भी होती है। सभी दुकानदार महिलाएं ही हैं और आगे की कहानी इसी स्ट्रीट से प्रारंभ होती है। मैने देखा की इन दुकानों में विभिन्न तरह से सजाए हुए एवं बिना सजावट के भी "पुरुष लिंग" विक्रय के लिए रखे हुए थे। इस तरह खुले आम दुकानों में सामने रख कर पहली बार मैंने कहीं लिंग बिकते देखे। साथ में घूम रही भारतीय महिलाएं एवं पुरुष देख कर झिझक रहे थे। हमारे यहाँ सेक्स को टैबू समझा जाता है। यह प्रदर्शन की वस्तु नहीं मानी जाती और सेक्स से संबंधित चर्चा भी करना वर्जित समझा जाता है। इस तरह खुले आम लिंगों की बिक्री देख कर मेरी जिज्ञासा बढी और मैने दुकानदारों से इस विषय में चर्चा करना उपयुक्त समझा। उनसे ही सही जानकारी मिल सकती थी।
थिम्पू में होटल ताज के सामने भूटान की स्ट्रीट मार्केट है। जहां भूटान के हस्त शिल्प की झलक मिलती है तथा हस्त शिल्प की बिक्री भी होती है। सभी दुकानदार महिलाएं ही हैं और आगे की कहानी इसी स्ट्रीट से प्रारंभ होती है। मैने देखा की इन दुकानों में विभिन्न तरह से सजाए हुए एवं बिना सजावट के भी "पुरुष लिंग" विक्रय के लिए रखे हुए थे। इस तरह खुले आम दुकानों में सामने रख कर पहली बार मैंने कहीं लिंग बिकते देखे। साथ में घूम रही भारतीय महिलाएं एवं पुरुष देख कर झिझक रहे थे। हमारे यहाँ सेक्स को टैबू समझा जाता है। यह प्रदर्शन की वस्तु नहीं मानी जाती और सेक्स से संबंधित चर्चा भी करना वर्जित समझा जाता है। इस तरह खुले आम लिंगों की बिक्री देख कर मेरी जिज्ञासा बढी और मैने दुकानदारों से इस विषय में चर्चा करना उपयुक्त समझा। उनसे ही सही जानकारी मिल सकती थी।
भूटानी नाम मुझे बड़े कठिन लगे, याद ही नहीं रहते इसलिए दुकानदार का नाम तो
मुझे याद नहीं पर उसने बताया कि उनके यहाँ लिंग की पूजा होती है। प्रतीक के
रुप में छोड़े लिंगविग्रह से लेकर बड़े बड़े लिंग बनाए जाते हैं। आंखों वाले
लिंग एवं मानवाकृति में दाढी मूंछ वाले लिंग बनाए जाते हैं। ड्रेगन जैसे
लिंग भी मिलते है। इन्हें कपड़े आदि पहना कर सजाया जाता है तथा रिबन से
बांधा जाता है, जैसे कोई गिफ़्ट आयटम बांधा जाता है। भूटान में लिंग को सृजन
का कारक एवं रचनात्मक सकारात्मक उर्जा का प्रतीक माना जाता है। प्रत्येक
घर में इसे रखा जाता है। घर के द्वार के दोनों तरफ़ लिंग चित्रित किए जाते
हैं। इनके चित्र बड़े ही कलात्मक एवं सुंदर ढंग से चटक रंगों से तैयार किए
जाते हैं। इन्हें सुख समृद्धि का द्योतक माना जाता है। भूटानी लिंग को अपने
घरों में इसलिए टांगते हैं कि बुरी आत्माओं से बचाव होता रहे एवं मर्दों
में सेक्स की क्षमता में इजाफ़ा हो।
लिंग पूजन तो भारत में लगभग 8 वीं 9 वीं शताब्दी से हो रहा है। हमारे यहां
लिंग योनिपीठ में स्थापित होता है। लिंग एवं योनि दोनों की ही पूजा होती
है। इसके साथ ही वाममार्ग में जननांगों की पूजा का विशेष महत्व है। पंच
मकारों में मैथुन को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है तथा इसे मोक्ष का साधन
माना गया है। "मद्यं मांसं मीनं मुद्रां मैथुनं एव च, ऐते पंचमकार:
स्योर्मोक्षदे युगे युगे।" भूटान हमारा पड़ोसी देश है जो हमारी धरती से भी
जुड़ा हुआ है। किसी जमाने में सुदूर देशों से भी विद्याथी, विद्याध्ययन के
लिए भारत आते थे। ऐसे में यहाँ के संस्कारो एवं संस्कृति का भी विशेष
प्रभाव उन पर पड़ता ही होगा और वाममार्गी लिंग पूजन इसी रास्ते से भूटान
पहुंचा होगा। ऐसी मेरी मान्यता है।
यहाँ से खोज-बीन आगे बढ़ती है तो पता चलता है कि मनुष्य ने सेक्स के जरिए
मोक्ष का मार्ग ढूंढने का प्रयास किया। मोक्ष मिला या नहीं। इसकी तो कहीं
जानकारी नहीं मिलती पर सेक्सजनित रोगो से परलोक अवश्य सिधार गए होगें।
वाममार्गियों से लेकर आचार्य रजनीश तक ने सेक्स के माध्यम से मोक्ष का
मार्ग ढूंढने का प्रयास किया और इस पर खुली चर्चा भी की। संभोग से समाधि तक
उनका प्रवचन भी काफ़ी प्रसिद्ध रहा तथा युवाओं में यह प्रवचन चर्चित भी
रहा। ऐसे ही एक संत 500 वर्ष पूर्व भूटान में भी हुए। भूटानी संत द्रुकपा
कुनले का भी मानना था कि सेक्स के माध्यम से मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता
है। कहते हैं इस संत ने 5000 महिलाओं से यौन संबंध स्थापित किया।
कुनले का जन्म 1455 में तिब्बत के पश्चिमी क्षेत्र सांग में बौद्ध धर्म के
ग्या वंश के रालुंग मांनेस्ट्री में हुआ था। उसे कुनगा लेगपाई जैगपो के नाम
से भी जाना जाता है। उसके पिता का नांग सो रिन चेन जांग पो थे। दंतकथा के
अनुसार कुनले में दुष्टों को भी रक्षा करने वाले देवताओं में बदल देने की
शक्ति थी। वह मात्र अपने लिंग को छुआकर ऐसा करिश्मा कर दे्ता था। कुनले के
लिंग को थंडरबोल्ड ऑफ फ्लेमिंग विजडम कहा जाता था। कुनले का दावा था कि वह
पुरोहितों के पाखंड को दूर करना चाहता है। वह शराब पीकर मस्त रहने के
समर्थक था। दुनिया के कई देशों से महिलाएं उसका आशीर्वाद पाने के लिए इस
विचित्र बौद्ध संन्यासी के मठ में आती थीं। उसने बहुत ही कम समय में बड़ी
ख्याति प्राप्त कर ली थी। संन्यासी कुनले के उपदेश का प्रभाव आज भी हमने
भूटान में देखा, यहां विभिन्न तरह के लकड़ी से बने हुए लिंग दिखाई देना
कुनले की ही परम्परा है।
भूटान के लोगो के अनुसार बौद्ध धर्म में जन्म लेकर कुनले ने अपनी एक अलग
शाखा बना ली बौद्ध मत के अन्दर जो कि लिंग कि पूजा किया करते थे। कुनले
सबको एवं खासकर स्त्रियों के साथ सेक्स करके उन्हें आशीर्वाद दिया करता था।
वह तिब्बत, भूटान आदि देशों में घूम घूमकर स्त्री और कन्याओ का कौमार्य
तोड़ता था और सबके साथ सेक्स करता था। उसकी इसी प्रवृत्ति के कारण लोगो ने
उसके सम्मान में उसका एक मंदिर भी बना दिया। कुनले ने एक बुरी, मांसभक्षी
स्त्री के साथ सेक्स कर उसका गर्भ ठहरा दिया था जिसका मंदिर भी कुनले के
साथ ही बनाया गया है।
लोगो के अनुसार कुनले स्त्री प्रेमी था और हमेशा उनका भला चाहता था.. आज भी
भूटान के लोग उसके मंदिर में जाते हैं और वहां भिक्षु उनको पुरुष लिंग से
आशीर्वाद देता है ताकि उनकी सेक्स लाइफ अच्छी चलती रहे। इस तरह हमने भारतीय
वाममार्गी दर्शन का प्रभाव कुनले के माध्यम से भूटान में भी देखा। जो
सेक्स के माध्यम से मोक्ष प्राप्त कराना चाहता था और भूटान में आज भी
पूजनीय है और परम्परा में समाहित होने के कारण यह लिंग पूजा सहत्राब्दियों
तक चलते भी रहेगी। भले ही विदेशियों के लिए भूटान में सार्वजनिक रुप से
लिंग प्रदर्शन कौतुहल का कारक बनता हो परन्तु भूटानियों के लिए सामान्य
जन-जीवन का एक हिस्सा है। जारी है …… आगे पढ़ें
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