नई दिल्ली: श्मशान घाट को जिंदगी की आखिरी मंजिल कहा जाता है। श्मशान की खामोशी में और चिताओं के बीच में की लकडिय़ों की आवाज व डांस आपको चौंका देगा। लेकिन ये सच है। इस श्मशान में एक रात ऐसी जो बेहद खास और रौनक से भरी होती है। क्योंकि ये रात इस श्मशान पर साल में सिर्फ एक बार आती है। इस एक रात में इस श्मशान पर एक साथ चिताएं भी जलती हैं और घुंघरुओं और तेज संगीत के बीच बार डांसर भी थिरकती हैं।
काशी का मशहूर श्मशान जिसकी मान्यता है कि यहां चिता पर लेटने वाले को सीधे मोक्ष मिलता है। ये दुनिया का अकेला ऐसा श्मशान है जहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं होती। जहां लाशों का आना और चिता का जलना कभी नहीं रूकता और जब तक ये लाशे जलती है चिताओं के ठीक करीब डांस होने लगता है। मातम के बीच तेज़ संगीत पर लड़कियां थिरकने लगें और जब मौत की ख़ामोशी डांस की मस्ती में बदल जाए तो फिर चौंकना लाजिमी है।
काशी का मणिकर्णिका घाट जो सदियों से मौत और मोक्ष का भी गवाह बनता आया है में ये रात चैत्र नवरात्र के आठवें दिन को आती है। दरअसल चिताओं के करीब नाच रहीं लड़कियां शहर की बदनाम गलियों की तवायफ होती हैं। पर इन्हें ना तो यहां जबरन लाया जाता है ना ही इन्हें पैसों के दम पर बुलाया जाता है। ये तमाम तवायफें जीते जी मोक्ष हासिल करने आती हैं तांकि अगले जन्म में ये तवायफ न बने। इन्हें यकीन है कि अगर इस एक रात ये जी भरके यूं ही नाचेंगी तो फिर अगले जन्म में इन्हें तवायफ का कलंक नहीं झेलना पड़ेगा। और इस दिन श्मशान के ब
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