कुछ समय पहले पुरुषों के लिंग की लंबाई को लेकर हुए एक अनोखा शोध हुआ था, जिसमें 113 देशों के पुरुषों के लिंग का अध्ययन कर लंबाई और आकार का विश्लेषण किया गया था। इसके मुताबिक ‘साइज’ के मामले में भारत का 110वां (औसत लंबाई 4 इंच) स्थान है। भारतीय लोकजीवन में भांति-भांति की मान्यताएं और लोककथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से कुछ कल्पनाओं पर आधारित होती हैं, जबकि कुछ वास्तविक अथवा उसके करीब होती हैं। डॉ. वेरियर एल्विन ने अपनी पुस्तक ‘मिथ्स ऑफ मिडिल इंडिया’ में मानव अंगों को लेकर विभिन्न वनवासी जातियों की मान्यताओं का उल्लेख किया है। मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग ने भी एल्विन की पुस्तक के अंशों को एक किताब में प्रकाशित किया है। यह हम सभी जानते हैं कि भारत में शिवलिंग के रूप में असल में ‘लिंग’ पूजा ही की जाती है। वैसे भी यौनांग हमेशा से ही व्यक्ति की कल्पना का केन्द्र रहे हैं। लिंग को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां, कल्पनाएं, मान्यताएं प्राचीन काल से ही समाज में व्याप्त हैं। इनका आकार-प्रकार हमेशा से ही जिज्ञासा का विषय रहा है।वहीं दूसरी आदिवासी समुदाय की मान्यताओं में लिंग का साइज तो कल्पनाओं से परे है। ईसाई धर्म प्रचारक बनकर भारत आए वेरियर एल्विन ने इन्हीं अजब-गजब मान्यताओं के अनुसार आदमी के लिंग का साइज मूसल के आकार से लेकर 16 हाथ लंबा बताया है। उल्लेखनीय है कि एल्विन ने आदिवासियों की संस्कृति को काफी करीब से समझा है, उन्होंने इस समुदाय की कोसी नामक एक लड़की से विवाह भी किया था। एल्विन के अनुसार आदिवासी समुदाय में यौनांगों को लेकर कई मान्यताएं और लोक कहानियां सुनने को मिलती है।लिंग से जंगल की सफाई
यदि वर्तमान संदर्भ में देखें तो यह कल्पना की पराकाष्ठा है, लेकिन ऐसी मान्यता है कि पुराने समय में बैगा जनजाति में लोगों का लिंग हाथी की सूंड के समान होता था और उसका उपयोग जंगल की साफ-सफाई के लिए किया जाता था।
इतना लंबा लिंग कि….
गडाबा आदिवासियों की लिंग के बारे में एक अलग ही कहानी है। इस समुदाय में मान्यता है कि पुराने जमाने में लिंग इतना लंबा होता कि लोग उसे कमर में लपेटकर रखते थे। अधिक लंबाई के कारण वह महिलाओं को जल्द ही थका डालता था और वे वयस्क होने पर जल्दी ही मर जाती थीं।
एक औरत के मरने के बाद एक व्यक्ति नई पत्नी ले आया। एक दिन जब वह खूब शराब पीकर आया, उस समय उसकी पत्नी चाकू से आम काट रही थी। वह उसी जगह उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहता था। चूंकि उस समय उसका बेटा वहीं बैठा था अत: उसकी इस बात से स्त्री नाराज हो गई और उसने चाकू से आदमी के लिंग को काट दिया। ऐसा माना जाता है कि तभी से लिंग सामान्य लंबाई में आ गया।
माथे पर लिंग, छाती पर योनि
सुनकर ही आश्चर्य होता है कि किसी व्यक्ति के माथे पर लिंग हो सकता है और वह भी तीन हाथ का। …लेकिन मंडला के गोंड आदिवासियों में जो कहानी प्रचलित है उसके अनुसार पुराने जमाने में आदमी के माथे पर लिंग होता था और वह भी तीन हाथ का। वह हाथी की सूंड की तरह लटका रहता था। इसी तरह औरतों को योनि भी छाती के बीचोबीच हुआ करती थी।
भैरोंपाल नामक व्यक्ति एक बार किसी गांव में शादी में गया। वहां पर उसने अपनी सूंड से कुछ लड़कियों का पीछा किया। इससे एक औरत को गुस्सा आ गया और उसने चाकू से भैरोंपाल के लिंग को काट दिया। वह मुश्किल से चार अंगुल का हिस्सा ही बचा पाया।
माथे पर यह हिस्सा अच्छा नहीं लग रहा था। दुखी होकर वह महादेव के पास पहुंचा और उसे किसी अन्य स्थान पर लगाने की विनती की। तब महादेव ने उसे जांघों के बीच लगा दिया।
कोरापुट के अकरपल्ली समुदाय की मान्यता के मुताबिक एक दिन एक औरत चावल भून रही थी। एक आदमी खेत में हल चलाने जा रहा था। उसने उस औरत से आग मांगी। औरत पैर फैलाकर बैठी थी इस कारण उस आदमी को औरत की योनि दिख गई। आदमी की उस औरत के साथ संभोग की इच्छा हुई। उसने सोचा कि यदि औरत से इजाजत मांगी तो वह निश्चित ही मना कर देगी, इसलिए वह उस औरत के पीछे गया और उसने अपने लिंग को औरत की योनि में प्रवेश करने के लिए भेजा। लिंग के योनि में प्रवेश करने से वह औरत नाराज हो गई और उसने भूसा चलाने वाले करछुल से आदमी के लिंग को दो टुकड़ों में काट दिया।कटा लिंग बीज बन गया । ऐसा माना जाता है कि लिंग का जमीन पर गिरा टुकड़ा बीज बन गया। उस बीज को औरत ने उसे दीमक की बांबी में बो दिया। उससे उस स्थान पर कुकुरमुत्ते का पौधा उग आया। अपनी उत्पत्ति के स्रोत के कारण कुकरमुत्ता हमेशा पतला और सीधा रहता है। कहा जाता है कि उस दिन के बाद से औरतें भी अपने गुप्तांगों को कपड़ों से ढंककर रखती हैं।
बिलहर समुदाय की मान्यता के अनुसार जब धरती पर पहला लड़का पैदा हुआ तो उसकी मां ने उसके लिंग पर गरम तथा ठंडा पानी छिड़का। जब वह लड़का बड़ा होकर पहली बार लड़की के पास संभोग के लिए पहुंचा तो उसे लड़की के शरीर के अंदर गर्मी का अहसास हुआ। शरीर के अंदर की गर्मी के कारण उसके लिंग की चमड़ी सिकुड़ गई।
पनका समुदाय की अलग ही मान्यता है। इसके मुताबिक पुराने जमाने में औरतों की योनि पंद्रह हाथ चौड़ी और पुरुषों का लिंग सोलह हाथ लंबा होता था। उस समय मनुष्य पशुओं की तरह औरतों के साथ संभोग करता था। एक बार एक औरत भट्टी पर लकड़ी के चम्मच से दाल चला रही थी। तभी आदमी दौड़ते हुए आया। वह घोड़े की तरह हिनहिना रहा था। उसने अपने विशाल लिंग को खोल लिया था। हालांकि उसकी औरत भली महिला थी पर उसे अपने पति का व्यवहार पसंद नहीं आया और उसने लकड़ी की करछुल से उसके लिंग पर वार किया। आदमी ने दोनों से अपने हाथों से लिंग को बचाने की कोशिश की पर वह लिंग का दस अंगुल लंबा हिस्सा ही बचा पाया। शेष भाग कट गया।औरत ने कटे भाग को उठाया और आग में झोंक दिया। औरत ने अपने पति को भविष्य के लिए आगाह किया और कहा कि आगे से संभोग लेटकर करना पड़ेगा। उसके बाद योनि की आकृति भी बदल गई। वह गोल स्थान से लंबी और छोटी हो गई। इसके बाद जब आदमी अपने कटे लिंग के साथ औरत के पास गया तो चमड़ी गोल कट गई और वह पलटकर लिंग पर चढ़ गई। इस तरह लिंग की पलटने वाली झिल्ली का जन्म हुआ।
धनवार समुदाय की मान्यता के मुताबिक बोरडोरकोन्हा गांव में हाथी-हथिनी, और औरत तथा आदमी साथ-साथ रहते थे। एक बार गांव के सभी हाथी अपनी कन्या (हथिनी) को लेकर दूसरे गांव में गए, जहां एक विवाह था। उन दिनों आदमी का लिंग मूसल के बराबर और औरतों की योनि ओखली के बराबर होती थी, परंतु आदमियों की तुलना में हाथियों के गुप्तांग बहुत छोटे होते थे।शादी में जाते समय हाथियों ने ग्रामवासियों से उनके लिंग उधार मांगे और कहा कि शादी से लौटने के बाद वे अपने गुप्तांग वापस ले लेंगे। जमानत के तौर पर हाथियों और हथिनियों ने अपने अपने गुप्तांग आदमियों के पास छोड़ दिए। गुप्तांगों की अदला-बदली के बाद हाथियों का दल शादी में चला गया। हाथियों और हथिनियों ने गुप्तांगों को अपने शरीर में स्थापित कर लिया। उन्होंने यह भी सुनिश्चित कर लिया कि आदमियों के गुप्तांग उनके शरीर में इच्छानुसार लगाए और निकाले जा सकते हैं। सभी हाथी बहुत प्रसन्न हुए। दल ने हाथियों और हथनियों के दल को शादी में जाते समय पहाड़ी पर खड़े होकर अच्छी तरह विदा किया।जब हाथियों का दल शादी से वापस आया तो सभी मनुष्य हाथियों के पास अपने अपने गुप्तांग लेने पहुंचे। हाथियों और हथनियों ने बताया कि उन्होंने गुप्तांगों का उपयोग बहुत सावाधानी से किया है, जब हाथी उनके शरीर से आदमी के उधार लिए लिंग को निकालने लगे तो उन्होंने पाया कि मैथुन की उत्तेजना के दौरान जोर से किए गए उपयोग के कारण आदमी का लिंग उनके शरीर में अच्छी तरह जम गया है और बाहर नहीं निकल रहा है। वही स्थिति हथिनियों की भी थी। इस कारण हाथियों और आदमियों के गुप्तांगों का आदान प्रदान संभव नहीं हुआ और इसी कारण आदमियों के गुप्तांग अब छोटे और हाथियों के गुप्तांग बड़े होते हैं।
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