पुस्तकों, हथियारों, कलाकृतियों और चित्रों के संग्रहालय तो आपने देखे होंगे मगर क्या आपने कभी शौचालयों का संग्रहालय देखा है?
भारत
की स्वयंसेवी संस्था सुलभ इंटरनेशनल ने शौचालयों का एक ऐसा संग्रहालय
बनाया है जिसमें शौचालयों और मानव सभ्यता संस्कृति के गहरे रिश्तों को
दिखाया गया है.
यहाँ फ़्रांस के सम्राट लुई
तेरहवें के राजगद्दीनुमा शौचालय से लेकर महारानी विक्टोरिया के शौचालय की
अनुकृति मौजूद है, जिसमें हीरे-जवाहरात लगे हैं.
संग्रहालय
में दिखाई गई जानकारी के अनुसार शौचालयों का इतिहास हड़प्पा और मोहनजोदड़ो
की सभ्यता जितना ही पुराना है. मोहनजोदजड़ो में शौचालय के अवशेष मिले हैं.
मुग़लकाल में अकबर के राजभवन के अलावा राजस्थान के गोलकुंडा सहित कई किलों पर शौचालय बने मिले जो अब भी देखे जा सकते हैं.
इस संग्रहालय में एक ऐसा अमरीकी शौचालय भी है जो दो तलों वाला है. ऊपर के तल में मालिक जाता था और नीचे मज़दूर.
तरह-तरह के शौचालय
संग्रहालय के प्रभारी बागेश्वर झा सभी शौचालयों की बारीक़ियाँ बताते हैं लेकिन लुई तेरहवें की राजगद्दी के पास आकर रुकते हैं.
इस राजगद्दीनुमा कुर्सी के नीचे लगे शौचालय के बारे में उनका कहना है, "दुनिया की यह इकलौती राजगद्दी होगी जिसमें शौचालय लगा है."
लुई तेरहवें के बारे में कहा जाता है कि वह मंत्रियों के साथ गहरे विचार-विमर्श के बीच भी ज़रूरत पड़ने पर शौच कार्य करने लगते थे.
यूरोप और फ्रांस के कई शौचालय और उनके चित्र यहाँ मौजूद हैं. कुछ शौचालय किताबों की शक्ल में हैं तो कुछ मेज़ की तरह.
बुकशेल्फ़ के आकार का भी एक शौचालय है जिसे देखकर अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि ये शौचालय भी हो सकता है.
सेरेमिक्स के शौचालय
तेरहवीं-चौदहवीं सदी में लकड़ी के शौचालयों का प्रचलन बंद होते ही सेरेमिक्स के शौचालय बनने लगे.
झा बताते हैं कि ये मनुष्य के विकास का काल था. जीवन के हर क्षेत्र में प्रयोग हो रहे थे. शौचालय भी इससे अछूता नहीं था.
सेरेमिक्स के डिज़ाइनर शौचालय बने. कुछ शौचालयों में हीरे-जवाहरात भी लगा दिए गए.
ये आराम के साथ-साथ फ़ैशन की वस्तु भी बनने लगी. इसके बाद शौचालय आधुनिक होते चले गए.
मानव
और शौचालयों का संबंध अब भी वैसा ही है. पिछले साल प्रसिद्ध गायक जेनिफ़र
लोपेज़ को उनके पूर्व प्रेमी बेन एफ़्लेक ने जन्मदिन पर महँगा शौचालय उपहार
में दिया.
संग्रहालय में यूरोप में प्रयोग होने
वाले 'रासायनिक शौचालय' हैं, जिनमें मल की सफ़ाई रसायनों से होती है. ये
ऐसा शौचालय है जिसे यात्रा पर भी ले जाया जा सकता है.
पानी डालिए, रसायन डालिए सब कुछ साफ़.
शौचालय में अब तक का सबसे आधुनिक शौचालय भी मौजूद है, जिसे 1993 में अमरीका ने बाज़ार में उतारा.
इंसिनोलेट नाम का ये शौचालय माइक्रोवेव ओवन के सिद्धांत पर काम करता है. इसमें मल की सफ़ाई के लिए पानी की ज़रूरत ही नहीं पड़ती.
बिजली के ज़रिए यह मल को चुटकी भर राख़ में बदल देता है.
विचार कैसे आया?
ऐसा
संग्रहालय बनाने का विचार सुलभ को कैसे आया? इसके बारे में बताया इस
संस्था के अध्यक्ष बिंदेश्वरी पाठक ने, "जब मैं लंदन गया था तो मैडम तुसॉद
का वैक्स म्यूज़ियम देखा. उसी से मुझे एक अनोखा संग्रहालय बनाने की प्रेरणा
मिली."
इसके उद्देश्य के बारे में उनका कहना था,
"कोई भी शौचालय के बारे में बात करना ही नहीं चाहता. साथ ही इस काम में लगे
लोगों को सभी हीनभावना से देखते हैं."
उनके अनुसार ऐसा संग्रहालय बनाने के पीछे कोशिश है कि लोगों को इस बारे में जागरूक किया जाए.
भारत की 60 प्रतिशत से भी अधिक आबादी के पास शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं है. ऐसे में शौचालय संस्कृति के प्रचार-प्रसार से आज भी
|
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मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015
शौचालय का अनोखा सुलभ संग्रहालय
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