एक हिंदू गांव का 'बड़ा भाई' मुसलमान गांव
उत्तर प्रदेश के
ग्रेटर नोएडा का धूल धूसरित और कीचड़ से भरा गांव है तिल बेगमपुर.
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा का ये गांव बुलंदशहर ज़िले
में पड़ता है.
गांव में भाटी राजपूत मुसलमानों का दबदबा है. ये लोग छोटा मोटा काम करके अपना गुज़ारा करते हैं. लेकिन इस गांव की एक ख़ासियत है.यहां के मुस्लिमों को अपने हिंदू अतीत पर काफ़ी गर्व है. इतना ही नहीं ये गांव पारंपरिक तौर पर घोड़ी बछेड़ा गांव के बड़े भाई की भूमिका भी अदा करता रहा है.
किवदंती है कि तिल गांव की स्थापना भाटी राजपूत राजा राव कासान सिंह ने की थी. वे जैसलमेर के राजा राव रणबीर सिंह के बेटे थे.
कासान सिंह ने दिल्ली के सुल्तान रहे अलाउद्दीन ख़िलजी से हार मानने के बाद इस्लाम स्वीकार किया था. ये घटना क़रीब 700 साल पहले हुई.
कासना से है रिश्ता
क़ासिम अली ख़ान बनने से पहले कासान सिंह मौजूदा पश्चिमी उत्तरी प्रदेश के हिस्से पर शासन कर रहे थे. उनकी राजधानी थी कासना (ये नाम उनके नाम पर ही पड़ा). कासना ग्रेटर नोएडा का ही हिस्सा है.माना जाता है कि कासान सिंह ने धर्म परिवर्तन इसलिए किया कि वे ख़िलजी की अदालत में फांसी से बच सकें और अपने छोटे भाई ज्वाला सिंह और नरोत्तम सिंह को इस्लाम अपनाने से बचा सकें.
अपने भाई के एहसान का ख़्याल रखते हुए ज्वाला सिंह और नरोत्तम सिंह ने जीवन भर अपने बड़े भाई को परिवार के सभी सुख दुख में शामिल किया.
धर्म से फ़र्क़ नहीं
एक वक़्त ऐसा आया जब घोड़ी राजपूतों को मंदिर से सटी एक दीवार बनवानी थी. मंदिर से सटा इलाक़ा मुस्लिम परिवारों का क़ब्रिस्तान था. ऐसे में तनातनी हो गई.घोड़ी गांव में पंचायत हुई, जिसमें तिल गांव के मुसलमानों ने घोड़ी गांव के मुसलमानों को क़ब्रिस्तान की जगह छोड़ने को कहा, समस्या का हल निकाला.
उन्होंने बताया, "1310 में ख़िलजी से हारने के बाद रावल भाईयों को ख़िलजी की अदालत में इस्लाम अपनाने को कहा गया. फांसी से बचने के लिए बड़े भाई ने इस्लाम अपना लिया. छोटे भाईयों को माफ़ी मिल गई."
घोड़ी गांव के सूरज पाल सिंह बताते हैं, "तिल हमारे बड़े भाई है, हम तब तक पगड़ी की रस्म नहीं अपनाते जब तक तिल गांव से हमारे लिए पगड़ी नहीं आ जाती."
हिंदू चलन में परिवार के सबसे बुज़ुर्ग सदस्य की मौत पर सबसे बड़े बेटे को पारिवारिक ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है और रिश्तेदारों से पगड़ी ली जाती है.
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