प्रस्तुति- कृति शरण
पुरातत्व संग्रहालय, साँची भारत के राज्य मध्य प्रदेश के साँची में पहाड़ी के नीचे स्थित है। यहाँ उत्खनन से प्राप्त प्राचीन पुरातात्त्विक धरोहर को सहेज कर रखा गया है ताकि आने वाली पीढ़ी उससे परिचित हो सके। जहाँ से पर्यटक प्रवेश टिकिट ख़रीदते हैं, वहीं से संग्रहालय देखने का प्रवेश द्वार है। संग्रहालय प्रत्येक शुक्रवार को बंद रहता है। संग्रहालय विभिन्न वीथिकाओं में विभक्त है।
स्थापना
सांची में उत्खनन के दौरान खोजी गई वस्तुओं को रखने के उद्देश्य से 1919 में ए.एस.आई. के पूर्व महानिदेशक सर जॉन मार्शल द्वारा पहाड़ी की चोटी पर एक छोटा संग्रहालय स्थापित किया गया। बाद में, स्थान की अपर्याप्तता के कारण तथा साथ ही संग्रहालय की वस्तुओं को सुंदरता के साथ प्रदर्शित करने के उद्देश्य से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने सांची स्तूप के नीचे की पहाड़ी पर एक कॉलेज की इमारत को अर्जित किया और वर्ष 1966 में नई इमारत में प्रदर्शित वस्तुओं को स्थानांतरित करवा दिया।विशेषताएँ
- इस संग्रहालय में एक मुख्य कक्ष और चार दीर्घाएं हैं। अधिकतर वस्तुएं सांची से प्राप्त की गई हैं और कुछ इसके पड़ोसी क्षेत्रों अर्थात् गुलगांव, विदिशा, मुरेलखुर्द और ग्यारसपुर से प्राप्त की गई हैं। वर्तमान में दीर्घा संख्या 1 से 4 तक चार दीर्घाएं हैं और एक बरामदा है जिसमें नौ वस्तुएं प्रदर्शित हैं।
 - सांची के खंडहरों से ही और कुछ आसपास के क्षेत्र से संग्रहित की गई तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से मध्य काल तक की 16 उत्कृष्ट वस्तुएं प्रदर्शित की गई है।
 - मुख्य कक्ष में एक आले में प्रदर्शित किया गया अशोक का सिंह स्तंभ शीर्ष जिसमें चार सिंह एक दूसरे से पीठ लगाकर बैठे हैं, भ्रमणार्थियों का ध्यान आकर्षित करते हैं।
 - विशिष्ट मौर्यकालीन पॉलिश वाले अशोक के स्तंभ का यह सिंह स्तंभशीर्ष सर्वाधिक उत्कृष्ट प्रदर्शित वस्तु है और किसी का भी ध्यान अकेले खींच लेती है।
 - संग्रहालय में मुख्य कक्ष के माध्यम से प्रवेश किया जाता है जो मुख्य दीर्घा का काम करती है। इस दीर्घा में सौंदर्यपूर्ण तरीके से प्रदर्शित वस्तुएं छह सांस्कृतिक अवधियों अर्थात् मौर्य, शुंग, सातवाहन, कुषाण, गुप्त और उत्तर-गुप्त अवधि के प्रतिनिधि अवशेष हैं।
 - उत्तरी दीवार के सामने प्रदर्शित नागराज की विशालकाय मूर्ति शुंग अवधि की विशिष्ट प्रतिनिधि मूर्ति है।
 - एक पीपल वृक्ष के नीचे बुद्ध के ज्ञानोदय को दर्शाने वाला एक तोराण अवशेष इसकी हीनयान कला की दृष्टि से अद्भुत है।
 - यक्षी, चित्तीधारी लाल बलुआ पत्थर से बनी मधुरा के ध्यानमग्न बुद्ध (चौथी शताब्दी ईसवी) और बोधिसत्व पद्मपाणि (पांचवी शताब्दी ईसवी) अन्य उल्लेखनीय प्रदर्शित वस्तुएं हैं। [1]
 
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- पुरातत्वीय संग्रहालय, सांची (मध्य प्रदेश) (हिन्दी) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण। अभिगमन तिथि: 19 फ़रवरी, 2015।
 
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