प्रस्तुति- राजेन्द्र प्रसाद, उषा रानी सिन्हा
भगवन शिव के अंगूठे का निशान Image Credit |
अचलेश्वर महादेव के नाम से भारत में कई मंदिर है जिसमे से एक धौलपुर के अचलेश्वर महादेव के बारे में हम आपको बता चुके है जहाँ पर दिन में तीन बार रंग बदलने वाला शिवलिंग है। आज हम आपको माउंट आबू के अचलेश्वर महादेव के बारे में बताएंगे जो की दुनिया का ऐसा इकलौत मंदिर है जहां पर शिवजी के पैर के अंगूठे की पूजा होती है।
अचलेश्वर महादेव Image Credit |
राजस्थान के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू को अर्धकाशी के नाम से भी जाना जाता है क्योकि यहाँ पर भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर है। स्कंद पुराण के मुताबिक वाराणसी शिव की नगरी है तो माउंट आबू भगवान शंकर की उपनगरी ।अचलेश्वर माहदेव मंदिर माउंट आबू से लगभग 11 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में अचलगढ़ की पहाड़ियों पर अचलगढ़ के किले के पास स्तिथ है।
नंदी की प्रतिमा Image Credit |
नंदी प्रतिमा Image Credit |
मंदिर परिसर के विशाल चौक में चंपा का विशाल पेड़ अपनी प्राचीनता को दर्शाता है। मंदिर की बायीं बाजू की तरफ दो कलात्मक खंभों का धर्मकांटा बना हुआ है, जिसकी शिल्पकला अद्भुत है। कहते हैं कि इस क्षेत्र के शासक राजसिंहासन पर बैठने के समय अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त कर धर्मकांटे के नीचे प्रजा के साथ न्याय की शपथ लेते थे। मंदिर परिसर में द्वारिकाधीश मंदिर भी बना हुआ है। गर्भगृह के बाहर वाराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं।
मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार Image Credit |
मंदिर की पौराणिक कथा (Mythological Story of Achleshwar Temple) :
पौराणिक काल में जहां आज आबू पर्वत स्थित है, वहां नीचे विराट ब्रह्म खाई थी। इसके तट पर वशिष्ठ मुनि रहते थे। उनकी गाय कामधेनु एक बार हरी घास चरते हुए ब्रह्म खाई में गिर गई, तो उसे बचाने के लिए मुनि ने सरस्वती गंगा का आह्वान किया तो ब्रह्म खाई पानी से जमीन की सतह तक भर गई और कामधेनु गाय गोमुख पर बाहर जमीन पर आ गई। एक बार दोबारा ऐसा ही हुआ। इसे देखते हुए बार-बार के हादसे को टालने के लिए वशिष्ठ मुनि ने हिमालय जाकर उससे ब्रह्म खाई को पाटने का अनुरोध किया। हिमालय ने मुनि का अनुरोध स्वीकार कर अपने प्रिय पुत्र नंदी वद्र्धन को जाने का आदेश दिया। अर्बुद नाग नंदी वद्र्धन को उड़ाकर ब्रह्म खाई के पास वशिष्ठ आश्रम लाया। आश्रम में नंदी वद्र्धन ने वरदान मांगा कि उसके ऊपर सप्त ऋषियों का आश्रम होना चाहिए एवं पहाड़ सबसे सुंदर व विभिन्न वनस्पतियों वाला होना चाहिए। वशिष्ठ ने वांछित वरदान दिए। उसी प्रकार अर्बुद नाग ने वर मांगा कि इस पर्वत का नामकरण उसके नाम से हो। इसके बाद से नंदी वद्र्धन आबू पर्वत के नाम से विख्यात हुआ। वरदान प्राप्त कर नंदी वद्र्धन खाई में उतरा तो धंसता ही चला गया, केवल नंदी वद्र्धन का नाक एवं ऊपर का हिस्सा जमीन से ऊपर रहा, जो आज आबू पर्वत है। इसके बाद भी वह अचल नहीं रह पा रहा था, तब वशिष्ठ के विनम्र अनुरोध पर महादेव ने अपने दाहिने पैर के अंगूठे पसार कर इसे स्थिर किया यानी अचल कर दिया तभी यह अचलगढ़ कहलाया। तभी से यहां अचलेश्वर महादेव के रूप में महादेव के अंगूठे की पूजा-अर्चना की जाती है। इस अंगूठे के नीचे बने प्राकृतिक पाताल खड्डे में कितना भी पानी डालने पर खाई पानी से नहीं भरती। इसमें चढ़ाया जानेवाला पानी कहा जाता है यह आज भी एक रहस्य है।
अचलगढ़ किले के अवशेष Image Credit |
अचलेश्वर महादेव मंदिर अचलगढ़ की पहाड़ियों पर अचलगढ़ के किले के पास स्तिथ है। अचलगढ़ का किला जो की अब खंडहर में तब्दील हो चूका है,का निर्माण परमार राजवंश द्वारा करवाया गया था। बाद में 1452 में महाराणा कुम्भा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया तथा इसे अचलगढ़ नाम दिया। महाराणा कुम्भा ने अपने जीवन काल में अनेकों किलों का निर्माण करवाया जिसमे सबसे प्रमुख है कुम्भलगढ़ का दुर्ग, जिसकी दीवार को विशव की दूसरी सबसे लम्बी दीवार होने का गौरव प्राप्त है।
Other Famous Shiv Temple :
ममलेश्वर महादेव मंदिर - यहां है 200 ग्राम वजनी गेहूं का दाना - पांडवों से है संबंध
निष्कलंक महादेव - गुजरात - अरब सागर में स्तिथ शिव मंदिर - यहां मिली थी पांडवों को पाप से मुक्ती
कमलनाथ महादेव मंदिर - झाडौल - यहां भगवान शिव से पहले की जाती है रावण की पूजा
कामेश्वर धाम कारो - बलिया - यहाँ भगवान शिव ने कामदेव को किया था भस्म
लक्ष्मणेश्वर महादेव - खरौद - यहाँ पर है लाख छिद्रों वाला शिवलिंग (लक्षलिंग)
भोजेश्वर मंदिर (Bhojeshwar Temple) - भोपाल - यहाँ है एक ही पत्थर से निर्मित विशव का सबसे बड़ा शिवलिंग
अचलेश्वर महादेव - धौलपुर(राजस्थान) - यहाँ पर है दिन मे तीन बार रंग बदलने वाला शिवलिंग
Jangamwadi math (वाराणसी) : जहा अपनों की मृत्यु पर शिवलिंग किये जाते हे दान
महादेवशाल धाम - जहाँ होती है खंडित शिवलिंग की पूजा - गई थी एक ब्रिटिश इंजीनियर की जान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें