दिल्ली भले ही देश का दिल हो, मगर इसके दिल का किसी ने हाल नहीं लिया। पुलिस मुख्यालय, सचिवालय, टाउनहाल और संसद देखने वाले पत्रकारों की भीड़ प्रेस क्लब, नेताओं और नौकरशाहों के आगे पीछे होते हैं। पत्रकारिता से अलग दिल्ली का हाल या असली सूरत देखकर कोई भी कह सकता है कि आज भी दिल्ली उपेक्षित और बदहाल है। बदसूरत और खस्ताहाल दिल्ली कीं पोल खुलती रहती है, फिर भी हमारे नेताओं और नौकरशाहों को शर्म नहीं आती कि देश का दिल दिल्ली है।
शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015
विश्वयुद्ध में भारतीय राजा
प्रस्तुति स्वामी शरण साल 1914 से 1918 तक चले पहले विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन की तरफ से हज़ारों भारतीय सैनिकों ने जंग में हिस्सा लिया था.
कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव कमीशन के मुताबिक अविभाजित भारत से 11 लाख सैनिक प्रथम विश्व युद्ध में शरीक हुए थे. इस अविभाजित भारत में आज का भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और बर्मा शामिल थे. Image caption
लंदन में फ़्लैग डे के मौके पर दो बहनें झंडा बेचती
हुईं. वे मोर्चे पर गए भारतीय सैनिकों के लिए चंदा जुटा रही थीं.
साल 1914 से 1918 के बीच ये सैनिक फ्रांस, बेल्जियम, मिस्र और मध्यपूर्व देशों के मोर्चों पर लड़ने के लिए भेजे गए थे.भारतीय सैनिकों को इस लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए 9200 से भी ज्यादा वीरता पदकों से सम्मानित किया गया था. तकरीबन 60 हज़ार भारतीय सैनिक इस युद्ध में मारे गए थे. Image caption
यूरोपीय सैनिकों की वर्दी पहने दो भारतीय सैनिक पूरे
साजो सामान के साथ लैस लेकिन उनके सैंडिल उनके पहनावे से मेल नहीं खा रहे
हैं.
युद्ध में इन सैनिकों के योगदान को शांतनु दास की एक नई किताब 'इंडियन ट्रुप्स इन यूरोप' में ब्योरेवार जिक्र किया गया है.किताब का प्रकाशन भारत के ही एक प्रकाशक मैपिन पब्लिशिंग ने किया है. शांतनु दास लंदन के किंग्स कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं. इस फ़ोटो फ़ीचर में शामिल की गए तस्वीरें इसी किताब से ली गई हैं. Image caption
एक सिपाही जो लिखना नहीं जानता था, अपने अंगूठे की छाप वेतन के रजिस्टर पर लगा रहा है.
फ्रांसीसी परेड का आयोजन 14 जुलाई 1789 को फ्रांस के बैस्टिल किले के पतन के मौके पर किया गया था.उस ज़माने में पंजाब में साक्षरता की दर महज़ पांच फीसदी थी. भारतीय सैनिकों में आधे से ज्यादा लोग इसी सूबे से लड़ने जाते थे. उनमें से कई लोग दस्तखत करना जानते थे और मुट्ठी भर ऐसे सिपाही भी थे जो अंग्रेजी में लिख सकते थे. एक तस्वीर में सिख और गोरखा सैनिकों ने राइफ़लें थाम
रखी हैं और उनकी भाव-भंगिमाएं ये जतला रही हैं मानो वे फोटो के लिए पोज दे
रहे हों. ये फोटो भारतीय सैनिकों की गतिविधियों को दिखला रही हैं. पहले विश्व युद्ध के दौरान ब्रितानी कमांडर सर डगलस
हेग भारतीय राजकुमार सर पेरताब सिंह को फ्रांसीसी सेना प्रमुख जनरल जोफरे
से मिलवा रहे हैं. चिट्ठियों की पड़ताल करते दो भारतीय क्लर्कों के काम का एक ब्रितानी अधिकारी निरीक्षण करते हुए.सेंसर विभाग में काम करने वाले ये क्लर्क सिपाहियों की चिट्ठी से चुनिंदा हिस्सों को चीफ़ सेंसर के पास भेजते थे. युद्ध के चार सालों के दौरान भारत से 172,815 जानवर
बाहर भेजे गए. इनमें घोड़े, खच्चर, टट्टू, ऊंट, बैल और दूध देने वाले मवेशी
शामिल थे.इनमें 8970 खच्चर और टट्टू ऐसे भी थे जिन्हें बाहर से
भारत लाकर प्रशिक्षित किया गया था और फिर युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में
भेजा जाता था. इस तस्वीर में ‘धूल से नहाते’ खच्चर. जोधपुर के राजा सर पेरताब सिंह दो भारतीय सिपाहियों के साथ. वे महारानी विक्टोरिया के ख़ास लोगों में से थे.70
साल के सर पेरताब के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने युद्ध में भाग लेने
की इजाज़त न मिलने के विरोध में वाइसरॉय के दरवाजे पर धरना दे दिया था. 1914 से 1915 के बीच वे यूरोप में तैनात रहे और फिर हैफा और एलेप्पो में.
स्वास्थ्य लाभ ले रहे भारतीय सैनिक ब्रोकेनहर्स्ट के लेडी हार्डिंग अस्पताल में एक कार्यक्रम का आनंद लेते हुए.इस अस्पताल में मरीजों की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि कई बार इलाज कराने आए भारतीय सैनिकों को फर्श पर गद्दे बिछाकर जगह दी जाती थी. जब बात मनोरंजन की होती थी तब भी अस्पताल को भीड़ की परेशानी से जूझना पड़ता था. (बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप
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