सोमवार, 5 अक्तूबर 2015

विविध प्रकार




विविध

एक विवाह ऐसा भी 

अनेक ऐसी परंपराए, रस्में रीति रिवाज हैं जिनके बिना विवाह अधूरे माने जाते हैं और यही वजह है कि पुराने जमाने से चली आई ये परंपराएं आज भी लोगों के बीच में पूर्ण रूप से निभाई जा रही हैं. हर परंपरा, हर रस्म का अपना अंदाज होता है. अपना महत्व होता है. इन परंपराओं के बदले में मिलता है प्यार और लोगों का सत्कार इसलिए आज भी लोग इन्हें पूर्ण रूप से निभाना पसंद करते हैं. फिर चाहे इलाका कितना ही पिछड़ा क्यों न हो. ऐसी ही कुछ परंपराओं का यहां जिक्र किया गया है जो पढ़ने में रोमांचक तो है ही साथ ही मन मोहने वाली भी हैं.
दुल्हन बारात लेकर जाती है दूल्हे के घर

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के दूरस्थ क्षेत्रों में अनेक दिलचस्प रीति रिवाज देखने को मिलते हैं. यहां कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां विवाह के समय वधु स्वयं बारात लेकर वर पक्ष के घर पहुंचती है और हंसी ठिठोली के बीच वर पक्ष के आंगन में विवाह के सभी रस्मो रिवाज निभा लिए जाते हैं. वधु पक्ष के लोग शगुन के नाम पर मात्र पांच बर्तन बेटी के पास छोड़ कर भरे मन से विदाई लेते हैं. स्वयं को आधुनिक एवं सभ्य समझने वाले लोग यह जानकर हैरान होंगे कि इन क्षेत्रों में दहेज नाम की कोई बीमारी नहीं है. दहेज मांगने की बात तो दूर, यदि कोई पिता अपनी बेटी के विवाह में अतिरिक्त दिखावा करने का प्रयास भी करता है तो बड़े बुजुर्ग उसके विरोध में खड़े हो जाते हैं. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से तकरीबन नब्बे किलोमीटर दूर जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में भी विवाह की रस्में इसी तरह निभाई जाती हंै. इस पहाड़ी क्षेत्र को देखकर यह अहसास ही नहीं होता कि दुनिया कितनी बदल गई है. मात्र पहनावे में हल्का फुल्का बदलाव देखने को मिलता है. यहां के लोग खुद को पांडवों के वंशज मानते हैं.
जौनसार बावर में शादी की रस्में उत्तराखंड के शेष भाग से निराली हैं. यहां वर के बजाए वधु घर से बारात लेकर जाती है अपने भावी पति के घर रहने के लिए. वधु के साथ आए बाराती स्थानीय वाद्य यंत्रों के साथ नाचते गाते हुए वर के गांव से कुछ दूर ठहर जाते हैं. वहां सत्कार के बाद शाम को दावत होती है. इसके बाद रात भर नाच गाना चलता है, जिसे स्थानीय बोली में गायण कहते हैं. दूसरे दिन वर पक्ष के आंगन में हारुल, झेंता, रासो व जगाबाजी जैसे लोकगीत और नृत्यों का आयोजन होता है. बारात की विदाई के बाद दुल्हन तीन या पांच दिन ससुराल में रह कर वापस मायके आती है.
हिमाचल प्रदेश के भी ऊपरी कुछ क्षेत्रों में इसी तरह के विवाह देखने को मिलते हैं जिसमें एक होता है ‘गाडर विवाह’. इसमें वर पक्ष के दो-तीन लोग वधु के घर जाते हैं और कुछ रस्में पूरी होने पर वधु बारात लेकर वर के घर जाती है और वहीं पर अत्यंत सादगी से विवाह की सारी रस्में पूरी कर ली जाती हैं.
 शादी के दिन दुल्हन का नृत्य
 पोलैंड के रिवाज के मुताबिक, शादी में आने वाले मेहमान दुल्हन के साथ डांस करने का लुत्फ उठाते हैं. दुल्हन, पिता के साथ डांस की शुरुआत करती है. इसमें डांस करने वाले लोग उस पर पैसों की बारिश करते हैं. बाद में, इन पैसों को दूल्हा अपने बटुए में रख लेता है. यह पैसे वह हनीमून पर खर्च करता है.
झाडू पर उछलता है दूल्हा
 शादी के दौरान वर-वधु को झाडू पर उचकने के लिए कहा जाता है. प्राचीन प्रथा के मुताबिक, ऐसा करने से उनकी पुराने बुरे अनुभव साफ हो जाएंगे और वे अपने नए जीवन की शुरुआत कर सकेंगे.
जहां दूल्हे की मांग भरी जाती है

विवाह के दौरान सामान्यतः दूल्हे द्वारा दुल्हन की मांग भरने की परम्परा प्रायः जनजातियों के साथ ही गैर जनजातियों में प्रचलन में है. परन्तु ओरांव जनजाति की शादियों में दुल्हन भी दूल्हे की मांग भरती है. विवाह के लिए लड़का पक्ष बारात लेकर लड़की वालों के यहां जाता है. यहां तैयार मंडप में दूल्हा दुल्हन को हल्दी लगाने के साथ ही शादी की अन्य परम्परागत रस्में प्रारम्भ हो जाती हैं. शादी के रस्मों के दौरान दुल्हन दूल्हे की मांग में सिन्दूर भरती है. कोल्हू से निकला सरसों का तेल दूल्हे की मांग पर लगाया जाता है. उसके बाद तीन बार उसकी मांग दुल्हन द्वारा भरी जाती है. पहली बार मांग भरने के बाद उसे पोंछ दिया जाता है और इसके बाद दूसरी बार मांग भरी जाती है. फिर वधू पक्ष दूल्हे को मात्र नौ रुपए देता है. यह सुखदान कहलाता है. इसे दूल्हे को वधू पक्ष का आशीर्वाद समझा जाता है. इस क्रिया के बाद ही विवाह की रस्में सम्पन्न मानी जाती हैं. अर्थात् दूल्हे की मांग भरे बिना वैवाहिक रस्में पूरी नहीं मानी जाती.
जहां कुत्तों से कर दी जाती है षादी 

झारखंड के एक गांव में नाबालिग लड़कियों को भूत-प्रेत का हवाला देते हुए गली के कुत्ते के साथ उनकी षादी कर दी जाती है. गांव के लोग मानते हैं कि इस तरह के विवाह लड़की के अच्छे के लिए किया जाता है. कुत्ते से षादी करते ही लड़की का भविष्य उज्जवल हो जाएगा और वह सभी दिक्कतों से दूर हो जाएगी. भारत में एक तरह का रिवाज है कि ष्षादी के बाद लड़की को लड़के के साथ उसके घर में ही रहना पड़ता है, तो यहां भी ऐसा ही होगा बस फर्क इतना है कि यहां कुत्ते को अपना पति मानते हुए अगले कुछ महीनों तक उसकी सेवा करेगी. उसे उसको एक पालतू जानवर की तरह रखना होगा व उसका पूरा-पूरा ध्यान भी रखना होगा.
पैरों की अंगुलियों में पहननी होती है अंगूठी
शादी के दौरान ज्वेलरी पहनना हर दुल्हन को अच्छा लगता है. एक सबसे अनूठी प्रथा भारतीय शादियों में देखने को मिलती है. इसमें दुल्हन शादी के बाद चांदी की अंगूठी पैर में पहनना शुरू कर देती है. शुरुआत में आदत न होने के कारण अंगूठी फिसलती रहती है. लेकिन बाद में आदत पड़ जाती है.
दुल्हन का बाप उसके माथे और छाती पर फेंकता है थूक
अफ्रीका के मसाई आदिवासियों में शादी के दौरान एक प्रथा है कि यहां दुल्हन का पिता अपनी बेटी के माथे और छाती पर थूक कर उसे आशीर्वाद देता है.

दुल्हन का अपहरण 
शादी करने के लिए दुल्हन का अपहरण पूरी दुनिया में हजारों सालों से किया जा रहा है. जिस लड़की को लड़का पसंद करता है, उसकी किडनैपिंग का प्लान बनाता है. इस प्रथा के मिलते-जुलते सबूत रोमानी सभ्यता में मिलते हैं जबकि कज़ाकिस्तान में यह परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है. यदि लड़की का बलपूर्वक अपहरण कर लिया और दो-तीन दिन तक वह लड़के के घर रह गई तो लड़की को पत्नी मान लिया जाता है.
टॉयलेट  इस्तेमाल  करने  की  इजाजत  नहीं
मलेशिया में शादी के बाद तीन दिन बड़े कष्टप्रद बीतते हैं. देश के सबाह प्रांत के संडाकेन टिडोंग समुदाय के लोग विवाहित जोड़े को तीन दिन और रात टॉयलेट का इस्तेमाल नहीं करने देते. अगर वे ऐसा करते हैं तो यह उनके लिए दुर्भाग्य लाने वाला होता है. बदकिस्मती से हो सकता है कि उनका साथ छूट जाए या उनके बच्चों की मौत हो जाए इसलिए नए शादीशुदा जोड़े बिना पानी या फिर कम पानी पीकर गुजारा करते हैं.
 बर्तन तोड़ना
यह प्रथा कहां से शुरु हुई, इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन शादीशुदा जोड़े रस्म के तौर पर बर्तन तोड़ते हैं. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि उनके जीवन में फिर कभी ऐसी नौबत न आए. समुदाय का मानना है कि इससे उनके जीवन में खुशियां चली आएंगी.
भूत भगाने के लिए जानवरों से शादी
भारत के कुछ हिस्सों में माना जाता है कि यदि छोटी बच्ची के अतिरिक्त दांत ऊपर के जबड़े से उग आएं तो उसे भूत से खतरा होता है. कुछ यह भी मानते हैं कि भविष्य में उसे शेर खा जाएगा. इस डर से उसकी शादी जानवर से करा दी जाती है. हालांकि यह हमेशा के लिए नहीं होती है. इसे सिर्फ बुरे साए से बचाने के लिए किया जाता है. बाद में उसकी शादी लड़के से की जाती है.
 नवविवाहतिों के घर जाकर हंगामा मचाना 
चारीवारी, शादी से जुड़ी सबसे अजीबोगरीब परंपरा सुनने को मिलती है. यह फ्रांसीसी लोक रिवाज का हिस्सा है. यह समुदाय शादीशुदा व्यक्ति के सुहागरात के दिन घर जाकर जमकर उत्पात मचाते हैं और उनके मिलन में रुकावट पैदा करते हैं. वे लोग घर में रखे बर्तन बजाते हैं और जोर-जोर से गाने गाते हैं. हालांकि इस तरह की प्रथा अब खत्म होने पर है. लेकिन मध्ययुग में यह काफी लोकप्रिय है.
 शादी से पहले की तैयारी
दरअसल यह प्रथा शादी के बाद की नहीं. बल्कि उससे पहले की है. जोड़े के शरीर पर उनके दोस्त काला रंग लगाते हैं फिर उसे अंडे, सॉसेज अेौर आटे आदि से कवर करते हैं. यह सिर्फ बुरी ताकतों से बचाने के लिए किया जाता है. यह प्रथा स्कॉटलैंड में सबसे ज्यादा मशहूर है.
 झोपड़ी में धकेल दिया जाता है
बिल्कुल अलग तरह की शादी की इस रस्म में लड़कों को फूस से ढंक दिया जाता है और एक झोपड़ी में धकेल दिया जाता है. इस प्रथा के तहत दूल्हा अपनी होने वाली बीवी के घर जाता है और उसके साथ डांस करता है और यदि उस घर में और भी महिला है तो उसके साथ भी डांस करना पड़ता है.
पेड़ के साथ लड़की की शादी
ऐसा भारत में रूढि़वादी परंपरा के कारण होता है. ऐसा नहीं है कि हर किसी लड़की के साथ ऐसा किया जाता है. बल्कि केवल मांगलिक लड़की का विवाह पीपल के पेड़ से करवाया जाता है. इसके पीछे कारण यह माना जाता है कि ऐसा करने से लड़की की प्रेतबाधा खत्म हो जाती है.

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