दिल्ली भले ही देश का दिल हो, मगर इसके दिल का किसी ने हाल नहीं लिया। पुलिस मुख्यालय, सचिवालय, टाउनहाल और संसद देखने वाले पत्रकारों की भीड़ प्रेस क्लब, नेताओं और नौकरशाहों के आगे पीछे होते हैं। पत्रकारिता से अलग दिल्ली का हाल या असली सूरत देखकर कोई भी कह सकता है कि आज भी दिल्ली उपेक्षित और बदहाल है। बदसूरत और खस्ताहाल दिल्ली कीं पोल खुलती रहती है, फिर भी हमारे नेताओं और नौकरशाहों को शर्म नहीं आती कि देश का दिल दिल्ली है।
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शादी के बाद मध्य प्रदेश के जालपा मंदिर में आशीर्वाद लेते लता और कालू.
भारत में 18 साल की उम्र से पहले लड़कियों की और 21 साल की उम्र से पहले लड़कों की शादी करना या करवाना क़ानूनन जुर्म है.
लेकिन भारत के कुछ इलाक़ों में अब भी इससे कम उम्र में बच्चों की शादियां होती है. Image caption
मध्य प्रदेश के राजगढ़ में हुए बाल विवाह में दुल्हा और दुल्हन.
इन बच्चों की उम्र सात साल से लेकर 15 साल के बीच कुछ
भी हो सकती है. कुछ मामलों में तो पाँच साल की उम्र में ही बच्चों की शादी
कर दी गई. Image caption
बाइक पर सवार दुल्हा मंदिर जाते हुए.
हिन्दू धर्म के अनुसार अक्षय तृतीया को विवाह करना शुभ
माना जाता है. मध्य प्रदेश और राजस्थान के सीमावर्ती मंदसौर, शाजापुर,
राजगढ़ और गुना समेत कुछ जिलों में इस दिन कई बाल विवाह होते हैं.कई इलाक़ों में इस दिन सामूहिक बाल विवाह भी कराए जाते हैं. Image caption
मध्य प्रदेश के राजगढ़ के जालपा मंदिर में दुल्हा और दुल्हन.
ग्रामीण इलाक़ों के बाराती और दुल्हा अक्सर ट्रैक्टर
से विवाह के लिए स्थानीय में मंदिर आते हैं. ट्रैक्टर पर ड्राइवर के पीछे
वाली सीट दुल्हे के लिए रिज़र्व सी होती है. Image caption
जालपा मंदिर में दुल्हा और दुल्हन.
इन इलाक़ों में ज़्यादातर दुल्हे अपने सिर से बड़ी
पगड़ी और गले में फूलों की माला पहने होते हैं. लड़कियाँ आम तौर पर घूँघट
किए होती हैं. Image caption
जालपा मंदिर में दुल्हा और दुल्हन.
इन विवाह समारोहों में किसी को क़ानून का डर हो ऐसा प्रतीत नहीं होता.शायद
इन लोगों को इस बात का अहसास है कि कोई राजनीतिक दल या सरकार चुनावी
समीकरणों के चलते इन इलाक़ों में होने वाले बाल विवाह के ख़िलाफ़ कार्रवाई
नहीं करेगी. Image caption
जालपा मंदिर में दुल्हा और दुल्हन.
बाल विवाह की प्रथा सबसे ज़्यादा ओबीसी 'राजपूतों' में
प्रचलित है. तवर राजपूतों के दांगी, सोंधिया और लोध जैसे स्थानीय समुदायों
में ऐसे विवाह होते हैं. इस इलाक़े के कई चुनावी क्षेत्रों में इन तीन
जातियों के वोट निर्णायक होते हैं.इनके अलावा इस इलाक़े में गुज्जर, यादव, माली, साहू, मीणा, भिलाला इत्यादि जातियों में भी बाल विवाह होते हैं. Image caption
राजस्थान के झालावाड़ स्थित मंदिर में दर्शन करके निकलते धीरेंद्र सिंह.
विवाह में प्रमुख भूमिका निभाने वाले पंडित, टेंट
वाले, केटरिंग वाले अगर बाल विवाह को बढ़ावा देते हैं तो इसके लिए वे
क़ानूनन दोषी ठहराए जा सकते हैं.बड़े शहरों में या पुलिस थानों के क़रीबी इलाक़ों में सरकार बाल विवाह को लेकर काफ़ी कड़ाई बरतती है. पर
कई इलाक़ों में बाल विवाह को अपराध न मानने की एक बड़ी वजह यह है कि
सैकड़ों सालों से प्रचलन में रहने के कारण यह सामाजिक प्रथा का अंग बन चुकी
हैं. Image caption
जालपा मंदिर में लता और कालू.
राजगढ़ जिले के एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि
राजस्थान के सीमावर्ती इलाक़े में बाल विवाह को अपराध नहीं समझा जाता.
उन्होंने बताया, "बाल विवाह सामाजिक रीति-रिवाज में शामिल है और ये सदियों
से चला आ रहा है."
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विवाह के लिए तैयार हो रहे हैं दुल्हा, दुल्हन
बाल विवाह को लेकर स्थानीय प्रशासन और ग्रामीणों में
कई बार झड़पें भी हुई हैं. स्थानीय प्रशासन बाल विवाह रोकने के लिए ख़ास
वर्कशाप का भी आयोजन करता है.हिन्दू पुजारी कैलाश चंद्र शुक्ल कहते
हैं, "मैं इस पेशे में तीस साल से हूँ. साल दर साल बाल विवाह में कमी आ रही
है. धीरे-धीरे ये प्रथा बदल जाएगी." (सभी तस्वीरें फ़ोटो-पत्रकार प्रकाश हतवलने की हैं.) (बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप
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