शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

नाग



पत्थरों का अनोखा मेला धामी में — !
हिमाचल प्रदेश के शिमला के पास हलोग धामी में आज भी मनाया जाता है पत्थरों का मेला ….कहा जाता है कि हजारो साल पहले प्राचीन समय में धामी रियासत की रानी के सती होने के बाद यह परम्परा शुरू हुई थी और यहाँ पहले नरबली दी जाती थी उसके बाद पशुबलि दी जाने लगी ! लेकिन पशु बलि के स्थान पर अब यहाँ पर एक दुसरे को पत्थर मारकर घायल करने की परम्परा का खेल खेला जाता है! पत्थरों का यह अनोखा खेल दो परगनों कटेड़ू व् ज्मोगी के बीच खेला जाता है और घायल व्यक्ति से निकले खून से मां काली को तिलक लगा कर आज भी अजीब तरीके से नरबली की परम्परा को निभाया जाता है !
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हिमाचल प्रदेश के शिमला के पास हलोग-धामी में आज भी एक दुसरे को पत्थर मारकर खेला जाता है मौत का खेल !.परम्परा के अनुसार दिवाली के दुसरे दिन इस क्षेत्र के लोग माँ सती के मंदिर के पास खुली जगह पर इक्कठे होते हैं ! सबसे पहले मां काली के मंदिर में इककठे होकर पूजा करते हैं!
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युद्घक्षेत्र की तरह आमने सामने खड़े हो कर एक दुसरे को पत्थर मारते हैं और यह पत्थरों का खेल तब तक जरी रहता है जब तक पत्थर के प्रहार से घायल व्यक्ति के शरीर से खून न निकल जाये !.. और घायल हुए व्यक्ति के शरीर से निकले खून से माँ काली को तिलक लगाये जाने के बाद यह मेला संपन्न हो जाता है !
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कहा जाता है कि यदि यह खेल न खेला जाये तो इस क्षेत्र में प्राकृतिक प्रकोप का भयानक खतरा मंडराता रहता है ! धामी राज परिवार के अनुसार यह परम्परा सदियों पुरानी है और जब यहाँ के राजा की मृत्यु हो गई तो रानी ऩे यहाँ शहर के स्थित चबूतरे पर सती हो गई थी परन्तु सती होने से पहले उसने मां काली को को दी जाने वाली नरबली को बंद करने की घोषणा की और उसके स्थान पर इस खेल को शुरू किया ! जिसमे दो परगनों (कटेड़ू और ज्मोगी ) के लोग शामिल होते हैं ! और इस पत्थर मारने के खेल में जब कोई व्यक्ति घायल हो जाता है तो उससे निकले खून से मां काली को तिलक लगाकर आज भी नरबली की प्रथा को इस अनोखे तरीके निभाया जाता है ! पत्थरों के इस जानलेवा खेल में आजतक किसी भी तरह की अनहोनी नही हुई है!
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लोगों का कहना है कि यह परम्परा कि सालों से चली आ रही है और इसमें पहले नरबली दी जाती थी उसके बाद पशु बली दी जाने लगी और अब पत्थरों के इस खेल में घायल हुए व्यक्ति से निकले खून से मां काली को तिलक लगाकर आज भी पुरानी परम्परा को निभ्य जा रहा है ! वही इस अनोखे मेले को देखने आये लोगो का कहना है कि इस खेल से लोगों का मनोरंजन भी हो जाता है और इसमें रोमांच भी देखने को मिलता है !
  • आज


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नाग पंचमी के मौके पर नाग पूजन के विषय में सुना और देखा होगा परंतु बिहार के समस्तीपुर जिले में नाग पंचमी के मौके पर नाग की पूजा करने की अनोखी प्रथा है। इस दिन नाग के भगत गंडक नदी या पोखर में डुबकी लगाकर नदी से सांप निकालते हैं और उसकी पूजा करते हैं। या यूं कहिये कि नदी के किनारे सांपों का मेला लगता है।
समस्तीपुर के विभूतिपुर प्रखंड के सिंघिया और रोसड़ा गांव में भगत जहां गंडक नदी में डुबकी लगाकर सांप निकालते हैं वहीं सरायरंजन में एक प्राचीन पोखर से सांप निकालकर उसकी पूजा करते हैं। इस दौरान इस स्थानों पर नाग पंचमी के दिन लोगों का मजमा लगता है। नाग पंचमी रविवार को इस इलाके में धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर इस अनोखी परम्परा को देखने के लिए बिहार के ही लोग नहीं बल्कि अन्य राज्यों के लोग भी यहां पहुंचते हैं और इस अभूतपूर्व नजारे को देखते हैं।
गंडक के तट पर सैकड़ों भगत जुटते हैं और फिर नदी में डुबकी लगाकर नाग सांप को नदी से निकाल आते हैं। वे कहते हैं कि सांप उनको कोई नुकसान नहीं पहुंचाता। सिंघिया गांव के भगत रासबिहारी भगत कहते हैं कि यह काफी प्राचीन प्रथा है। वे कहते हैं कि यह प्रथा इस इलाके में करीब 300 वर्ष से चली आ रही है। वे बताते हैं कि उनके भगवान नाग होते हैं। वे कहते हैं कि वे पिछले 25 वर्ष से यहां जुटते हैं और सांप निकालते हैं।
भगतों द्वारा निकाले गए सांपों को नदी के किनारे ही बने नाग मंदिर या भगवती मंदिर में ले जाया जाता है और फिर उनकी सामूहिक रूप से पूजा कर उन्हें दूध और लावा खिलाकर वापस नदी में छोड़ दिया जाता है। इस दौरान सांप को दूध और लावा देने के लिए गांव के पुरूष और महिलाओं की भारी भीड़ भी यहां लगी रहती है। पूजा के दौरान वहां कीर्तन और भजन का भी कार्यक्रम चलते रहता है।
एक अन्य भगत भगत जो पिछले 36 वषरें से यह कार्य करते आ रहे हैं, ने बताया कि यह परम्परा अब इन गांवों में सभ्यता बन गई है। वे कहते हैं कि नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने से केवल खुद की बल्कि गांव और क्षेत्र का कल्याण होता हैं। रामचंद्र भगत के मुताबिक इससे सांप को कोई नुकसान नहीं होता है। यह तो भगवान और भक्त का एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना है।
भगत का दावा है कि जो भी व्यक्ति यहां अपनी मुराद मांगते हैं उसकी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं। वे कहते हैं इसे कई लोग सांपों के प्रदर्शन की बात कहते हैं परंतु यह गलत है। यहां कोई प्रदर्शन नहीं होता बल्कि पूजा होती है। ये अलग बात है कि दूर-दूर से लोग इस पूजा को देखने के लिए यहां एकत्र होते हैं।

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