पत्थरों का अनोखा
मेला धामी में — !
हिमाचल प्रदेश के शिमला के पास हलोग
धामी में आज भी मनाया
जाता है पत्थरों का मेला ….कहा
जाता है कि हजारो साल पहले प्राचीन
समय में धामी रियासत की रानी के सती होने के बाद यह
परम्परा शुरू हुई थी और
यहाँ पहले नरबली दी जाती थी
उसके बाद पशुबलि दी जाने लगी
! लेकिन पशु
बलि के स्थान पर अब यहाँ पर एक दुसरे को पत्थर मारकर घायल करने
की परम्परा का
खेल खेला जाता है! पत्थरों का यह अनोखा खेल
दो परगनों कटेड़ू व्
ज्मोगी के बीच खेला जाता है और घायल व्यक्ति से निकले खून से
मां काली को तिलक
लगा कर आज भी अजीब तरीके से नरबली की परम्परा को निभाया जाता है !…
हिमाचल प्रदेश के शिमला के पास हलोग-धामी में आज भी एक दुसरे को पत्थर मारकर खेला जाता है मौत का खेल !.परम्परा के अनुसार दिवाली के दुसरे दिन इस क्षेत्र के लोग माँ सती के मंदिर के पास खुली जगह पर इक्कठे होते हैं ! सबसे पहले मां काली के मंदिर में इककठे होकर पूजा करते हैं!
युद्घक्षेत्र की तरह आमने सामने खड़े हो कर एक दुसरे को पत्थर मारते हैं और यह पत्थरों का खेल तब तक जरी रहता है जब तक पत्थर के प्रहार से घायल व्यक्ति के शरीर से खून न निकल जाये !.. और घायल हुए व्यक्ति के शरीर से निकले खून से माँ काली को तिलक लगाये जाने के बाद यह मेला संपन्न हो जाता है !
कहा जाता है कि यदि यह खेल न खेला जाये तो इस क्षेत्र में प्राकृतिक प्रकोप का भयानक खतरा मंडराता रहता है ! धामी राज परिवार के अनुसार यह परम्परा सदियों पुरानी है और जब यहाँ के राजा की मृत्यु हो गई तो रानी ऩे यहाँ शहर के स्थित चबूतरे पर सती हो गई थी परन्तु सती होने से पहले उसने मां काली को को दी जाने वाली नरबली को बंद करने की घोषणा की और उसके स्थान पर इस खेल को शुरू किया ! जिसमे दो परगनों (कटेड़ू और ज्मोगी ) के लोग शामिल होते हैं ! और इस पत्थर मारने के खेल में जब कोई व्यक्ति घायल हो जाता है तो उससे निकले खून से मां काली को तिलक लगाकर आज भी नरबली की प्रथा को इस अनोखे तरीके निभाया जाता है ! पत्थरों के इस जानलेवा खेल में आजतक किसी भी तरह की अनहोनी नही हुई है!
लोगों का कहना है कि यह परम्परा कि सालों से चली आ रही है और इसमें पहले नरबली दी जाती थी उसके बाद पशु बली दी जाने लगी और अब पत्थरों के इस खेल में घायल हुए व्यक्ति से निकले खून से मां काली को तिलक लगाकर आज भी पुरानी परम्परा को निभ्य जा रहा है ! वही इस अनोखे मेले को देखने आये लोगो का कहना है कि इस खेल से लोगों का मनोरंजन भी हो जाता है और इसमें रोमांच भी देखने को मिलता है !
हिमाचल प्रदेश के शिमला के पास हलोग-धामी में आज भी एक दुसरे को पत्थर मारकर खेला जाता है मौत का खेल !.परम्परा के अनुसार दिवाली के दुसरे दिन इस क्षेत्र के लोग माँ सती के मंदिर के पास खुली जगह पर इक्कठे होते हैं ! सबसे पहले मां काली के मंदिर में इककठे होकर पूजा करते हैं!
युद्घक्षेत्र की तरह आमने सामने खड़े हो कर एक दुसरे को पत्थर मारते हैं और यह पत्थरों का खेल तब तक जरी रहता है जब तक पत्थर के प्रहार से घायल व्यक्ति के शरीर से खून न निकल जाये !.. और घायल हुए व्यक्ति के शरीर से निकले खून से माँ काली को तिलक लगाये जाने के बाद यह मेला संपन्न हो जाता है !
कहा जाता है कि यदि यह खेल न खेला जाये तो इस क्षेत्र में प्राकृतिक प्रकोप का भयानक खतरा मंडराता रहता है ! धामी राज परिवार के अनुसार यह परम्परा सदियों पुरानी है और जब यहाँ के राजा की मृत्यु हो गई तो रानी ऩे यहाँ शहर के स्थित चबूतरे पर सती हो गई थी परन्तु सती होने से पहले उसने मां काली को को दी जाने वाली नरबली को बंद करने की घोषणा की और उसके स्थान पर इस खेल को शुरू किया ! जिसमे दो परगनों (कटेड़ू और ज्मोगी ) के लोग शामिल होते हैं ! और इस पत्थर मारने के खेल में जब कोई व्यक्ति घायल हो जाता है तो उससे निकले खून से मां काली को तिलक लगाकर आज भी नरबली की प्रथा को इस अनोखे तरीके निभाया जाता है ! पत्थरों के इस जानलेवा खेल में आजतक किसी भी तरह की अनहोनी नही हुई है!
लोगों का कहना है कि यह परम्परा कि सालों से चली आ रही है और इसमें पहले नरबली दी जाती थी उसके बाद पशु बली दी जाने लगी और अब पत्थरों के इस खेल में घायल हुए व्यक्ति से निकले खून से मां काली को तिलक लगाकर आज भी पुरानी परम्परा को निभ्य जा रहा है ! वही इस अनोखे मेले को देखने आये लोगो का कहना है कि इस खेल से लोगों का मनोरंजन भी हो जाता है और इसमें रोमांच भी देखने को मिलता है !
- आज
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