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वृक्ष प्रेमी लाहौली महिलाएंआदमियों की बराबरी करने और कंधे से कंधा मिलाकर चलने की होड़ में महिलाओं ने हर क्षेत्र में तेजी से पांव पसारे हैं. राजनीति, प्रषासन, सेना पुलिस, माॅडलिंग, आर्किटेक्ट, बैंकिंग, फिल्म, पायलट अधिवक्ता, डाॅक्टर, इंजीनियर और उधोग-धंधे. ऐसा कौन सा क्षेत्र है जो इनसे अझूता रहा है इस संदर्भ में हिमाचल की महिलाएं भी पीछे नहीं हैं. हिमाचल का जिला लाहौल-स्पीति क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा और जनसंख्या में सबसे कम है. इस जनजातीय जिले का क्षेत्रफल 13835 वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या करीब 35 हजार है लाहौल-स्पीति अलग-अलग क्षेत्र है. लाहौल का मुख्यालय केलांग और स्पीति का कांजा है.
लाहौल-स्पीति बहुत ही ठंडे क्षेत्र हैं यहां अक्टूबर से अप्रैल तक भारी बर्फ गिरती है. इन दिनों यहां के लोगों को घर में रहकर वक्त गुजारना पड़ता है. प्रदेष सरकार इन कठिन दिनों के लिए क्षेत्रवासियों को उचित मूल्य पर राषन, जलावन के लिए ईंधन, पषुओं के लिए चारा व अन्य आवष्यक सामान देती है.
लाहौल हरी-भरी घाटी और स्पीति बर्फ का रेगिस्तान है. इसे हिमाचल का साइबेरिया व मणियों की घाटी कहा जाता है.
लाहौल की हरियाली का श्रेय यहां की महिलाओं को है. उन्हें भले ही पैतृक संपति का अधिकार न हो, लेकिन वनों की पहरेदारी का जिम्मा उठाकर उन्होंने एक अनोखी मिसाल कायम की है. ये महिलाएं वृक्षप्रेमी हैं. इनकी पूजा करती हैं. अपनी संतान की तरह पेड़ों की परवरिष करती हैं. कोई पेड़ काटने की कोषिष करे तो उससे चिपक कर खड़ी हो जाती हैं. अपनी जान पर खेलकर इनकी रक्षा करती हैं. इन्हें पता है कि पेड़ हमें आॅक्सीजन देकर वायुमंडल से कार्बनडाइआॅक्साइड की मात्रा कम करते हैं.
लाहौल में थरोट क्षेत्र के महिलामंडल ने एक प्रस्ताव पारित करके सामूहिक रूप से यह फैसला लिया है कि षीत मरुस्थल में यदि कोई पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाता पाया गया तो उस पर क्षेत्र का महिला मंडल पांच हजार रुपये का जुर्माना तो लगाएगा ही साथ मं उसका समाज से हुक्का-पानी भी बंद कर दिया जाएगा. लाहौल की तोंद घाटी के कवरिंग गांव की महिलाओं ने अस्सी के दषक से ही वन बचाओ अभियान को आरंभ किया. आज लाहौल घाटी का हर महिला मंडल वनों की पहरेदारी में संलिप्त है. लाहौल की महिलाएं वनों के साथ वन्यजीवों की भी रक्षा करती हैं.
लाहौल के वन मंडलाधिकारी एच.एल राणा का कहना है कि महिला मंडलों के भय से ही इस घाटी में वन रेंज का दायरा बढ़ा है. साल 2014 से पहले उदयपुर लकड़ी डिपो से सार्दियों में लाहौलवासियों को चार हजार क्विंटल वालन की आपूर्ति होती थी, इस बार मांग बढ़कर सात हजार क्विंटल हो चुकी है. अब लोग जलावन के लिए वनों से लकड़ी नहीं काट रहे हैं.
लाहौल घाटी में 6,365 स्क्वेयर किलोमीटर में वन हैं. सबसे ज्यादा वन तिंदी और उदयपुर रेंज में हैं. अब कायल, जुनिफर, देवदार, पाॅपुलर जंगली विलो जैसे पेड़ों का दायरा बढ़ा है. जिसका श्रेय लाहौल की महिलाओं को जाता है.
साल 2009 से पहले लाहौल से लकड़ी की तस्करी होती रही है पर जब से महिलाओं की प्रहरी बनी हैं, लकड़ी तस्करों की हिम्मत जबाब दे गई है.
प्रस्तुति- राहुल मानव
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