सोमवार, 11 जुलाई 2011

अफसरों ने सरकार को 2342 करोड़ रुपयों का चूना लगाया




जिन अफसरों और कर्मचारियों पर सरकारी करों और सेवाओं के शुल्क की वसूली का दायित्व है, वे किस लापरवाही और ग़ैर ज़िम्मेदारी से काम करते हैं, इसका खुलासा भारत के नियंत्रक- महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट में किया गया है.
कुछ मामलों में तो उद्योगों में लगने वाले कच्चे माल और अन्य वस्तुओं पर करारोपण किया ही नहीं गया और कई मामलों में तो अधिकारियों ने स्वविवेक से मनमाने तरीके से कर निर्धारण में और छूट दे दी. आबकारी विभाग, परिवहन विभाग, वाणिज्यकर विभाग, सिंचाई विभाग, मुद्रांक एवं पंजीयक विभागों में बड़ी मात्रा में कर निर्धारण में भूलचूक और गड़बड़ी होने से सरकार को एक वर्ष में ही करोड़ों रुपयों की आय से वंचित होना पड़ा है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक 31 मार्च 2009 को समाप्त वित्त वर्ष में विभिन्न करों और सरकारी सेवाओं के शुल्क के रूप में वसूल करने योग्य 2342 करोड़ रुपयों की धनराशि वसूल नहीं की जा सकी, क्योंकि कर निर्धारण में अधिकारियों ने गंभीरता से ध्यान नहीं दिया. कहीं, निर्धारित मात्रा से कम मात्रा में करारोपण किया, तो कहीं बिना दस्तावेजों के देखे ही व्यापारियों पर भरोसा करके कर राशि का निर्धारण कर दिया गया. किसी मामले में खरीदे गए और बेचे गए माल का सत्यापन किए बिना ही कर भुगतान को सही मानकर विभाग ने कर राशि जमा कर ली. कुछ मामलों में तो उद्योगों में लगने वाले कच्चे माल और अन्य वस्तुओं पर करारोपण किया ही नहीं गया और कई मामलों में तो अधिकारियों ने स्वविवेक से मनमाने तरीके से कर निर्धारण में और छूट दे दी. आबकारी विभाग, परिवहन विभाग, वाणिज्यकर विभाग, सिंचाई विभाग, मुद्रांक एवं पंजीयक विभागों में बड़ी मात्रा में कर निर्धारण में भूलचूक और गड़बड़ी होने से सरकार को एक वर्ष में ही करोड़ों रुपयों की आय से वंचित होना पड़ा है.
बकाया कर वसूली
मध्य प्रदेश सरकार की, वित्त वर्ष 2008-09 में कुल कर राजस्व आय 13613 करोड़ रुपए थी, लेकिन महालेखापरीक्षक की मानें तो 2342 करोड़ रुपयों का चूना तो अफसरों ने ही लगा दिया और वसूल होने लायक कर का निर्धारण ही नहीं किया. इसके अलावा लगभग 765 करोड़ रुपयों की कर राशि वसूल नहीं की और इसे बकाया राजस्व के मद में डाल दिया गया. कर वसूली में स़िर्फ एक विभाग नहीं, सभी विभाग लापरवाह हैं, इसे इस तालिका से समझा जा सकता है.
महालेखापरीक्षक ने विभिन्न दो लाख 96 हज़ार मामलों की जांच के बाद यह नतीज़ा निकाला है कि राज्य सरकार को 2342 करोड़ रुपयों का चूना लगा है. वाणिज्यकर में व्यापारियों द्वारा प्रतिभूति जमा करने के लिए वैधानिक प्रावधान की कमी के कारण 2 करोड़ 18 लाख रुपए प्राप्त नहीं हुए, जबकि इन्वेंटरी रिबेट तथा इनपुट टैक्स क्रेटिड का गलत लाभ दिये जाने से 16 लाख रुपए की चपत लगी. कर की गलत दर लागू किये जाने से 2 करोड़ 57 लाख, राज्य उत्पाद शुल्क के तहत निर्धारित अवधि में विदेशी मदिरा, बीयर तथा स्पिरिट के निर्यात, परिवहन में सत्यापन नहीं करने से 14 करोड़ 47 लाख, 4 हजार 851 रुपये वाहनों पर 7 करोड़ 46 लाख का दण्ड सहित करों का भुगतान नहीं लेने से 18 करोड़ 59 लाख रुपए का नुकसान सरकार को उठाना पड़ा.
सिंचाई और पेयजल हेतु पानी उपलब्ध कराने वाले जल संसाधन विभाग में कर वसूली में 589 करोड़ रुपयों की हानि हुई. सिंचाई क्षमता का उपयोग न होने से 160 करोड़ रुपयों की आय की क्षति हुई. इसके अलावा आबकारी विभाग को 13.47 करोड़ रुपयों के आबकारी शुल्क का नुकसान हुआ है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि 4851 वाहनों से वाहन कर के मद में 18.59 करोड़ रुपए न तो वाहन स्वामियों ने जमा कराया और न ही विभाग ने उनसे इस कर के भुगतान के बारे में कोई मांग की. भू राजस्व मद में एक करोड़ 53 लाख रुपए की हानि हुई. सरकारी वन विभाग में वाणिज्य कर और वैट कर प्राप्तियों के गलत निर्धारण से 200 करोड़ रुपए बढ़ाकर बताये गए, जबकि बांस का दोहन न होने से 11 करोड़ रुपयों की कर हानि हुई. सड़क विकास कर का निर्धारण न होने से 93.56 करोड़ रुपए और मुद्रांक शुल्क एवं पंजीयन फीस में 5.95 करोड़ रुपए कम मिले.  ज़िला कलेक्टरों को भेजे गए प्रकरणों के निराकरण में देरी के कारण 4.85 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ.
कर वसूली में लागत ज़्यादा आमद कम
मध्य प्रदेश सरकार में कर वसूली के काम में लागत ज़्यादा आती है, लेकिन लागत की तुलना में कर वसूली करने वाले अधिकारी, कर्मचारी काम करते हैं. विक्रयकर वसूली की कुल आय की तुलना में कुल ख़र्च का राष्ट्रीय औसत जहां 0.83 प्रतिशत है, वहीं मध्य प्रदेश में यह 1 से 1.41 फीसदी तक आता है. राज्य उत्पाद शुल्क वसूली में यह राष्ट्रीय औसत 3.27 फीसदी की तुलना में 19 से 21.96 फीसदी तक और मुद्रांक एवं पंजीयन शुल्क के मामले में राष्ट्रीय औसत 2.09 की तुलना में 2.92 फीसदी तक है. इसका अर्थ है कि राष्ट्रीय औसत की तुलना में मध्य प्रदेश अपने कर वसूली अमले पर ज़्यादा ख़र्च करता है, पर यह अमला लागत की तुलना में आमदनी कम ही करता है. इसका अर्थ स्पष्ट है कि कर वसूली के मामले में कहीं न कहीं कर वसूली करने वाले भ्रष्टाचार और निजी हित में काली कमाई करने में ज्यादा रुचि लेते हैं. अपने लाभ के लिए वे सरकारी कोष को चूना लगाने में ज़रा भी शर्म महसूस नहीं करते हैं.
विद्युत मंडल पर 745 करोड़ रुपया बकाया
इस रिपोर्ट में एक चौंका देने वाला तथ्य उजागर हुआ है. मध्य प्रदेश राज्य विद्युत मंडल ताप और जल विद्युत उत्पादन के लिए राज्य के जल संसाधन विभाग के स्त्रोतों से, जो पानी लेता है, उसके मद में 745 करोड़ रुपयों का बकाया चढ़ा हुआ है, लेकिन विद्युत मंडल इसका भुगतान नहीं कर रहा है. वर्ष 2004-05 में जल शुल्क का बकाया 185 करोड़ रुपए था जो विद्युत मंडल ने नहीं चुकाया और इसके बाद के वर्षों में भी मंडल अपने बिजली घरों के लिए मुफ्त पानी लेता रहा. मार्च 2008 तक उस पर 745 करोड़ रुपए की राशि बकाया हो गई, लेकिन जल संसाधन विभाग, विद्युत मंडल से यह धनराशि वसूल नहीं कर पाया.
विद्युत मंडल ने बाण सागर बांध से पानी लेने के लिए सरकार के जल संसाधन विभाग से कोई अनुबंध नहीं किया और बिना जल शुल्क चुकाए पानी लेना शुरू कर दिया. परिणामस्वरूप दिसंबर 2008 तक मंडल पर अकेले बाण सागर बांध के पानी का 586 करोड़ रुपया बकाया हो गया, लेकिन मंडल ने उसका कोई भुगतान नहीं किया.
सिंचाई क्षमता के उपयोग में कमी
जल संसाधन विभाग द्वारा अरबों-खरबों रुपए खर्च करके पिछले 62 वर्षों में राज्य में तैयार की गई सिंचाई क्षमता का कभी भी 50 प्रतिशत तक भी उपयोग नहीं किया गया है. वर्ष 2004-05 में कुल सिंचाई क्षमता का 46 प्रतिशत उपयोग हुआ तो वर्ष 2006-07 से वर्ष 2008-09 तक केवल 35 प्रतिशत उपयोग ही होता आया है. क्षमता का पूरा उपयोग न होने से हर साल जल शुल्क के मद में सरकार को 25 से 40 करोड़ रुपयों तक की क्षति हुई है. वर्तमान में राज्य में कुल 125.35 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई क्षमता विकसित की जा चुकी है, लेकिन राज्य का जल संसाधन विभाग उपलब्ध क्षमता का केवल 39 प्रतिशत ही उपयोग कर पाता है और इस कारण लगभग 161 करोड़ रुपयों के राजस्व की क्षति हुई है.
वित्त प्रबंधन में लापरवाही
भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट देखने से साफ पता चलता है कि राज्य सरकार के वित्त प्रबंधन में भारी लापरवाही बरती जा रही है. एक ओर तो राज्य सरकार विकास और जनकल्याण के लिए हमेशा धन की कमी का रोना रोती है और केंद्र सरकार से मिलने वाली मदद को कम बताती है, तो दूसरी ओर सरकार अपने आय के संसाधनों और स्रोतों का पूरा-पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाती.
मध्य प्रदेश के कर राजस्व प्राप्तियों में वर्ष 2004-05 से 2008-09 तक वृद्धिदर 15.01 प्रतिशत रही और वर्ष 2009-10 में वृद्धिदर 18.08 प्रतिशत रही, जबकि इस अवधि में केंद्र से केंद्रीय करों में राज्य के हिस्से के रूप में मिलने वाला अंशदान 21.87 प्रतिशत की दर से बढ़ा तथा केंद्रीय अनुदान 27.46 प्रतिशत से 52.07 प्रतिशत तक बढ़ा है.
वर्ष 2009-10 में राज्य की कुल कर राजस्व आय 16075 करोड़ रुपए थी जबकि केन्द्र से अनुदान और कर हस्तांतरण के रूप में कुल 19949 करोड़ रुपए मिले.

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