अपने हक़ों की ख़ातिर यूनियन के साथ आएँ!
अपने हक़ों की ख़ातिर यूनियन के साथ आएँ!
झूठे प्रोफार्मे पर दस्तख़त न करें!
मेट्रो रेल के हमारे कर्मचारी साथियो!
शायद आपको पता न हो कि दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन ने अपने स्टेशनों पर काम करने वाले टाम आपरेटरों, हाउसकीपरों और सिक्योरिटी गार्डों की न्यूनतम मज़दूरी को बीते 1 अप्रैल, 2011 से बढ़ा दिया है। न्यूनतम मज़दूरी अब अकुशल मज़दूरों के लिए रु. 6422, अकुशल मज़दूरों के लिए रु. 7098, कुशल मज़दूरों के लिए रु. 7826, और अति कुशल मज़दूरों के लिए रु. 8502 प्रति माह होगी। हम सभी जानते हैं कि ठेका कम्पनियाँ पहले भी न्यूनतम मज़दूरी कानून का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन कर रही थीं और तय न्यूनतम मज़दूरी नहीं दे रही थीं। ऐसे में, काग़ज़ों पर न्यूनतम मज़दूरी बढ़ जाने से हमें क्या लाभ? इसी मुददे को उठाते हुए दिल्ली मेट्रो रेल के समस्त ठेका मज़दूरों की अपनी यूनियन 'दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन' पिछले 2 वर्षों से संघर्ष कर रही है। और इस संघर्ष के दबाव में ही 30 मर्इ को डी.एम.आर.सी. ने ठेका कम्पनियों को एक सर्कुलर भेजा है। इस सर्कुलर में डी.एम.आर.सी. ने चार बातें कहीं हैं। पहली बात यह कि ठेका कम्पनियाँ 1 अप्रैल से लागू न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान एरियर के साथ ठेका मज़दूरों को करे। दूसरी बात, वेतन का भुगतान कर्मचारी के एकाउंट में किया जाना चाहिए, या फिर चेक से; जब तक एकाउंट नहीं खुलता, और अगर किन्हीं आपात परिसिथतियों में नकद में भुगतान करना पड़े तो वह स्टेशन मैनेजर की उपस्थिति में होना चाहिए। तीसरी बात यह है कि स्टेशन मैनेजर को यह सुनिशिचत करने के लिए हर माह कर्मचारियों से एक प्रोफार्मे पर हस्ताक्षर कराने होंगे, कि न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान हो रहा है, र्इ.एस.आर्इ., पी.एफ. आदि सुविधाएँ दी जा रही हैं। और आखि़री बात यह कही गयी है कि यह प्रोफार्मा हर माह मैनेजरसहायक मैनेजर-लाइंस के जरिये मैनेजर आपरेशंस, ट्रेनिंग इंस्टीटयूट को भेजा जाएगा।
इस सर्कुलर से साफ हो गया है कि डी.एम.आर.सी. यह स्वीकार कर रही है कि स्टेशनों पर उसकी ठेका कम्पनियाँ अब तक न्यूनतम मज़दूरी व अन्य नियमों का पालन नहीं कर रही हैं जो कि संविधान की धारा 21 का नग्न उल्लंघन है। दूसरी बात यह कि डी.एम.आर.सी. मज़दूरी के भुगतान के समय अपने नुमाइन्दे को स्टेशनों पर नहीं भेजती है, जो कि ठेका मज़दूर; विनियमन व उन्मूलन कानून 1971 का उल्लंघन है, वरना उसे पता होता कि न्यूनतम वेतन का भुगतान होता है या नहीं। साफ है, कि डी.एम.आर.सी. और ठेका कम्पनियों ने मिलकर स्टेशन स्टाप़फ, यानी टाम आपरेटरों, हाउसकीपरों और सिक्योरिटी गार्डों को लूटने का एक तन्त्र बना रखा है। 27 मर्इ को 'दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन के मज़दूरों द्वारा क्षेत्रीय श्रमायुक्त कार्यालय में हुर्इ सुनवार्इ के बाद डरकर डी.एम.आर.सी. दिखावे के लिए कुछ कदम उठाने का नाटक कर रही है।
ऐसे में, दिल्ली मेट्रो रेल में काम करने वाले टाम आपरेटरों, हाउसकीपरों और सिक्योरिटी गार्डों से 'दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन' कहना चाहती है कि यह ठेका कम्पनियों द्वारा जारी खुली बेशर्म लूट का पर्दाफाश करने का मौका है। आप ऐसे किसी भी प्रोपफार्मा पर हस्ताक्षर न करें जिसमें न्यूनतम मज़दूरी आदि के बारे में ग़लत सूचनाएँ दर्ज हो। यानी, यदि उसमें लिखा हो कि आपको न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान हो रहा है, और आपको उतनी मज़दूरी न मिल रही हो तो प्रोफार्मे पर दस्तख़त करने से इंकार कर दें। क्योंकि अगर आप दस्तख़त करते हैं तो इसका अर्थ होगा कि आपने ठेका कम्पनियों की इस धोखाधडी को स्वीकार कर लिया है। अगर 4000-5000 रुपये में ही खटना है तो हम कहीं भी खट सकते हैं। ऐसे में, गुलामी करते हुए और बेइज़्ज़ती सहते हुए क्यों मरते रहें? आपके पास यही मौका है कि आप ठेका कम्पनियों की ग़ैर-कानूनी हरक़तों को बेनक़ाब कर सकते हैं। इसलिए झूठी सूचना वाले प्रोफार्मे पर हरगि़ज़ दस्तख़त न करें। ऐसा करने पर यदि आपको डराया-धमकाया जाता है या काम से निकाला जाता है तो नीचे दिये नम्बर पर 'दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन' से सम्पर्क करें और यूनियन इस मामले को लेकर कानूनी तौर पर और आन्दोलनात्मक तौर पर संघर्ष करेगी। याद रखें, यूनियन हर कदम पर आपके साथ है। दूसरी बात यह कि यदि आपको एकाउण्ट के जरिये भी भुगतान होता है तो भी वेतन पर्ची ;वेज सिलपद्ध की माँग करें, जिस पर पी.एप़फ, र्इ.एस.आर्इ. आदि जैसी सभी कटौतियाँ दर्ज हों। तीसरी बात यह कि ठेका कम्पनियों के तहत मेट्रो रेल में काम करने वाले सभी कर्मचारी जब तक 'दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन' के सदस्य नहीं बनेंगे तब तक हम अलग-अलग इन कम्पनियों और डी.एम.आर.सी. के अत्याचार के खि़लाप़फ नहीं लड़ सकते हैं। इसलिए, अगर अभी तक आप यूनियन के सदस्य न बनें हों तो निम्न फोन नम्बरों पर सम्पर्क करके यूनियन के सदस्य बनें। यूनियन ही हमारी शक्ति है। अगर हमारी यूनियन मज़बूत होगी तो हमें कोर्इ लूट नहीं सकेगा। साथियो, हम सभी जानते हैं कि किस प्रकार नौकरी देने के लिए सिक्योरिटी के नाम पर हमसे 60-70 हज़ार रुपये तक वसूल लिये जाते हैं; जो कि ग़ैर-कानूनी है, हमें आम तौर पर कोर्इ नियुक्ति पत्र नहीं दिया जाता ; यह भी ग़ैर-कानूनी है, ताकि हम पूरे समय उनकी जूती के नीचे दबकर काम करें। और उसके बाद भी हमें स्थायी न करना पड़े, इसके लिए कभी साल तो कभी डेढ़ साल में हमें किसी न किसी बहाने से काम से निकाल दिया जाता है। ऐसे में, हमें हासिल ही क्या हो रहा है? कुछ भी नहीं! इसलिए ऐसा कुछ खोने से क्या डरना जो हमारे पर है ही नहीं? इसलिए डर और भय को छोड़कर यूनियन के साथ आएँ! झूठे प्रोफार्मे पर हस्ताक्षर न करें! वेज सिलप माँगें! यूनियन के मेम्बर बनें! डी.एम.आर.सी. और ठेका कम्पनियों के अपवित्र गठबंधन से अपना हक़ लड़कर लेने के लिए आगे आएँ!
बिन हवा न पत्ता हिलता है!
बिना लड़े न कुछ भी मिलता है!
दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन
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