गांवों में पार्टी की जड़ें तलाशने के अभियान के तहत उत्तर प्रदेश भाजपा के तमाम छोटे बड़े नेता गांवों की ओर कूच कर गए, लेकिन ज्यादातर दिग्गज नेताओं ने दूरदराज के गांवों के टेढ़े-मेढ़े और ऊबड़-खाबड़ रास्तों के बजाय महानगरों के नजदीक उन गांवों को चुना है जहां सभी साधन सुविधाएं मुहैया हैं। कुछ गांव तो ऐसे हैं जो बिलकुल शहर में ही है और कुछ तो सिर्फ नाम के गांव हैं। भाजपा नेताओं को सबसे ज्यादा रास आए हैं नोएडा या फिर उसके पास के गांव। पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के लिए दिल्ली-नोएडा के करीब मेरठ के भदसौना गांव को चुना गया है। प्रदेश मुखिया सूर्य प्रताप शाही के लिए भी दिल्ली से ही सटे गौतमबुद्धनगर का गांव तलाशा गया है। यह है दादरी का प्यावली गांव। भाजपा विधायक दल के नेता ओमप्रकाश सिंह ने नोएडा सेक्टर 63 के ग्राम गढ़ी बहलोलपुर में, प्रदेश प्रभारी नरेंद्र सिंह तोमर गाजियाबाद में धौलाना क्षेत्र के गांव गालंद में, सह प्रभारी करूणा शुक्ला नोएडा के भंघेल गांव में, सह संगठन महामंत्री सौदान सिंह मोदीनगर के गांव डिडौली में व लज्जा रानी गर्ग ने पिलखुवा में प्रवास करना पसंद किया है। गांव चलो अभियान के तहत किसी भी बड़े नेता ने बुंदेलखंड या पूर्वाचल में दूरदराज क्षेत्रों के गांवों की ओर रुख करने की जहमत नहीं उठाई है। भाजपा ने शहरों में सिमटते जनाधार को देख मिशन उप्र की कामयाबी के लिए गांव का रास्ता पकड़ा है।
भाजपा का गांव की ओर रुख करना यूं ही नहीं है। हाल के पंचायत चुनावों के नतीजे गांवों में पार्टी की दुर्गति साबित करने के लिए काफी हैं। सूबे के आठ नगर निगमों पर काबिज भाजपा 72 जिला पंचायतों में से मात्र एक ही जीत सकी। इसके अलावा 813 ब्लाकों में होने वाले प्रमुखों के चुनाव को लेकर भी पार्टी उत्साहित नहीं हैं। गांवों में सियासत की धुरी माने जाने वाले पंचायत, सहकारी समितियां, गन्ना व दुग्ध उत्पादक समिति जैसे चुनावों को लेकर भाजपा उदासीनता बरतती रही है, जबकि समाजवादी पार्टी सत्ताधारी बसपा के सामने समर्पण करने के बजाय जमकर डटी रही। भारतीय जनता पार्टी से जुड़े विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि दिल्ली के आसपास बड़े नेताओं का कार्यक्रम लगाने की वजह कुछ और नहीं बल्कि गाजियाबाद में क्षेत्रीय समिति की बैठक होना रहा। उनका यह भी कहना है कि गांव चलो अभियान में नेताओं का रात्रि प्रवास अनिवार्य नहीं वरन स्वेच्छा पर निर्भर है। मुख्य उद्देश्य गांवों में जनसंपर्क कर उनकी समस्या सुनना और भाजपा की रीति नीति से अवगत कराते हुए प्रदेश व केंद्र सकार की विफलताएं बताना है। इसके लिए विशेष पत्रक भी घर-घर बांटा जा रहा है।
भाजपा का गांव की ओर रुख करना यूं ही नहीं है। हाल के पंचायत चुनावों के नतीजे गांवों में पार्टी की दुर्गति साबित करने के लिए काफी हैं। सूबे के आठ नगर निगमों पर काबिज भाजपा 72 जिला पंचायतों में से मात्र एक ही जीत सकी। इसके अलावा 813 ब्लाकों में होने वाले प्रमुखों के चुनाव को लेकर भी पार्टी उत्साहित नहीं हैं। गांवों में सियासत की धुरी माने जाने वाले पंचायत, सहकारी समितियां, गन्ना व दुग्ध उत्पादक समिति जैसे चुनावों को लेकर भाजपा उदासीनता बरतती रही है, जबकि समाजवादी पार्टी सत्ताधारी बसपा के सामने समर्पण करने के बजाय जमकर डटी रही। भारतीय जनता पार्टी से जुड़े विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि दिल्ली के आसपास बड़े नेताओं का कार्यक्रम लगाने की वजह कुछ और नहीं बल्कि गाजियाबाद में क्षेत्रीय समिति की बैठक होना रहा। उनका यह भी कहना है कि गांव चलो अभियान में नेताओं का रात्रि प्रवास अनिवार्य नहीं वरन स्वेच्छा पर निर्भर है। मुख्य उद्देश्य गांवों में जनसंपर्क कर उनकी समस्या सुनना और भाजपा की रीति नीति से अवगत कराते हुए प्रदेश व केंद्र सकार की विफलताएं बताना है। इसके लिए विशेष पत्रक भी घर-घर बांटा जा रहा है।
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