रविवार, 10 जुलाई 2011

रिटायरमेंट, पुनर्नियुक्ति, इस्‍तीफाः निदेशक की मनमानी सब पर भारी

पटना का इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, अपनी तमाम विशेषताओं के बावजूद आजकल विवादों से घिरा हुआ है और इसके केंद्र में हैं संस्थान के निदेशक. संस्थान के वर्तमान निदेशक डॉ. अरुण कुमार का कार्यकाल और क्रियाकलाप विवादों से भरा हुआ है. अपनी मनमर्ज़ी चलाते हुए उन्होंने तमाम नियम क़ानून को ताक़ पर रख दिया है. वह जो चाहते हैं वही होता है. नतीजतन एक अधिकारी जिस दिन रिटायर होता है उसी दिन उसे फिर से बहाल भी कर देते हैं. चौथी दुनिया की खास रिपोर्ट:
इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. अरुण कुमार के कार्यकाल और क्रियाकलाप विवादों से भरा हुआ है. संस्थान के चिकित्सक पद पर सेवारत डॉ. अरुण कुमार को पदोन्नत करके निदेशक बनाया गया था. इस पद पर आते ही डॉ. कुमार ने अपनी मनमानी चलानी शुरू कर दी. पहले संस्थान परिसर को जानवरों से मुक्त कराने के नाम पर संस्थान की चहारदीवारी करवाने का काम शुरू किया, लेकिन जानवरों पर लगाम लगाने के नाम पर आम लोगों की आवाजाही पर रोक लगा दी गई. राजीव नगर, केसरी नगर, महेश नगर आदि मोहल्ले के लोग संस्थान के किनारे से निकले मार्ग से होकर बेलीरोड की ओर आसानी से आ जा सकते थे, लेकिन एक दिन नवनिर्मित चहारदीवारी गिर गई. इस दुर्घटना में एक शख्स की मौत हो गई, जिसका नाम भोला सहनी (35 वर्ष) था. उसकी मौत के बाद से उसका परिवार स़डक पर आ गया. इस मौत और घटिया तरीक़े से बनाई गई दीवार की तहक़ीक़ात शुरू कर दी गई है.
डॉ. बेनी माधव को दिनांक 30/11/2010 से ही सेवानिवृत करने का कार्यालय आदेश संख्या 5393/प्रशा. दिनांक 30/11/2010 को निर्गत किया गया. इस आदेश में भी ग़लत तरीक़े से उन्हें मुख्य प्रशासनिक पदाधिकारी के पद से सेवानिवृत दिखाया गया है. उक्त कार्यालय के आदेश के तुरंत बाद ही आदेश संख्या 5394/प्रशा. दिनांक 30/11/2010 द्वारा डॉ. बेनी माधव को अध्यक्ष शासी निकाय के अनुमोदन के आलोक में दिनांक 1/12/2010 के प्रभाव से ग़ैर-स्वीकृत पद मुख्य प्रशासी पदाधिकारी के पद पर दोबारा नियुक्त करने का आदेश पारित किया गया.
लेकिन यह घटना तो डॉ. अरुण कुमार की मनमानी का एक उदाहरण भर है. असली खेल और असली कहानी तो और भी गंभीर है. मामला संस्थान के प्रशासनिक पदाधिकारी डॉ. बेनी माधव और आशुलिपिक के पद पर बहाल संतोष चार्ली से जु़डा है. वर्ष 1984 में डॉ. बेनी माधव प्रशासनिक पदाधिकारी के पद पर बहाल हुए. डॉ. बेनी माधव 30/11/2010 को सेवानिवृत हो गए, लेकिन यहीं पर संस्थान के निदेशक डॉ. अरुण कुमार ने अपनी मनमानी चलाते हुए और नियम क़ानून की बखिया उधे़डते हुए डॉ. बेनी माधव को 30/11/2010 को ही फिर से प्रशासनिक पदाधिकारी के पद पर नियुक्ति का आदेश दे दिया. इतना ही नहीं, डॉ. बेनी माधव को मुख्य प्रशासनिक पदाधिकारी के साथ-साथ उप निदेशक (प्रशासन) भी बना दिया. ग़ौरतलब है कि इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना में मुख्य प्रशासनिक पदाधिकारी का पद स्वीकृत ही नहीं है फिर भी डॉ. बेनी माधव को मुख्य प्रशासनिक पदाधिकारी बनाया गया और ग़लत ढंग से संस्थान से अधिक वेतन दिया गया.
डॉ. बेनी माधव को दिनांक 30/11/2010 से ही सेवानिवृत करने का कार्यालय आदेश संख्या 5393/प्रशा. दिनांक 30/11/2010 को निर्गत किया गया. इस आदेश में भी ग़लत तरीक़े से उन्हें मुख्य प्रशासनिक पदाधिकारी के पद से सेवानिवृत दिखाया गया है. उक्त कार्यालय के आदेश के तुरंत बाद ही आदेश संख्या 5394/प्रशा. दिनांक 30/11/2010 द्वारा डॉ. बेनी माधव को अध्यक्ष शासी निकाय के अनुमोदन के आलोक में दिनांक 1/12/2010 के प्रभाव से ग़ैर-स्वीकृत पद मुख्य प्रशासी पदाधिकारी के पद पर दोबारा नियुक्त करने का आदेश पारित किया गया. नियम के मुताबिक़ सक्षम प्राधिकार की अनुमति के बिना किसी की नियुक्ति/पुनर्नियुक्ति नहीं की जा सकती है. इसके अलावा, आशुलिपिक के पद पर की गई नियुक्ति भी विवादों में घिर गई. इस पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन पत्र देने के लिए स़िर्फ पांच दिन का समय दिया गया, वो भी इस संबंध में सूचना स़िर्फ नोटिस बोर्ड पर दी गई थी. नियमत: पांच रिक्ति तक के लिए नियोजनालय से नाम मांगा जाना चाहिए था या समाचार पत्र में विज्ञापन प्रकाशित करना था.
बहरहाल, राज्य सरकार ने इस पूरे मामले की समीक्षा के उपरांत निर्णय लिया है कि बिना विहित प्रक्रिया के अपनाए इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना के कार्यालय के आदेश संख्या 5394/प्रशा. दिनांक 30/11/2010 के द्वारा ग़ैर सृजित पद पर डॉ. बेनी माधव का दिनांक 30/11/10 के अपराह्‌न से सेवानिवृत के उपरांत पुनर्नियुक्ति के आदेश को निरस्त किया जाए. साथ ही, आशुलिपिक के पद पर की गई नियुक्ति को निरस्त करने का निर्णय लिया गया है. सरकार ने यह आदेश चेतना मंच, पटना के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रह्लाद पासवान के शिकायत पत्र के आलोक  में दिया है. इस संबंध में विस्तृत पड़ताल करने के बाद स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त सचिव विश्व मोहन प्रसाद सिंह ने इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना के निदेशक को जारी ज्ञापांक 1/आई018/2009. 341(1)स्वास्थ्य पटना, दिनांक 24/05/2011 को कहा है कि डॉ. बेनी माधव का सेवानिवृति के उपरांत पुनर्नियुक्ति एवं विज्ञापन संख्या 11 /स्टेनो- एडहॉक/ स्था0/2010 के आलोक में आशुलिपिक के पद पर की गई नियुक्ति को निरस्त करने के संबंध में प्रस्ताव पारित कर दिया है.
साथ ही सरकार ने निदेशक डॉ. अरुण कुमार से भी पूछा है कि डॉ. बेनी माधव की सेवानिवृति के उपरांत पुनर्नियुक्ति के लिए क्या ऐसी कोई हड़बड़ी या आकस्मिकता आ गई थी कि आदेश संख्या 5393/प्रशा. दिनांक 30/11/2010 द्वारा सेवानिवृति और उसी दिन अनुक्रमित आदेश संख्या 5394/प्रशा. दिनांक 30/11/2010 के द्वारा पुनर्नियुक्ति का आदेश पारित कर किया गया. आ़खिर क्यों इसके लिए ज़रूरी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई, जबकि यह आवश्यक था. पत्र में सरकार की ओर से लिखा गया है कि पुनर्नियुक्ति के बाद संविदा पर नियत वेतन पर या किसी भी प्रकार से नियुक्ति वैसे व्यक्ति की ही होनी चाहिए जिनकी छवि बेदाग़ हो, लेकिन डॉ. बेनी माधव को विधानसभा की विशेषाधिकार समिति ने प्रशासनिक पद से हटाने का आदेश दिया था. उच्चस्तरीय समिति में लिए गए

निर्णय पर दोबारा उन्हें प्रशासनिक पद से हटाया गया, फिर भी वैसे व्यक्ति को प्रशासनिक पदाधिकारी के ग़ैर सृजित पद पर पुनर्नियुक्त कर दिया गया है. इस बीच, डॉ. बेनी माधव को यह एहसास हो गया था कि उनके खिला़फ क़डी कार्रवाई हो सकती है. नतीजतन, उन्होंने 3 मई 2011 को ही इस्ती़फा दे दिया. जब डॉ. माधव को जानकारी मिली कि स्वास्थ्य विभाग से पुनर्नियुक्ति को निरस्त कर दिया है तो आनन-फानन में 25 मई 2011 से ही संस्थान की नौकरी से फरार हो गए.
बहरहाल, संस्थान के निदेशक की इस मनमानी से इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान और सरकार की साख को बट्टा तो लग ही चुका है. ग़लत तरीक़े से नियुक्त डॉ. बेनी माधव तो पद से हटा दिए गए, लेकिन क्या उन्हें ग़लत ढंग से नियुक्त करने वाले डॉ. अरुण कुमार के खिला़फ सरकार कोई कार्रवाई करेगी?

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