दिल्ली भले ही देश का दिल हो, मगर इसके दिल का किसी ने हाल नहीं लिया। पुलिस मुख्यालय, सचिवालय, टाउनहाल और संसद देखने वाले पत्रकारों की भीड़ प्रेस क्लब, नेताओं और नौकरशाहों के आगे पीछे होते हैं। पत्रकारिता से अलग दिल्ली का हाल या असली सूरत देखकर कोई भी कह सकता है कि आज भी दिल्ली उपेक्षित और बदहाल है। बदसूरत और खस्ताहाल दिल्ली कीं पोल खुलती रहती है, फिर भी हमारे नेताओं और नौकरशाहों को शर्म नहीं आती कि देश का दिल दिल्ली है।
दरअसल, इस व़क्त देश के विभिन्न हिस्सों में ज़मीन बचाने को लेकर जो किसान आंदोलन चल रहे हैं, उसी की क़डी में एक और नाम मेवात के किसानों का भी जु़ड गया है. हरियाणा सरकार ने इंडस्ट्रियल मॉडल टाउनशिप (रोजका) बनाने के नाम पर मेवात के किसानों से 1600 एक़ड ज़मीन का अधिग्रहण किया है, लेकिन किसानों का मानना है कि उन्हें अपेक्षाकृत बहुत ही कम मुआवज़ा दिया जा रहा है. ये किसान इसी मुद्दे को लेकर पिछले कई महीने से अपनी ल़डाई ल़ड रहे हैं. बहरहाल, यह ल़डाई हरियाणा से चल कर दिल्ली तक पहुंच गई है. 16 जून को हज़ारों मेवाती किसान, महिलाएं जंतर-मंतर पहुंचे. इस उम्मीद में कि वो राहुल गांधी उनकी बात को सुनेंगे, जो भट्टा पारसौल में जाकर किसानों के दर्द पर मरहम लगाते हैं. हसन खान मेवाती, मेवात के राजा थे. 1527 में बाबर के खिला़फ ल़डते हुए एक ही दिन में 12 हज़ार मेवाती योद्धा शहीद हो गए थे. शहीद इसलिए हुए क्योंकि अपनी ज़मीन को विदेशी आक्रांताओं से बचाना था. वह ज़माना और था. अब देश में लोकतंत्र है. कहने को अपनी सरकार है, लेकिन इस बार अपनी ज़मीन बचाने के लिए मेवात के लोगों के पास अपना गौरवपूर्ण इतिहास दोहराने का भी विकल्प नहीं बचा है, क्योंकि लोकतंत्र में सशस्त्र संघर्ष की अनुमति नहीं है और शांतिपूर्ण प्रदर्शन की गूंज सरकारी दरवाज़ों को भेद नहीं पाती.दरअसल यह पूरा मामला अभी तक मुआवज़े की रक़म पर केंद्रित रहा है. हरियाणा सरकार ने आईएमटी रोजका मेव के लिए जिन किसानों से 1600 एक़ड ज़मीन अधिग्रहित की थी उन्हें छह महीने पहले ही मुआवज़ा दे दिया गया था. मुआवज़े के तौर पर इन किसानों को 16 लाख रुपए प्रति एक़ड दिए गए, लेकिन मामला तब बिग़डा जब कुछ ही दिनों बाद सरकार ने नई भूमि अधिग्रहण नीति बना दी. नई नीति के मुताबिक़ मेवात के किसानों को प्रति एक़ड 35 लाख रुपए मुआवज़ा देने की बात थी. ज़ाहिर है जिन किसानों की ज़मीन 16 लाख रुपए प्रति एक़ड ली गई थी, उनके लिए यह नई नीति किसी अन्याय से कम नहीं थी. ऐसे में विरोध होना स्वाभाविक भी था. सो, विरोध के स्वर भी उठे और अब धीरे-धीरे ये स्वर तेज़ भी होते जा रहे हैं. दिल्ली पहुंचे इन हज़ारों किसानों में महिलाओं की संख्या भी अच्छी-खासी थी. ऐसा माना जाता है कि मेवात क्षेत्र के अल्पसंख्यक समाज की महिलाएं अमूनन घर से बाहर नहीं निकलतीं, लेकिन दिल्ली के जंतर-मंतर पर उनकी संख्या देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता था कि मामला सचमुच गंभीर है. अब सवाल ज़्यादा मुआवज़े का नहीं है. सवाल ज़मीन का है. अगर सरकार को ज़मीन लेनी ही है तो किसानों से बातचीत कर के और किसानों की शर्त पर ही मिलेगी. इस प्रदर्शन में जितनी संख्या में महिलाएं आई हैं उससे साबित होता है कि अब मेवात के लोग चुपचाप नहीं बैठेंगे. हमलोग दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार को भी बता देना चाहते हैं कि अगर मेवात के इन लोगों को छे़डा गया और इनके साथ न्याय नहीं हुआ तो दिल्ली थम जाएगी.इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन में मेवात के कई संगठनों ने हिस्सा लिया और इसकी अगुवाई की जद(यू) सांसद अली अनवर अंसारी ने. अली अनवर जद(यू) नेता होने के साथ ही ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ के भी अध्यक्ष हैं और इस मंच के माध्यम से पिछ़डे मुसलमानों की समस्याओं को उठाते रहे हैं. मेवात के किसानों के भूमि अधिग्रहण और असमान मुआवज़े का विरोध जताते हुए अली अनवर कहते हैं कि अब हम लोग स़िर्फ ज़्यादा मुआवज़े की ही नहीं, बल्कि इस बात की ल़डाई ल़ड रहे हैं कि सरकार ग़रीब किसानों की ज़मीन मनमाने ढंग से न ले सके. अगर सरकार को ज़मीन चाहिए तो वह किसानों की शर्त पर ले. असल में, 1600 एक़ड ज़मीन के अधिग्रहण से मेवात के 9 गांव प्रभावित हो रहे हैं. किसान मुख्यमंत्री और राज्यपाल को 7 अप्रैल और 24 मई को ज्ञापन भी दे चुके हैं, लेकिन इसका कोई असर अब तक देखने को नहीं मिला है. इसके अलावा जिस भूमि का अधिग्रहण किया गया है वह कुंडली-मानेसर पलवल एक्सप्रेस वे के दोनों तऱफ स्थित है. इस हिसाब से देखें तो इस ज़मीन की बाज़ार क़ीमत करो़डों में है, लेकिन सरकार ने चतुराई से यह ज़मीन महज़ कुछ लाख रुपए प्रति एक़ड के मुआवज़े पर किसानों से ले ली. दूसरी ओर, फरीदाबाद के किसानों से जब ज़मीन अधिग्रहित की गई थी तब वहां के किसानों को 45 लाख रुपए प्रति एक़ड का मुआवज़ा दिया था. ज़ाहिर है, ऐसी स्थिति में मेवात के 9 गांवों के किसान खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. बहरहाल, योद्धाओं के वंशजों यानी मेवात के किसानों के इस आंदोलन का अंतिम परिणाम क्या होगा, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता. लेकिन, देश भर में ज़मीन बचाने को लेकर जिस तेज़ी से आंदोलनों की जो आंधी चल रही है वह वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए तो क़तई शुभ संकेत नहीं मानी जा सकती. इसे भी पढ़े... Tags: Farmer Judge Land Mewat Movement acquisition compensation law अधिग्रहण आंदोलन किसान न्याय भूमि मुआवज़ा मेवात व्यवस्था ज़मीन June 30th, 2011 | Print This Post | Email This Post |174 views |
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