शनिवार, 23 जुलाई 2011

प्रेसक्लब डायरी / अनामी शरण बबल



24जुलाई2011

 मनमोहन, सोनिया और राहुल के ट्यूटर जेडी
कांग्रेस में जेडी का बड़ा जलवा है। जेडी यानी जर्नादन द्विवेदी। सोनिया गांधी देश में जो कुछ भी बोलती है, वो जुबान भले ही सोनिया की हो मगर हर शब्द का राईटर जेडी होते है। हिन्दी के जानकार जेडी को इसका पूरा इनाम भी मिला है। दिल्ली  हिन्दी अकादमी से उठाकर मैडमजी ने सीधे राज्यसभा सांसद बनवा दिया। हिन्दी वाणी और सोनिया की जुबानी का जादू कुछ इस तरह को है कि ज्यादातर लोगों को सोनिया की भाषा पसंद आने लगी। राहुल के लिए भी पटकथा लिखने वाले जेडी युवराज से थोड़ा परेशान रहते है, राहुल बाबा इसमें कभी कभी इतना संशोधन कर देते हैं कि पटकथा राईटर का पूरा श्रेय बाबा खुद ले जाते हैं। मगर जेडी को सबसे ज्यादा दिक्कत होती है अपने ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए 15 अगस्त की पटकथा लिखने में। हिन्दुस्तान के पीएम होने के बाद भी साल भर में केवल एक दिन यानी 15 अगस्त को हिन्दी बोलने वाले पीएम मन साहब को हिन्दी बोलने में काफी परेशानी होती है। उनके लिए सरल से सरलतम भाषा में पटकथा लिखना और हर शब्द के उच्चारण का रियाज कराते हुए उन्हें उस शब्द को फर्राटे से बोलने का प्रैक्टिस कराने का पूरा जिम्मा जेडी को दी जाती है। व्यस्त रहने वाले पीएम तो हमेशा फ्री होते नहीं, लिहाजा समय असमय देर रात को पीएम हाउस में जेडी को तलब की जाती है। और अपने हिन्दी के मास्टर  जेडी साहब  को पीएम दरबार में जाकर अंग्रेजी दां मन साहब को हिन्दी का ककहरा जुबान पर याद दिलानी पड़ती है। अपने जेडी साहब फिलहाल 15 अगस्त तक सांसत में है, क्योंकि अगर कभी पीएम की जुबान से कोई शब्द फिसल गई तो इसका खामियाजा अपने हिन्दी के गौरव जेडी को चुकानी पड़ सकती है।


 कांग्रेसी महाजन

रंग रूप और पेशा बदलने में गिरगिट को भी मात देने वाले पत्रकार से सांसद बने राजीव शुक्ला के संसदीय मंत्री बनते ही ढेरो उधोग घरानों की पौ बारह हो गई है। पिछले चार माह से साउथ एवं नार्थ ब्लाक में ज्यादातर लोगों के लिए वर्जित सा हो गया था। मगर मुकेश से लेकर अनिल अंबानी गोदरेज और कई मोबाइल कंपनियों के स्वामी  राहुल से मिलकर सुकून महसूस कर रहे है। राहुल से जलने वालों की कोई कमी नहीं है। दिल्ली की राजनीति करने वाले एक कांग्रेसी ने शुक्ला के बारे में बतायाकि यह आदमी भाजपा के प्रमोद महाजन का भी बाप है..एक ही साथ सोनिया राहुल प्रणव ममता माया नीतिश लालू और मनमोहन से लेकर नरेन्द्र मोदी को तक को साधने में माहिर है। इस पर सबका एक समान यकीन भी होता है। टाटा बिरला अंबानी गोदरेज सहारा भारती से लेकर दर्जनों मल्टीनेशनल वाले भी इसके आगे पीछे मंडराते रहते है। यानी सौ तालों की एक चाभी शुक्लाजी के मंत्रीमंडल में आते ही क्रिकेट से लेकर बालीवुड तक के लोगों को दिल्ली में काम कराना आसान सा हो गया।


फिर निकल गई लालू पासवान की हवा


मंत्री बनते बनते रह गए लालू इन दिनों काफी हताश है। एकाएक नीतिश राज में जमीन घोटाला की खबर पाते ही मानो लालू ने अंगड़ाई ले ली हो। मगर नीतिश ने नहले पर दहला फेकते हुए जांच के आदेश और सबों के उपर कार्रवाई का फरमान जारी करके ेक बार फिर लालूपासवान की हवा निकाल दी।अपनी सुस्ती और निराशा को फेंकते हुए वे पटना में जाकर हंगामा करने की ठान ली। पासवान के साथ मिलकर इस घोटाले को सार्वजनिक करने की रणनीति पर मंथन करने लगे। दोनों मिलकर अभी नीतिश को घेरने की योजना ही बना रहे थे कि नीतिश ने जमीन के आवंटन को रद्द करके सबों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दे डाला। यानी मंत्री बनते बनते संतरी बन गए लालू के हाथ फिर खुछ नहीं आया। जब लालू से संपर्क साधा गया तो वे कन्नी काटते हुए अपनी पीड़ा प्रकट की। का करे लड्डू मिलते मिलते तो लकठो (एक मिठाई)भी नहीं मिल पाया।


घर में भी तो .कभी शेर बनो अन्ना

आमतौर पर ज्यादातर लोग घर के शेर होते है। घर से बाहर निकलते ही दुबक जाने वाले घरेलू शेर अपने घर में सबों के सामने भूंकते रहते है। मगर अन्ना के साथ मामला ही कुछ और है। दाद  देनी होगी वे बाहर इतने दबंग और निर्भीक हो जाते हैं कि क्या पीएम से लेकर सीएम, होम मिनिस्टर और सिब्बल, दिग्गी से लेकर राहुल सोनिया सबों  पर लाठी भांजने लगते है।  वाकई अन्ना हजारे ने इस बार कमाल कर दिया। लोकपाल बिल क्या आया कि अन्ना अपने जीवन में प्रचार और नाम कमाने के गोल्डेन युग का स्वाद ले रहे है। अन्ना का यह पुराना रिकार्ड रहा है कि वे महाराष्ट्र की सीमा मे रहते हुए अपनी जुबान हमेशा बंद रखते हैं। चाहे बाल ठाकरे और राज ठाकरे की गुंड़ई का मामला हो या आदर्श घोटाला हो या कोई भी होराफेरी हो, मगर अन्ना एक शरीफ आदमी ही बने रहते है। लोकपाल और घोटालो को एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में अन्ना का योगदान है, मगर बाल(राज,उद्वव) ठाकरे के सामने हमेशा अपनी जुबान बंद रखने वाले अन्ना क्या पिछले छह माह के दौरान मुंबई-दिल्ली की हवाई यात्राओं के खर्चे का हिसाब सामने रखना पंसद करेंगे कि उनका खजांची कौन है जिसके बूते वे आजकल हवा में रहकर हवाई बाते करने लगे हैं।

 बातूनी पोलिटिक्स खतरे में  

लगता है बोलने की कला में माहिर वाचाल नेताओं समाजसेवकों पर शनि की चाल ठीक नहीं है। देश भर में आग लगाते हुए कभी घूमने वाले प्रवीण तोगडिया कहां गायब हो गए। शायद यह पता लगाने के लिए अखबारों का सहारा लेना पडे। काला धन का देश व्यापी राग अलापने वाले अपने योग गुरू का दिल्ली के राम(देव) लीला में इस तरह की पटकनी दी गई  कि एक माह से ज्यादा हो गया अब ना पेपर में ना टीवी में बाबा रामदेव दिख रहे है ना ही बोल रहे है.। हाजिरजवाब और हमेशा नहले पर दहला मारने वाले अपने अमर सिंह भी मुलायम से अलग होते ही गुम से हो गए. मगर अपने अमर बाबू संसद में नोट 4 वोट के खेल में इस तरह घिरते जा रहे हैं कि अब इनको भी पालिटिकल मंदिर तिहाड़ जाने का खतका दिखने लगा है। जुबानी राजनीति करने वाले अमर इस संकट से कैसे पार पाएंगे। यह देखना सबसे दिलचस्प लग रहा है।

. और अब एनडीएमसी सुप्रीमों घेरे में .

 कामनवेल्थ गेम भले ही खत्म हो गया हो, मगर इस खेल के करप्ट खिलाड़ियों की धरपकड़ का काम अभी चालू है। आयोजन समिति के मुखिया कलमाड़ी साहब तो जेल में जाकर भी कईयों को अपना शिकार बना डाला। एनडीएमसी के मुखिया परिमल राय पर भी करप्शन के दाग जगजाहिर होता दिख रहा है। करप्शन की जांच कर रही शुंगलू कमेटी ने परिमल पर सवाल उठाते हुए उनके शहरी विकास मंत्रालय में जाने की तमाम संभावनाओं पर पानी फेर दिया। शुंगलू कमेटी ने होम मिनिस्टर को पत्र लिखकर परिमल राय के तबादलों पर रोक लगाने की सिफारिश की। कमेटी को आशंका है कि शहरी विकास मंत्रालय में जाकर परिमल जांच में बाधक बन सकते है। यानी परिमल के दागदार होने से बचने की तमाम संभावनाओं पर पानी फिरता दिख रहा है।



बुढौती में जिद

काग्रेस में रहकर जीवनभर मलाई चाभने और सुंदर कन्याओं के समीप रहने वाले पूर्व सीएम एनडी तिवारी का बुढ़ापा जलालत बनता जा रहा है। दक्षिण में राज्यपाल रहते हुए कन्याओं के शौकीन साहव कुछेक कन्याओं के संग रासलीला मनाते हुए राजभवन में ही पकड़े गए। इज्जत गंवाकर दिल्ली पहुंचे नेताजी को अपना बाप मानने वाला एक युवक ने कोर्ट से यह गुहार किया कि इसकी जांच कराई जाए। कोर्ट के सख्त रवैये के बाद भी अपने खून कासैंपल देने से इंकार करते हुए तिवारीजी ना नुकूर कर रहे है। अब उनको यह डर सताने लगा है कि डीएनएन टेस्टके बाद तो फिर कोई बहाना नहीं चलेगा। काम वासना के ता उम्र गुलामी करने वाले नेताजी ही क्या पूरे देश को सब पता है मगर जिद में ही सबकी भलाई है।

आय से अधिक के फेर में ताउ खानदान

आय से अधिक संपति होना तो नेताओं की शान होती है, मगर कोर्ट कचहरी का बुरा हो , जो खुर्दबीन लगाकर नेताओं की संपति का लेखाजोखा करने लगी है। हरियाणा के ताउ देवीलाल के सुपुत्र ओम प्रकाश चौटाला और इनके दोनों सुपुत्र अभय और अजय चौटाला इन दिनों आयसे अधिक संपति होने के आरोपों का सामना कर रहे हैं। कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाते हुए देवीलाल के परिजनों की तमाम सफाईयों के बाद भी कोर्ट यह मानने को राजी नहीं है कि करोड़ों अरबों की यह संपति पुश्तैनी है। सवाल लाख टके की यह है  कि यह मामला कब तक निपटता है।



सज्जन की सज्जनता

1984 के दंगों के आरोपों से घिरे पूर्व सांसद सज्जन कुमार वाकई एक सज्जन पुरूष है। इन दंगों के भूत से उन्हें 28 साल के बाद भी छुटकारा नहीं मिल पा रहा है। कोर्ट कचहरी और जांच ट्रिब्यूनलों के चक्कर में सांसद बनना कठिन हो गया। अब तक सब्र वान होने का प्रमाण दे रहे सज्जन आखिरकार कोर्ट में बेसब्र हो गए और अपने गवाहों और चश्मदीदों की विश्वसनीयता पर ही सवाल उठाते हुए उनके पाक दामन होने का मुद्दा रखा। सज्जन कुमार का यह विलाप क्या रंग लाएगा, इसका फैसला तो वक्त ही करेगा, मगर अब जाहिर हो गया है कि खामोशी के खोल से बाहर निकलते हुए सज्जन कुमार अब जल्द से जल्द निपटारा चाहते है।

कांग्रेसी भोंपू

कांग्रेस में आजकल काम कम और बातचीत ज्यादा हो रही है। रोजाना हंगामा खड़ा करना ही मेरा मकसद है की तर्ज पर सिब्बल दिग्गी जेडी को कुछ भी कहीं पर भी बोलने या चीखने  कीछूट मिली हुई है। पार्टी की साख बचाने के लिए यह जरूरी भी है, क्योंकि युवराज तोदिल्ली में तो मौनी बाबा का रूप धारण कर लेते है।सोनिया अम्मां भी रायबरेली औरअमेठी से पहले कुछ नहीं बोलती। और बाल बच्चों  से छुटकारा पाकर प्रियंका दीदी भी कभी कभार ही मदर या ब्रदर के  हंगामा खड़ा करती है। यानी पार्ट टाईम पोलटिक्स कर रहे गांधी खानदान के महारथियों के पास देश या पार्टी के लिए फुल टाईम नहीं है। और अपने महान शांत और ईमानदार पीएम भी जरूरत से ज्यादा कभी नहीं बोलते। वे इतना कम और धीमा बोलते हैं कि ज्यादातर लोगों को इनकी आवाज नहीं सुने  है।  इस खालीपन को भरने के लिए ही हमेशा बोलने के लिए वि(कु) ख्यात सिब्बल जेडी और दिग्गी(राजा) को खुला छोड़ दिया गया है। साहित्यकारों के संग रहने की वजह से जेडी तो अपने उपर लगाम लगा लेते हैं,मगर कोर्ट में चीखने के अभ्यस्त वकील साहब घर से लेकर संसद और गली मोहल्लातक भूलजाते है कि यहां बोलना मना है। मधेशिया से बाहर आए दिग्गी को भी  जुबान के बूते ही दिल्ली मे टीकना है, लिहाजा अपनी नौकरी और सरकारी घर बचाने के लिए  (बे) मतलब का कुछ भी बोलते रहना बहुत जरूरी है। आजकल पार्टी भी इन्हीं भोंपूओं के बूते देश में कहीं अपने होने का अहसास करा रही है.

,कलमाड़ी रोग

आमतौर पर नेताओं को भूलने का रोग होता है। जनता से वादा करके बड़ी बेशर्मी से भूल जाना या अपनी जनता को देखकर उसको ना पहचानना आम बात होती है। नेताओ को ना चाहे  को भूलने में ही अपना हित नजर आता है। कामनवेल्थ गेम मे भारी घोटाला करके तिहाड सुख ले रहे सुरेश कलमाड़ी को भी भूलने का रोग हो गया है। हालांकि कोर्ट को इनके रोग पर यकीन नहीं हो रहा है, तभी तो एम्स में एमआरआई   करके डाक्टरों से रपट मांगी है। अब देखना यही है कि सेटिंग करने में सबसे अव्वल कलमाड़ी इस बार क्या एम्स के डाक्टरों पर दाना डालते हुए सेट कर पाते हैं।  गेम घोटाला की तरह ही रोग का गोरखधंधा भी कलमाड़ी को शर्मसार करने के लिए तैयार है। हालांकि माना तो जा रहा है कि इनको यह रोग वकीलों के कहने पर हुआ है ,मगर जांच में तो दूध का दूध और पानी के अलग होने की उम्मीद है।

मम्मी चिंता

आमतौर पर मां की चिंता से हर बेटा को चिंतित होना ही चाहिए, और आजकल पूर्वी दिल्ली जिसे यमुनापार भी कहा जाता है के युवा ( और कभी कभार दिखने वाले) सांसद संदीप दीक्षित भी काफी चिंतित है। वजह , दिल्ली की सीएम मम्मी शीला दीक्षित भी आजकल कई तरह की दिक्कतो से  दो चार हो रही है। एक तरफ एलजी की बंदूक सीएम पर है। उधर लोकायुक्त मनमोहन सरीन भी शीला को पस्त करने में लगे है। शुंगलूकमेटी  रपट में शीला पर भी गेम घोटाले के छींटे पड़े है। पार्टी के भीतरघात से अलग दिक्कत चल रही है। अब देखना है कि अपने खासमखास राजकुमार चौहान को मनमोहन के फंदे से बचाने वाली शीला इस बार गरीबों को मकान देने के झूठे प्रचार से इस बारकैसे बच पाती है। मम्मी की चिंता ओढ़कर शीला के सांसद पुत्र क्या कुछ नया पैंतरा चलेंगे यह तो राम ही जाने।

द्वारका लैईन में मेट्रो परेशानी

मेट्रो को दिल्ली का लाईफलाईन या जीवनरेखा मानने वाले विरोधी लोग भी दिल्ली की सीएम शीला के इस काम की तारीफ करना नहीं भूलते। ज्यादातर लोग यह भूल चुके है कि इसकी शुरूआत बीजेपी काल में ही हो गया था। मगर शीला और बीजेपी के साथ साथ मेट्रो सुप्रीमो  श्रीधरण को जमकर आज भी कोसने वालों की कोई कमी नहीं है। खासकर द्वारका से लेकर सीपी के बीच में पड़ने वाले लाखो लोग तो इसे मेठ्रो करप्शन मानते है, और इनकी शिकायत जायज भी है। धरण से लेकर अनुज दयाल की लाख वकालत और के बादभी इस रूट में कब और कहां पर मेट्रो का डिब्बागोल हो जाए ये तो मेट्रोमैन को भी नहीं पता। कमाल तो ये है कि इस रूट पर अब तक सैकड़ों बार मेट्रो का दम टूट चुका है फिर भी मेट्रो इंजीनियरों को बीमारी का पता नहीं लग पाया है। यानी दिल्ली से जाने की तैयारी कर रहे धरण  इस  प्रोब्लम को सुलझाए बगैर ही भागने वाले है।

नेताओं और नौकरशाहों की हरियाली

अपनी दिल्ली हरी भरी है। लाखो पेड़ लगे हैं और हरियाली को औरज्यादा करने के नाम पर साल में कई-कई बार लाखों पेड़ लगाए जाते हैं। कभी कामनवेल्थ के नाम पर लाखों पेड़ लगते हैं तो कभी मेट्रो के नाम पर पेड़ों को लगाया जाता है। बगैर किसी हंगामे के एमसीडी और एनडीएमसी द्वारा हर साल लाखों पेड़ लगाकर हरियाली को और घना किया  जाता है। पेड़ लगाने के बाद टै्कर से सिंचाईऔर मालियों को रखकर देखरेख भी कराया जाता है। यानी करोड़ो की होली के बाद हरियाली से दिल्ली के लोग चैन से रहते हैं। आक्सीजन बैंक के नाम पर लगने वाले करीब 95 फीसदी पेड़ एक माह के अंदर मुर्छा जाते है या गायब हो जाते है। दिल्ली की हरियाली कागजों मे और नेताओं नौकरशाहों के घर की हरियाली से राष्ट्रपति भवन का गार्डन भी शर्मसार होने लगता है।







 नेताओ, नौकरशाहों और दलालों की चांदी
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देश भर में विकास की योजनाओं को हरी झंड़ी देकर अमूमन सो जाने वाला योजना आयोग इस समय कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो उठा है। कई सरकारों औरएनजीओ द्वारा बच्चों को 10रूपए और 20 रूपए में बढ़िया खाना देने पर कटघरे में ला दिया है.। भरपूर
आहार देने के तरीकों पर खफा है। यानी अहलूवालिया साहब थोड़ा रंज होकर  इस राशि को और बढ़ाकर नेताओ, नौकरशाहों दलालों और ठेकेदारों की चांदी करने वाले है।
 एमसीडी में समानांतर सत्ता 

272 पार्षदों वाली एमसीडी में यों तो गुटबाजी गिरोहबंदी एक दूसरे को पछाड़ने, मार काट की राजनीति चलती ही रहती है, मगर अब निगम के आला अधिकारियों के बीच भी अपनी पहचान और धाक जमाने का नया खेल शुरू हो गया है। खासकर निगमायुक्त केसी मेहरा को इस बार चुनौती मिली है एडीशनल कमीश्नर  दिग्गल से। यहां के सबसे करप्ट फैक्ट्री लाईसेसिंग डिपार्टमेंट के सभी इस्पेक्टरों को एक ही झटके में पत्ता साफ कर दिया। जनक दिग्गल की इस कार्रवाई से मेहरा भी भौंचक रह गए,मगर कुछ बोल नहीं सके। निगम के 55 साल के इतिहास में पहली बार धमाल करने वाले दिग्गल को लेकर खूब शोर है। अब देखना ही है कि अपने मातहत दिग्गल की लोकप्रियता को मेहरा बर्दाश्त कर पाते हैं या दूसरे आफीसरो की तरह इनको भी ऱूखसत करके ही दम लेंगे।
सिफारशी लेटर की राजनीति

सिफारशी लेटर की राजनीति करने वाले विपक्ष के नेता पंडित जयकिशन शर्मा केसिफारिशी लेटर की पूरे निगम में धूम है। हर एक के लिए सिफारिशी लेटर लिखने को हमेशा तैयार जयकिशन के लेटरों के बूते दर्जनों अधिकारी निगम में रौब झाड़ रहे है। फैक्ट्री लाईसेंसिंग डिपार्टमेंट मेंपहले एओ बने गुप्ता को लिखे पत्र से जयकिशन की खूब किरकिरी हुई थी। वहीं आजकल नए इंस्पेटर बनकर आए दिनेश कुमार शर्मा भी भोंपू बनकर विपक्ष के नेता की सिफारिशी लेटर का हवाला देकर अपना रौब गांठने में लगे है। घाघ और पुराने कांग्रेसी नेता होकर भी नौसिखुओं को लेटर लिखने से इन्हें परहेज करना होगा अन्यथा दिनेश कुमार शर्मा अपने साथ साथ जयकिशन शर्मा की नाव को लेकर डूबते नजर आएंगे।

18अखिलेश की मुलायम लीला

नोएड़ा के भट्टा पारसौल में किसानों को भड़काकर कांग्रेस के राहुलस बाबा ने पूरे यूपी का पोलिटिकल तापमान हाई कर दिया है। भूमि अधिग्रहण विवाद इतना गहराया  कि नोएडा के सैकड़ों गांव अब इसमें कूद पड़े है। नोएड़ा अथारिटी समेत प्रदेश की मुखिया मायावती भी राहुल बाबा द्वारा लगाए इस आग के असर से परेशान तबाह है। यूपी का शंमा ही बदला सा है। हालांकि आग का यह गोला चुनाव तक वोट में रह पाता है या नहीं यह तो कोई नहीं जानता, मगर बाबा लीला से अपन मुलायम भैय्या भी कम परेशान नहीं है। राहुल की सक्रियता को देखकर मुलायम ने अपने सांसद पुत्र को भी जबरन मैदान में भेजा। बाबा के समानांतर अक्कू को खड़ा करने में नाकाम मुलायम अपने बेटे को पोलिटिकल घूंटी नहीं पीला पा रहे है। हालांकि पूर्वाचल का दौरा कर रहे अक्कू जनता की बजाय पत्रकारों पर डोरे डाल रहे है। वेतन के लिए गठित मजीठिया आयोग की सिफारिशों को लागू कराने के लिए संसद में संघर्ष करने का दावा करते फिर रहे अक्कू लीला से पत्रकारों के साथ साथ सपा को कितना लाभ होगा ये तो मुलायम बाबू भी नहीं बता सकते हैं।

अन्ना लीला से पहले

राम(देव) लीला के बाद 16 अगस्त से दिल्ली में अन्ना हजारे की लीला चालू होने वाली है.। सत्ता को चुनौती देते हुए अन्ना लोकपाल बिल के लिए पीएम से लेकर तमाम लोगों पर हमला कर रहे है।मगर अन्ना की रैली को सफल बनाने के लिए अन्ना गुट के लोग मोबाइल से मैसेज देकर कार्यकर्त्ता बनने की गुजारिश कर रहे है। एक ही मैसेज कई मोबाइल नंबरों से आते है। तो वहीं दूसरी तरफ रामलीला मैदान से रामदेव की हवा निकालने वाली यूपीए सरकार इस बार अन्ना की हवा निकालने के लिए तैयार बैठी है। रामदेव की तरह ही अन्ना को भी कुचलने की धमकीदेने वाला संदेश भी दिल्ली के मोबाइल धारको को लगातार मिल रहे है। बुलंद हौसलके साथ अन्ना एंड कंपनी को खामोश करने के लिए महाभारत की रणनीति बनाने में कांग्रेस के महारथी लगे है। अब देखना यही है कि हमेशा मीठा बोलने वाले ईमानदार  मनमोहन के राज में क्या जनहित और देशहित में आवाज उठाना भी संभव होगा या दिल्ली पुलिस के डंडों के आगे पीएम की ही बोलती बंद होकर रह जाएगी।

साख बचाना भी भारी
दिल्ली विधानसभा में बैठकर कुछ माह पहले अवैध निर्माण के खिलाफ एक स्पेशल टास्क फोर्स गठित करने और सघन अभियान चलाने का प्रस्ताव पारित किया।   अब  फोर्स ने काम चालू कर दिया तो भाजपा समेत तमाम कांग्रेसी भी इसके खिलाफ होकर इसे बंद कराने के लिए   सरकार को घेरने लगे। सबको अपना अपना वोट बैंक खिसकता हुआ दिख रहा है। टास्क फोर्स को हटाने और तोड़े गए मकानों को अनुदान दिलाने की मांग जोर पकड़ती दिख रही है। अगले साल निगम में चुनाव है। एकतरफबीजेपी दोबारा सत्ता में लौटना चाहती है, तो फिर से कांग्रेस को निगम में जीत दिलाकर
शीला कोई बड़ा प्लान कर रही है। मगर जनता को रूलाकर और घर से उजाड़कर तो शीला को साख बचाना भी भारी पड़ेगा।



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