क्या हो गया है प्रधानमंत्री को…
अवनीश सिंह

वहीं दूसरी तरफ स्वच्छता का आवरण ओढ़े माननीय मनमोहन सिंह देश की जनता को अपनी साफ़-सुथरी पगड़ी (छवि) दिखाने में मशगूल हैं। लेकिन कहां-कहां सरकार बचेगी….लोग तो अब खुलकर कहने लगे हैं कि देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार सहित विपक्ष के कुछ नेताओं ने विदेशों में कालेधन जमा करा रखे हैं। ऐसी अवस्था में देश सच्चाई जानना चाहेगा। भ्रष्टाचार के शिष्टाचार में लाचार सत्ता की कमान संभाल रहे ये लोग लोकप्रतिनिधि हैं, वे जनता के प्रति जिम्मेदार हैं। फिर जनता को अंधकार में क्यों रखा जा रहा है… क्यों कभी अन्ना हजारे को तो कभी बाबा रामदेव को अनशन और आन्दोलन करने पड़ रहे हैं। पूरा तंत्र सिर्फ आम आदमी की कीमत पर अपनी जेब भरने में लगा है। फिर चाहे वो कांग्रेस की प्रयोगशाला के भ्रष्टाचार रूपी परखनली से निकले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे अशोक चव्हाण हों या फिर सुरेश कलमाडी। ए राजा हो या करुणानिधि की बेटी कनिमोड़ी।
भारत में जैसे जैसे भ्रष्टाचार का मुद्दा गर्माता जा रहा है, राजनेताओं की छिछालेदार सामने आ रही है, आश्चर्य तो तब होता है जब भारत की राजनीति के प्रेम चोपड़ा कांग्रेस महामंत्री दिग्विजय सिंह हर उस व्यक्ति के कपडे उतारने लग जाते हैं, जो भी भ्रष्टाचार के विरूद्ध अपनी आवाज उठाता है और पूरी कांग्रेस पार्टी में एक भी ऐसा नेता नहीं है जो उनसे कहे कि वे अपना अर्नगल प्रलाप बंद करें। तो क्या यह नहीं माना जाना चाहिये कि दिग्विजय सिंह 10 जनपथ के इशारे पर ये सब हरकतें कर रहे हैं। समझ में नहीं आता कि वे किसके सामने अपनी निष्ठां दिखाना चाहते हैं। सोनिया गाँधी के प्रति या भारत के प्रति।
सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि आजादी के इतने बरसों के बाद भी देश में लंबे समय तक शासन का अनुभव रखने वाली कांग्रेस सरकार को अभी तक यह समझ में नहीं आया है कि भ्रष्टाचार से कैसे निपटा जाए। कॉमनवेल्थ घोटाला, आदर्श घोटाला, टेलीकॉम घोटाला और स्पैक्ट्रम घोटाला… एक के बाद एक महाघोटाले ने सरकार के सामने संकट खड़ा कर दिया है। वो तो भला हो इस देश की न्यायपालिका का जिसने थोड़ी ईमानदारी का परिचय देते हुए बेईमान कलमाड़ी और राजा-रानी (ए. राजा, कोनीमोझी) जैसे देश के दलालों को सलाखों के पीछे पहुंचाकर स्थिति को थोडा संभाल लिया। इन मामलों में केंद्र सरकार को न तो कोई रास्ता सूझ रहा है और न ही कड़े फैसले करने की हिम्मत दिख रही है। ये अलग बात है की सरकार न्यायालय की इस करवाई का श्रेय अपने ऊपर लेकर अपनी पीठ अपने ही हाथ ठोंक ले।

आज जनता जब महंगाई, भ्रष्टाचार, लूट खसोट के सारे इतिहास पलट कर देखती हैं तो अपने आप को सबसे ज्यादा लुटा हुआ इसी सरकार के कार्यकाल में पाती हैं। दान में मिली सत्ता से मनमोहन सिंह जी को अगर जरा भी अपनी साख बचानी हैं तो इस्तीफ़ा दे देना चाहिए… वर्ना इतिहास कहेगा की “इस देश में एक ऐसा प्रधानमंत्री था जिसे एक महिला ने कठपुतली की तरह नचाया…..” अब तो प्रधानमंत्री के बारे में यह अवधारणा बन चुकी है कि इस सरकार को कोई अदृश्य शक्ति चला रही है। वह संवैधानिक दृष्टि से संसद के प्रति जवाबदेह हैं, लेकिन वस्तुतः वह सोनिया गांधी के प्रति उत्तरदायी हैं। आजादी के बाद इतना कमजोर प्रधानमंत्री शायद किसी ने देखा हो, जिसका अपनी सरकार के काम-काज पर ही नियंत्रण नहीं है। यह भी तय है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले समय में माननीय मनमोहन सिंह सबसे भ्रष्ट सरकार के अगुआ के ख़िताब से नवाज़े जायेंगे।
आप इस संदिग्ध सच्चाई को स्वीकरिए या धिक्कारिए…लेकिन नकार नहीं सकते।
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