रविवार, 10 जुलाई 2011

फिरोजाबाद में उबलते किसान--एक और किसान आंदोलन


फिरोजाबाद रोड स्थित वायुसेना कैंप के निकट वायुसेना की यूनिट खोलने के लिए टूंडला ब्लॉक की पांच ग्राम पंचायतों पचोखरा, देवखेड़ा, छिकाऊ, हिम्मतपुर और गढ़ी हरराय की 1785 एकड़ यानी 10 हज़ार बीघा ज़मीन अधिग्रहीत की जाएगी. इन पंचायतों के अंतर्गत 29 गांव आते हैं, जिनकी कुल आबादी 85 हज़ार है. सबसे अधिक पचोखरा पंचायत प्रभावित होगी, जिसकी 1475 एकड़ उपजाऊ भूमि अधिग्रहीत होगी. बाक़ी चार पंचायतों से 60-60 एकड़ भूमि का अधिग्रहण होना है. इस खबर से क्षेत्र के किसानों में खलबली मच गई है, लेकिन वे संगठित हैं, उनका कहना है कि वे अपनी जान दे देंगे, पर भूमि का अधिग्रहण नहीं होने देंगे.
आंदोलन में महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, वे मौक़ा पड़ने पर स्वयं मोर्चा भी संभाल रही हैं. गांव-गांव चल रही बैठकों से यही आवाज़ निकल कर आ रही है कि लोग किसी भी हालत में अपनी ज़मीन अधिग्रहीत नहीं होने देंगे. महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रशासन इस मामले में पूरी तरह चुप्पी साधे हुए है.
क्षेत्र की पूरी भूमि तीन फसली है और यहां मुख्य रूप से आलू की खेती होती है. यहां की भूमि को चकबंदी विभाग ने ए ग्रेड दे रखा है. यही कारण है कि किसान अपनी उपजाऊ भूमि के अधिग्रहण की आशंका के मद्देनज़र संगठित हैं. किसानों ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, रक्षा सचिव, वायुसेना अध्यक्ष, विंग कमांडर एयरफोर्स स्टेशन आगरा, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश और ज़िलाधिकारी फिरोज़ाबाद को ज्ञापन भेजकर भूमि अधिग्रहण न करने की गुहार लगाई है. अधिग्रहण की खबर से गांव इमलिया के 66 वर्षीय पन्नालाल कश्यप की हृदयगति रुक जाने से मौत हो गई. वह बेचैन थे कि पुरखों की जायदाद क्या यूं ही छिन्न-भिन्न हो जाएगी. परिवार के पालन-पोषण का जरिया क्या जड़ से समाप्त हो जाएगा. इसी प्रकार 8 अगस्त, 2010 को गांव बुर्ज भजन में किसानों की सभा हो रही थी, तभी 70 वर्षीय किसान गीतम सिंह फांसी का फंदा डालकर एक पेड़ पर झूल गए. किसानों ने तुरंत उन्हें उतार कर अस्पताल पहुंचाया और उनकी जान बचा ली. बाद में मालूम हुआ कि गीतम सिंह ने भूमि अधिग्रहण की आशंका से पिछले चार-पांच दिनों से खाना-पीना तक छोड़ रखा था.
आंदोलन में महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, वे मौक़ा पड़ने पर स्वयं मोर्चा भी संभाल रही हैं. गांव बुर्ज भजन में भूमि अधिग्रहण के विरोध में आयोजित सभा में एक महिला किसान किरन देवी ने कहा कि यदि ज़मीन चली गई तो बच्चे भूखे मर जाएंगे. वह किसी भी हालत में ऐसा नहीं होने देंगी और यदि सरकार ने जबरदस्ती की तो वह परिवार सहित आत्मदाह कर लेगी. आत्मदाह करने की धमकी कई किसानों ने दे रखी है. गांव-गांव चल रही बैठकों से यही आवाज़ निकल कर आ रही है कि लोग किसी भी हालत में अपनी ज़मीन अधिग्रहीत नहीं होने देंगे. महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रशासन इस मामले में पूरी तरह चुप्पी साधे हुए है. वह कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर रहा. प्रशासन की चुप्पी किसानों को अंदरखाने बहुत डरा रही है. लोगों को लगता है कि शासन राष्ट्रहित का तर्क देकर चिन्हित भूमि को अधिग्रहीत करने का आदेश न दे दे और प्रशासन लोगों को उनकी ज़मीन से बेद़खल करने की कार्रवाई न शुरू कर दे. पचोखरा बेल्ट के गांवों में गली से लेकर चौपाल तक हर आदमी आशंकित है. किसी को अपनी ज़मीन चले जाने की आशंका है तो किसी को मकान, दुकान और रोजगार का साधन.
कुछ लोग किसानों का आंदोलन कमजोर करने के लिए यह भी कह रहे हैं कि सरकार ज़मीन मुफ्त तो लेगी नहीं, वह अधिग्रहण की जाने वाली ज़मीन का उचित मुआवज़ा देगी. फिर क्षेत्र के लोग इतने परेशान क्यों हो रहे हैं, इतनी हाय-तोबा क्यों कर रहे हैं? किसान वह पैसा खर्च करके कहीं और बस सकते हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या कोई लोकतांत्रिक सरकार बसे-बसाए मकान-दुकान ध्वस्त करके लोगों को निर्दयता से निर्वासित कर सकती है, जबकि उसके पास अन्य सस्ते और अच्छे विकल्प मौजूद हों? सरकार भूमि का मुआवज़ा तो दे देगी एक निर्धारित दर से, लेकिन क्या उस मुआवज़े से भूमि-भवनों की क्षतिपूर्ति हो जाएगी? क्या भूमि-भवन बनाने में मात्र धन ही लगता है? सही बात तो यह है कि किसी भी भूमि-भवन में व्यक्ति-परिवार पीढ़ियों का वर्षों का त्याग, तपस्या, बुद्धि, कौशल, भावनाओं एवं संवेदनाओं का समावेश होता है, जिसे धन से नहीं मापा जा सकता. पुनर्वासित होने में बहुत कुछ टूटता-बिखरता है, जिसे मुआवज़े से पूरित नहीं किया जा सकता. मुख्य बात यह कि मुआवज़े की रक़म हाथ में आने पर किसान उसे खर्च करने की योजनाएं बनाने लगता है. नकद रक़म का अधिकांश हिस्सा वह सुख-सुविधाओं और अन्य कामों पर खर्च कर बैठता है. रीति-रिवाज निभाने में, जहां वह पहले क़िफायत से काम लेता था, उदारता से खर्च करने लगता है. धीरे-धीरे रक़म खत्म या अल्प हो जाती है और वह खाली हाथ रह जाता है.
मान लीजिए, एक किसान के पास 25 बीघे ज़मीन है. वह तो मुआवज़े से किसी दूसरे स्थान पर जाकर अपने को जैसे-तैसे पुनर्वासित कर लेगा, लेकिन किसी व्यक्ति ने मात्र पचास-सौ गज में अपना मकान बना रखा है और उसमें ही एक दुकान करके वह अपने परिवार का गुजारा कर रहा है, तो क्या वह मिलने वाले थोड़े मुआवज़े में अपने परिवार को पुनर्वासित करके बारा़ेजगार हो सकेगा? क्षेत्र में ऐसे हज़ारों किसान- मजदूर भी हैं, जिनके पास भूमि के नाम पर कुछ भी नहीं है. वे स़िर्फ मेहनत-मजदूरी करके अपना गुजारा करते हैं. उन्हें मुआवज़े में क्या मिलेगा? निर्वासित तो वे भी होंगे! हम मानते हैं कि राष्ट्रहित का तर्क सर्वोपरि है, लेकिन किसी भी भूमि को चिन्हित करने से पूर्व यह तो सोचना ही चाहिए कि अन्य विकल्प क्या-क्या मौजूद हैं. कौन सा विकल्प पर्यावरण की दृष्टि से उत्तम है और कौन सा विकल्प योजना को कार्यान्वित करने के लिए क़िफायती रहेगा.

अधिग्रहण की चपेट में क्या-क्या आएगा

ग्राम पंचायत पचोखरा
एक इंटर कालेज, पांच उच्च प्राथमिक स्कूल, एक प्राचीन जैन मंदिर, पुलिस थाना, दूरसंचार केंद्र, पशु चिकित्सालय, बीज गोदाम, आंगनवाड़ी केंद्र, सामुदायिक केंद्र, व्यवसायिक केंद्र, स्वास्थ्य केंद्र, पशु हाट, पेट्रोल पंप, दो अंबेडकर पार्क, तीन कोल्ड स्टोरेज, दो प्राचीन शिव मंदिर, पांच बारातघर, दस बाग-बगीचे, पानी की टंकी जो 36 गांवों को पेयजल मुहैय्या कराती है और एक मस्जिद.
ग्राम पंचायत देवखेड़ा
एक इंटर कालेज, चार उच्च प्राथमिक विद्यालय, पांच प्राथमिक विद्यालय, पंचायत घर, दो अंबेडकर भवन, एक मिलन केंद्र, स्वास्थ्य केंद्र, साधन सहकारी समिति का गोदाम, तीन प्राचीन मंदिर, पांच बाग-बगीचे आम, कटहल एवं नींबू के और एक मस्जिद.
ग्राम पंचायत छिकाऊ
कुसुमा देवी दीक्षित महाविद्यालय, एक उच्च प्राथमिक विद्यालय, तीन प्राथमिक विद्यालय, बीज गोदाम, आंगनवाड़ी केंद्र, स्वास्थ्य केंद्र और पंचायत घर.
ग्राम पंचायत हिम्मतपुर
आंशिक भूमि और भवन.
ग्राम पंचायत गढ़ी हरराय
एक उच्च प्राथमिक विद्यालय, एक प्राथमिक विद्यालय, आंगनवाड़ी केंद्र और एक मंदिर. यह एक मोटा हिसाब है प्रमुख सार्वजनिक स्थलों का. इसके अलावा लगभग दस-बारह हजार रिहायशी भवन, जो एक मंजिल से लेकर तीन मंजिल तक हैं.

क्षेत्रीय लोगों ने सुझाए विकल्प

  • चिन्हित भूमि से 7 किलोमीटर दूर यमुना नदी से पहले बड़ी मात्रा में बीहड़ी जमीन है. यह भूमि वायुसेना अपनी यूनिट बनाने के लिए विकसित करे तो इससे पर्यावरण को लाभ होगा.
  • जनपद फिरोजाबाद की सीमा पर स्थित जलेसर, जनपद एटा के ग्राम जरानीकलां के पास से जनपद मैनपुरी तक ऊसर-बंजर भूमि को अधिग्रहीत करना उचित रहेगा और आर्थिक दृष्टि से लाभकारी भी.
  • इसी क्षेत्र के पश्चिम में लगभग पांच किलामीटर की दूरी पर एत्मादपुर तहसील जनपद आगरा के पास हजारों एकड़ ऊसर-बंजर भूमि पड़ी है.

मेरे संज्ञान में ऐसी कोई समस्या नहीं: राकेश

टूंडला के विधायक राकेश बाबू को जब बताया गया कि वायुसेना की यूनिट खोले जाने के लिए पचोखरा की 1785 एकड़ भूमि अधिग्रहीत किए जाने की आशंका से क्षेत्र के किसान आंदोलित हैं. आपको इस क्षेत्र की जनता ने अपना विधायक चुना है, इसलिए आप चिन्हित भूमि बचाने के लिए क्या कर रहे हैं? इस पर उनका जवाब चकित कर देने वाला था. उन्होंने कहा कि अभी तक मेरे संज्ञान में तो ऐसी कोई समस्या नहीं आई. अगर आएगी तो मैं इस संबंध में मुख्यमंत्री से बात करूंगा और समुचित कदम उठाऊंगा.

मैं बेटों को धरती मां से अलग नहीं होने दूंगा: राज बब्बर

सांसद राजबब्बर का कहना है कि वह किसी भी हालत में क्षेत्र के बेटों को उनकी धरती मां से अलग नहीं होने देंगे. उन्होंने कहा कि इस संबंध में वह रक्षामंत्री ए के एंटोनी से मिल भी चुके हैं. रक्षामंत्री ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि वायुसेना की यूनिट के लिए किसी अन्य जगह पर सर्वे कराया जाएगा.

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