यह तस्वीर दिल्ली के दिल पर इठलाते हुए दौड़ने वाली मेट्रो ट्रेन की है. जब मैंने इस महिला के हाथ पर लिखे को पढ़ा तो मुझमें काफी उत्सुकता जगी. फौरन कैमरा क्लिक कर दिया, ऐसे कि वह जान न सके, महसूस न कर सके, और काम भी हो जाए. ताकि सनद रहे वाले अंदाज में इस औरत के हाथ पर दर्ज है... ''माधवराज शर्मा की औरत''. मतलब.. इस औरत का नाम है माधवराज शर्मा की औरत. माधवराज शर्मा इनके पति होंगे. और ये उस पति की औरत हैं, सो इनका नाम हो गया... माधवराज शर्मा की औरत. आज भी समाज में औरत अपने नाम से नहीं बल्कि अपने पति के नाम से जानी जाती है.
अत्याधुनिक तकनीक से बनी मेट्रो में सवार ऐसे जनों के मन में दर्ज जागरूकता का लेवल चिंतित करने वाला है. टेक्नोलाजी दिन ब दिन खुद को अपग्रेड कर रही है और हम उस अपग्रेडेशन को स्वीकार भी कर रहे हैं, अपना भी रहे हैं, पर तार्किकता और वैज्ञानिक सोच को बूझने-जानने को हम तैयार नहीं, और न ही इसे कोई सिखाने-बताने वाला है. जिनके कंधों पर देश के लोगों को शिक्षित और जागरूक करने का जिम्मा है, वे चाहते ही नहीं कि लोग चैतन्य हों, उन्नत चेतना वाले हों. इसी कारण कोई धर्म तो कोई जाति का डंका बजाकर अपने अपने जन को भरमा रहा है और उनके वोट दूह कर पांच साल के लिए रफूचक्कर हो जा रहा है. ''माधवराज शर्मा की औरत'' जैसी महिलाओं को देखकर हम भले ही अपने देश की विविधता पर मुग्ध हों, अपने देश की सो-काल्ड संस्कृति पर लट्टू हों, लेकिन सच तो यह है कि यह सब दुखदायी है, अपमानजनक है और औरतों को दोयम मानने-बताने वाला है.
फोटो और प्रवचन : भूमिका राय
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