शनिवार, 30 जुलाई 2011

प्रेस क्लब / अनामी शरण बबल -2



30 जुलाई 2011

 मनमोहन जी, खुशवंत प्रेम देश के साथ गद्दारी है

हमारे ईमानदार प्रधानमंत्री बड़े भोले बमभोले है। कम बोलते हैं , मगर लोगों के अहसान को लंबे समय तक याद रखते हैं। अपने जमाने के मशहूर बिल्डर और अमर शहीद भगत सिंह को अदालत में पहचानकर फांसी दिलवाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले (गद्दार) सर शोभा सिंह के बेटे होने के बावजूद सरदार खुशवंत सिंह( जिनकी एक लेखर पत्रकार की अलग पहचान है) से हमारे पीएम सरदार मनमोहन काफी पुराने दोस्त रहे हैं। यह दोस्ती भी उस जमाने से चली आ रही है, जब मनमोहन की पहचान एक नौकरशाह की थी। राजनीति से तो इनका दूर दूर का नाता नहीं था। ईमानदार होने की वजह से ये करोड़पति (अब अरबपति भी कह सकते हैं) खुशवंत से कई बार कर्ज भी ले चुके थे। पचास साल पुरानी दोस्ती का फर्ज कहे (या कर्ज) कि पीएम साहब को लग रहा है कि पीएम रहते हुए कर्ज उतारने का इससे बेहतर मौका तो दोबारा मिलने वाला नहीं। लिहाजा लगे हाथ क्यों ना एक ही झटके में खुशवंत पर इस तरह का अहसान कर दें कि पुराने सारे कर्ज का सफाया हो जाए। यह जानते हुए भी कि खुशवंत के पिता की इमेज देश भर में एक गद्दार की है। अंग्रेजों के पिटठ् रहकर दोनों हाथों से मेवा बटोरने की है। इसकी तनिक भी परवाह किए बगैर पीएम साहब ने झट से  दिल्ली की सीएम शीला दीक्षित को लेटर लिखकर नयी दिल्ली इलाके के विंड़सर प्लेस का नाम बदल कर सर शोभा सिंह प्लेस करने का फरमान (इसे आग्रह भी कह सकते है) जारी कर दिया। चारो तरफ हंगामा बरपा है। कई संगठनों ने विरोध करके इस आदेश को रद्द कराने की चेतावनी दी है। फिर भी कम बोलने वाले पीएम साहब ने हंगामा खड़ा करके  सारा ठीकरा शीला दीक्षित के सिर पर फोड़ दिया है। पीएम दफ्तर के तमाम नौकरशाहों की इस दलील पर भी पीएम साहब ने इस बार गौर नहीं फरमाया कि खुशवंत प्रेम का रास्ता देश के साथ गद्दारी से कम नहीं है।

सांसत में शीला

हंसमुख बातूनी तेजतर्रार और फर्राटे के साथ नहले पर दहला मार कर सामने वाले पर भारी हो जाने के लिए विख्यात दिल्ली की मुख्यमंत्री इस बार सांसत में है। अपने प्रिय पीएम साहब के पत्र पाकर भी वे यह तय नहीं कर पा रही हैं कि इसका क्या करे। हालांकि मीडिया में खबर उछालकर इसकी प्रतिक्रिया तो जान ही गई है। ज्यादातर सरदारों को ही यह नागवार लग रहा है कि शहीद भगत सिंह के साथ गद्दारी करने वालों को यह सम्मान क्यों ? पीएम साहब का कोई और फरमान होता तो इसे सीएम साहिबा कब की पूरा करके उसके एवज में भरपूर वसूली कर लेती, मगर इस बार उन्हें यह आदेश ना उगलते बन रहा है और ना ही निगलने का साहस हो रहा है। फिलहाल तो सीएम साहिबा ने चुप्पी साध ली है। मगर यह देखना काफी रोचक और शर्मनाक भी हो सकता है कि आजादी दिलाने वाले शहीदों को सम्मानित करने से भी परहेज करने वाली दिल्ली सरकार क्या एक गद्दार को महिमामंड़ित करने का जोखिम उठाती है ?

 खुशवंत का भोलापन

जीवन में शतातु होने के करीब सरदार खुशवंत सिंह काफी सरल दिल के भोलेभाले      इंसान है। बंद कंचुकी  में किसी भी महिला के वक्ष की लंबाई गोलाई चौड़ाई और उभार नापने में माहिर (एक्सपर्ट भी कहे तो कोई गलत नहीं) सरदारजी किसी भीमहिला की मादकता,और सेक्स की भूख का मापतौल करने में भी काफी दक्ष है। यहीं नहीं किस महिला को किस तरह आनंद के आसमान से लेकर मस्ती के पाताल में लेकर जाया जाए, इसको मापन वाला यंत्र भी सरदारजी के खुराफाती दिमाग में छिपा है। यानी कोई भी महिला या लड़की ( इनके घर की औरतें भी) इनके सामने आते ही सरदारजी की निगाह में स्कैन हो जाती है। मन की बात थाह लेने में माहिर सरदारजी आग लगने से पहले ही हंगामा खड़ा करके तमाशा बनाने में दक्ष है। इसी के बूते नाम यश और भरपूर दौलत कमाने वाले सरदार अपने बाप के मामले में कोरे हैं। बाप शोभा सिंह की गवाही से शहीद भगत सिंह को अपने साथियों के साथ फांसी दे दी गई,मगर खुशवंत की यह दलील कितनी भोली और बालसुलभ (और बेशरम भी) सी लगती है कि मेरे पिता ने तो केवल पहचान की थी। बेशरमी से दुनियां को नंगा करने वाले खुशवंत कुछ तो शरम करो। गद्दार के संतान होने की बेशरमी को तो शर्मसार होने दो।शुक्र है कि महानगर में गद्दारी की पीड़ा नहीं झेली, जो दूसरे गद्दारो के संतानों को आज तक झेलनी पड़ रही है।

सच एक दंड़नीय अपराध है

जमाना बदल गया है। झूठो का बोलबाला है और सच का मुंह काला है।  इसके बावजूद धन्य हो अय्यर साहब लाख खतरा उठाकर भी सच बोलने से आप नहीं घबराते। चापलूसों की लंबी फौज में एक अपन अय्यर ही तो कभी कभार सच उगल बैठते हैं। कांग्रेस को सर्कस कहकर मणिशंकर दा ने तो पार्टी का बैंड बजा दी है। मुंहफट अय्यर के इस बयान पर आलाकमान ने  एक्शन लेने की बजाय चुप्पी साध ली है। वैसे भी पार्टी में आजकल दिग्गी,जेडी,सिब्बल, और जयराम में बोलने की होड़ लगी है। इससे परेशान सुप्रीमों कहा-कहां हाथ डाले।  पार्टी में सच कहना एक दंड़नीय अपराध है। मगर देखा जाता है कि बोल कौन रहा है। अगर सी और डी ग्रेड का कोई बंदा निकला तो झट से एक्शन हो जाती है, मगर बोलने वाले की हैसियत ठीक ठाक रही तो मामले पर मलहम पट्टी लगाकर भूलने की कोशिश होने लगती है।

एचएमवी सिब्बल

अपने मनभावन पीएम साहब कम बोलते है, मगर उनके सबसे टैलेंटी सहकर्मी कुछ ज्यादा ही बोलते है। कभी कभार तो इतना बोलने लगते हैं कि यह तय कर पाना कठिन हो जाता है कि इन पर कोई लगाम है भी या नहीं।लोकपाल को लेकर महाभारत भले ही 16 अगस्त से होगा, मगर कौरवों की तरफ से सिब्बल सत्ता का सारा रौब दिखाने में लग गए। जंतर मंतर पर अनशन करना इस बार मुमकिन नहीं होगा, क्योंकि दिल्ली पुलिस अभी से केंद्र की थाप पर डांस करने लगी है। लोकतंत्र के पहरेदारों ने ही गला दबाने का काम चालू कर दिया है।यह दूसरी बात है कि चांदनी चौक में वकील साहब के खिलाफ धरना प्रदर्शन, जनमत संग्रह का काम चालू हो गया है और इलाके के लोग इस भूंकने वाले सांसद से आजिज हो गए हैं मगर लोकपाल के सामने सीसी टू सीसी की क्या बिसात। यानी लोकतंत्र खतरे में है, मगर पीएम और कांग्रेस सुप्रीमो फिलहाल खामोश है।

दिल्ली में भी बोलो बाबा
केवल दिल्ली को छोड़ कर पूरे देश में आग लगाते फिर रहे और केवल हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद का गीत गाते चल रहे कांग्रेस के अधेड़ युवराज राजधानी के लिए मौनी बाबा है। लोकपाल को लेकर अभी से हंगामा बरपा गया है। कैसा होगा लोकपाल के आकार प्रकार को लेकर सिब्बल और अन्ना की जुबानी जंग सड़कों पर उतर गई है। धमकी, चेतावनी,आगाह करने की बाते भावी रामलीला के दोहराव की आशंका प्रकट कर रही है। बुलंद हौसले के साथ पुलिस ट्रेनिंग कैंप में मार पीट का पाठ पठाया जा रहा है.
यानी लोकतंत्र का गला घोंटने के लिए सरकार तैयार है और अपने पीएम मनमोहन सिब्बल से हालात का जायजा ले रहे है। कांग्रेस सुप्रीमों को यूपी के अलावा कोई फ्रिक नही है। बाबा भी इन दिनों मैराथन यूपी से थक हार कर अपनी थकान मिटाने मे लगे है। दिल्ली से बेपरवाह युवराज जी कभी कभार राजधानी की चिंता कर लिया करो प्यारे , यहां के लोग भी मनमोहन शीला सिब्बल से यूपी वालों से कम त्रस्त नहीं है।

बीजेपी का कांग्रेसी करण

कहा जाता है कि संगत से गुण आत है और संगत से गुण जात। दिन रात कांग्रेस को कोसते कोसते पार्टी का ही कांग्रेसीकरण होता दिख रहा है। कुछ मामलों मे तो यह कांग्रेस से भी आगे निकलती दिख रही है। कांग्रेस के परिवारवाद से परेशान बीजेपी अब अपने यहां वंशज परम्परा को देखकर हक्का बक्का है। हिमाचल प्रदेश में रहकर केंद्र की हमेशा राजनीति करने वाले अपन शांता कुमार को यह भान होने लगा कि पार्टी का तो कांग्रेसीकरण हो गया है। शासन अनुशासन तो खैर रामराज की बात हो ही गई है। कांग्रेस में तो कमसे कम एक नेता है, अगर फरमान जारी हो गया तो फिर उसको साक्षात देव से लेकर दानव कोई नहीं बचा सकता, मगर बीजेपी में तो सहस्त्र धारा है। कर्नाटक के सीएम येदियुरप्पा को हटाना गड़करी साहब के लिए भारी हो रहा है। कुर्सी छोड़ने से परहेज करते हुए सीएम ने अपनी मर्जी और अपनी पसंद की तमाम गोटियों को फिट करने के बाद ही कुर्सी से अलग होने की शर्त रख दी। लाचार आलाकमान कईयों को बेंगलुरू भेज रही है कि सीएम कम से कम तय सीमा के अंदर ही पदत्याग करके पार्टी को किरकिरी से तो बचा ले। हाय गडकरी जी माफियाओं के साथ रहने वाले येदि से संभल कर रहना।

....कांग्रेस की सेहत के लिए नुकसानदेह है

नोएडा समेत पूरे प्रांत में किसानों की भूमि अधिग्रहण का मुद्दा गरमा कर राहुल बाबा फूले नहीं समा रहे है। चिंगारी को आग के गोले में तब्दील होने पर माया सरकार के साथ साथ अपना घर का सपना देख रहे लाखों लोगों के दिनरात का चैन हराम हो गया है। उधर मुआवजे की मांग को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में रोजाना दन दना दन केस डाले जा रहे है। बाबा पूरे इलाके में इस कदर लोकप्रिय हो गए है मानों बस तूफान सा माहौल उफान पर है, मगर कांग्रेसी नेता समेत आलाकमान अब बाबा की नौटंकी के समापन को लेकर चिंतित है। पुराने घाघ कांग्रेसियों का आकलम है कि यूपी में बाबा द्वारा लगाई आग से सबसे ज्यादा खतरा अपनों को ही है। किसान तो कब पलटकर मुलायम माया या कमल की गोद में जा बैठेंगे। पूरा तमाशा वोटबैंक नहीं है, मगर जिनको असल में नुकसान हो रहा है वो आमतौर पर कांग्रेस का ही वोटबैंक है, जो बाबा के इस खेल से आहत और बेघऱ होने के कगार पर है। नुकसान का जायजा लेने पर सबसे घाटे में कांग्रेस के ही रहने की उम्मीद को देखकर  सारे परेशान है। परेशान तो कम बाबा भी नहीं है, मगर वे इतना आगे निकल चुके है कि वापसी की उम्मीद और भी खतरनाक हो सकती है। यानी अपने ही हाथों खुद को जलने की नौबत से तो इस बार बाबा से शानदार प्रदर्शन की उम्मीद भी धुंधली हो सकती है।

खतरे में रामदेव

राखी सावंत को कौन नहीं जानता। मादक हसीन वाचाल और मुंहफट होने के चलते बहुतों के सपनें में भी राखी नहीं आती है। ज्यादातर लोग राखी से दिल लगाने की बजाय राखी बंधवाकर ही अपने मन को संतुष्ट कर लेते है। संसार को योग बताकर योग के जरिए हर रोग के नायाब इलाज का नुस्खा बांटने वाले रामदेव पर फिलहाल राखी सांवत का दिल आ गया है। वो रामदेव को अपना स्वामी मान चुकी है और बस वो अपने प्रियतम स्वामी के बुलावे का इंतजार कर रही है। उधर, जीवनभर ब्रहचर्य पालन करने का संकल्प करने और रखने वाले रामदेव भी राखी के इस प्रस्ताव से हैरान रह गए होंगे। उधर बालीवुड में लगातार पिछड़ रही राखी के लिए प्रचार में बने रहने के लिए कोई धमाका करने की जरूरत थी, लिहाजा हक दिल अजीज रामदेव से ज्यादा पोपुलर बंदा और कौन हो सकता है। रामदेव जी राखी प्रेम से अब सावधानी बरतने की बारी आपकी है। किसी भी दिन पांतजलि में धमक कर आपको धमका भी सकती है। मीडिया के सामने आपके प्रणय निवेदन की सीडी भी रखकर धमाल मचा सकती है। यानी स्वामी  को पाने के लिए फूल से  फूलझड़ी तक बन सकने वाली इस राखी से बचने के लिए बाबाजी इस रक्षाबंधन में राखी बंधवा ही लो नहीं तो मत कहना योग करते करते कब भोग के भी आचार्य बनना ना पड़ जाए। फिर आजकल आपके उपर शनि महाराज की नजर भी कुछ तंग है।

हिना की शिकायत

पाकिस्तानी नेताओं का अबतक रिकार्ड रहा है कि वे भारत में आकर इस कदर प्यार मुहब्बत मेल मिलाप अमन शांति चैन प्यार सदभाव की बाते करने लगते है ति मीडिया समेत पूरा भारत ही इनका दीवाना हो जाता है। लगता है मानो बैर दुश्मनी के दिन अब खत्म होने वाले हैं। मगर भारत से विदाई लेकर इस्लामाबाद लाहौर पहुंचते ही गिरगिट सा रंग बदलते हुए फिर से वहीं नफरत, कटुता, और दोषारोपण का बेरूखा रंग सामने आ जाता रहा है। हिना रब्बानी को भारत आने पर खूब कवरेज मिला,मगर काम से ज्यादा हुस्न और उनकी अदाओं को ज्यादा दिखाया गया। शायद इसीलिए भरपुर कवरेज के बाद भी हिना ज्यादा फूल नहीं पाई। अब हम भी क्या करे हिना जिया बेनजीर और मुर्शरफ साहब से तो यही सबक मिला है कि रगं बदलते लोगों पर यकीन मत करो। खुशगवार रही आपकी यात्रा यही शुक्र माने ।

ट्रीपल ए की बिखरती जोड़ी (अमर अकबक एंथोनी)

मनमोहन देसाई की इस सुपर हिट फिल्म की धमक आज तक बाकी है। असल जीवन में ट्रिपल ए यानी अमर (सिंह-सपा वाले), अमिताभ बच्चन और अनिल अंबानी की मस्त-मस्त जोडी को अमर अकबर और एंथोनी की तरह देखा और माना जाता था। दोस्ती भी इस तरह कि घर में मुंडन से लेकर प्रसूति और घर की साफ सफाई वाले कार्यक्रम में भी हमेशा बिजी रहने वाले ये लोग समय निकाल कर इडियटबाक्स में दिक जाते थे। मगर मुलायम भैय्या से नाता क्या टूटा और वोट 4 नोट मामला क्या गरमाया कि सुपर हिट जोड़ी एकदम फलाप सी हो गई। अब इनके पास समय की इतनी किल्लत हो गई कि सब एक दूसरे की कंपनी से इस्तीफा इस वजह से देने लगे कि मौका नहीं मिल पा रहा है। यह अलग बात है कि अमर को लतिया कर बाहर निकालने वाले मुलायम भैय्या फिलहाल तरस खाकर अम्मू के साथ खड़े हो गए है। इसे कहते है प्रेम अम्मू नरेश प्रेम जो मुलायम ने आड़े समय में दरशा दिया, जबकि मुंबईया लोगों ने मुंह फेर करक्या दिखा दिया  ?  यह तो आप समझ रहे है ना ?

गजनी बनती राजा की जुबान और कलमाड़ी
आड़े समय पर राजा यानी देश के सबसे बड़े घोटाले के राजा तिहाड़ से बाहर निकलते ही 2-जी स्प्रेक्ट्रम घोटाले में पीएम होम मिनिस्टर से लेकर अपने हेड करूणानिधि क का नाम लेकर लपेटना चालू कर दिया। मगर पता नहीं कौन सा प्रेशर पड़ा या क्या दिखा दिया गया कि बागी तेवर दिखा रहे राजा एकदम सुस्त प्रजा की तरह सब पालतू मानने लगे। यही हाल अपने दबंग खिलाड़ी सुरेश बाबू यानी कलमाडी की है। इन्हें भूलने का रोग लग गया। भारी भरकम घोटाले को बूलकर पूरे देश को उल्लू बनाते हुए करूणामूलक आधर पर सजा से बचने का प्लान था, मगर भला हो कोर्ट को जो इस घपलेबाज खिलाड़ी के चककर में ना आकर नाना प्रकार के जांच करा कर रिपोर्ट देने का फरमानव सुना डाला। कोर्ट की फटकार से गजनी बन रहे कलमाड़ी को सब याद आ गया और सफाई देनी पड़ी कि वे कभी गजनी नहीं थे।

महाबलि बनते बनते क्या हुआ महाबल

मात्र दो दशक के भीतर ही पार्षद से पोलिटिकल यात्रा शुरू करके पार्षद  और विधायकी के रेस को लांघते हुए महाबल वेस्ट दिल्ली से सांसद बन गए। सांसद बनते ही फूल कर कुप्पा हो गए महाबल आजकल बोलने की बजाय घिघियाने लगे है।  पता चला कि इन पर बाहरी दिल्ली में कहीं जमीन हथियाने का आरोप है। जिसे वो अपने भाई पर दोषारोपण करते हुए महाबल का यह महा बहाना कि भाई के साथ बेहतर रिश्ता नहीं है, किसी के गले नहीं उतर रहा है। यानी आग लगी है, मगर महाबल इसमें अपना हाथ ना मान कर भाई का घोटाला बताकर खुद को बेदाग साबित करने में लगे है। खुदा खैर करे महाबल जी सोत लो कुर्सी तो परमानेंट नहीं ह मगर भाई से तो जन्म जन्म का नाता है।

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