सोमवार, 11 जुलाई 2011

दिल्ली का बाबूः सरकार की भूल सुधार




सरकार अपनी एक पुरानी गलती को सुधारने के लिए गंभीरता से प्रयास करने का मन बना रही है. इस सरकारी कार्रवाई से कई नौकरशाहों के प्रमोशन की संभावना को ग्रहण लग गया था. हाल के दिनों में ज्वाइंट सेके्रट्री स्तर के कम से कम पचास बाबुओं के प्रमोशन की दौड़ में पीछे छूटने और उन्हें कनिष्ठ अधिकारियों के मातहत काम करने को मजबूर होने के बाद सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (कैट) की शरण में जाना पड़ा था. इसकी एकमात्र वजह यह थी कि वे अपनी एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट (एसीआर) को नहीं देख सकते थे.
सरकार के इस निर्णय से प्रभावित होकर सैन्य अधिकारियों ने भी अपनी प्रमोशन पॉलिसी पर फिर से विचार करने का फैसला किया है. सेना प्रमुख वी के सिंह ने अलग-अलग विभागों से मिले फीडबैक के आधार पर पिछले साल लागू की गई प्रमोशन पॉलिसी पर पुनर्विचार का आदेश दिया है.
सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय कार्मिक लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय ने यह निर्णय किया है कि यदि विभागीय प्रमोशन कमेटी प्रमोशन के लिए किसी नौकरशाह के नाम पर विचार करती है, लेकिन एनुअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट के आधार पर वह वांछित योग्यता हासिल नहीं कर पाता है, तो संबद्ध अधिकारी को अपने एसीआर की एक कॉपी उपलब्ध कराई जाएगी और पंद्रह दिनों के अंदर अपना पक्ष रखने का मौका उसके पास होगा. कार्मिक सचिव शांतनु कंसुल के अनुसार, इस निर्णय से प्रमोशन से वंचित किए गए अधिकारियों को अपने पिछले प्रदर्शन के आधार पर विभागीय प्रमोशन कमेटी के फैसले के खिलाफ अपना पक्ष रखने में मदद मिलेगी. अब तक हो यह रहा था कि सरकार विभागीय प्रमोशन कमेटी के विचार के लिए संघ लोक सेवा आयोग के पास अच्छी ग्रेडिंग वाली एसीआर ही भेजा करती थी.
सरकार के इस निर्णय से प्रभावित होकर सैन्य अधिकारियों ने भी अपनी प्रमोशन पॉलिसी पर फिर से विचार करने का फैसला किया है. सेना प्रमुख वी के सिंह ने अलग-अलग विभागों से मिले फीडबैक के आधार पर पिछले साल लागू की गई प्रमोशन पॉलिसी पर पुनर्विचार का आदेश दिया है. कहा जा रहा है कि नई प्रमोशन पॉलिसी कनिष्ठ अधिकारियों के लिहाज से अच्छी है, लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों के मुफीद नहीं है.

भ्रष्टाचार पर वार


वरिष्ठ नौकरशाहों के खिलाफ आयकर विभाग के छापों के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने अपने सभी मंत्रियों और आईएएस एवं आईपीएस अधिकारियों को अपनी संपत्तियों की ऑनलाइन घोषणा करने का आदेश दिया है. अब महाराष्ट्र सरकार भी मध्य प्रदेश के नक्शेकदम पर चल पड़ी है. माना यह जा रहा है कि महाराष्ट्र सरकार का यह निर्णय एक ताजा सर्वे के परिणामों पर आधारित है. सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य नौकरशाही की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है. इस बीच केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने दिल्ली में बताया कि वर्तमान समय में भारतीय प्रशासनिक सेवा के 84 और पुलिस सेवा के 33 अधिकारियों के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में भ्रष्टाचार के मामले लंबित हैं.
उम्मीदों के मुताबिक ही महाराष्ट्र के नौकरशाह राज्य सरकार के इस फैसले से खुश नहीं हैं. उनका तर्क है कि यदि उन्हें अपनी संपत्तियों की घोषणा करने के लिए मजबूर किया जाता है तो इसके लिए पहले ऑल इंडिया सर्विस रूल्स में बदलाव करना होगा. उनका यह भी मानना है कि भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए पहले से ही कई कानून मौजूद हैं. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि सरकार के इस फैसले के पीछे राजनीतिज्ञों का दिमाग काम कर रहा है, जो यह साबित करना चाहते हैं कि नौकरशाह राजनीतिज्ञों से कहीं ज्यादा भ्रष्ट हैं.
इस बीच खबर यह भी है कि राज्य सरकार नौकरशाहों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए एक कमेटी के गठन का विचार कर रही है, जिसमें अन्ना हजारे, अभय बंग, प्रकाश आम्टे जैसे मशहूर सामाजिक कार्यकर्ताओं और पूर्व नौकरशाहों को शामिल किया जा सकता है. इसमें कोई शक नहीं कि भ्रष्ट अधिकारी सरकार के निशाने पर हैं.

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