दिल्ली भले ही देश का दिल हो, मगर इसके दिल का किसी ने हाल नहीं लिया। पुलिस मुख्यालय, सचिवालय, टाउनहाल और संसद देखने वाले पत्रकारों की भीड़ प्रेस क्लब, नेताओं और नौकरशाहों के आगे पीछे होते हैं। पत्रकारिता से अलग दिल्ली का हाल या असली सूरत देखकर कोई भी कह सकता है कि आज भी दिल्ली उपेक्षित और बदहाल है। बदसूरत और खस्ताहाल दिल्ली कीं पोल खुलती रहती है, फिर भी हमारे नेताओं और नौकरशाहों को शर्म नहीं आती कि देश का दिल दिल्ली है।
बुधवार, 27 जुलाई 2011
दुनियां का सबसे बड़ा कूड़ेदान है भारत
मंगलवार, २६ जुलाई २०११
वैश्वीकरण के इस दौर में बाजारवाद ने हर देश में ठोक कर क़दम रखा है, औरजिन देशों में भ्रष्टाचार ज्यादा है, वहां इस बाजारवाद ने खूब मज़े कियेहैं।इस में भारत का नाम सब से ऊपर आता है। बाजारवाद ने और बहुराष्ट्रीयकंपनियों ने भारत को एक डस्टबीनके तौर परइस्तेमाल करना शुरू कर दियाहैऔर इसका मुख्य कारण हैयहां व्याप्त भ्रष्टाचार। आप किसी भी क्षेत्र में देखलीजिये।चाहे बोफोर्स तोप देखलीजिये। पुराने युद्धक विमान देख लीजिये। जोआये दिन खेतों में गिरतेरहते हैं।स्वर्गीय हेमंत खरखरे की बुलेट प्रुफ जैकेटदेख लीजिये,जोउनके मरने के बाद से गायब है।
अभी मुंबई हमलों केबाद झावेरी बाज़ार मेंलगे सीसी टीवी कैमरों से बड़ी आशाएं थीं, परन्तु बाद मेंपता चला कि वे उच्चश्रेणी के नहीं थे। यानि चीज़ चाहे देश कि सुरक्षासे जुडी हो या आमजनसे। हम कचरा खरीद रहे हैं।...यहां बाज़ारमें कोई सरकारी मानक नहीं हैं इन चीज़ों की खरीद केलिए। जिन केंसर की दवाइयों के परीक्षण परविदेशोंमें रोक है,.उनका धड़ल्ले से भारत के मरीजों पर प्रयोग हो रहाहै।.अभी कुछ साल पहले बेंगलोर के एक अस्पताल की पोल खुलीथी कि इन विदेशी दवा कंपनियों से मोटी रक़म ले कर यह प्रतिबंधितदवाएं भारत में प्रयोग हो रही है।कोई गुणवत्ता नहीं, कोई मानकनहीं।.देश में मोबाइल सेट लाखों की संख्या में बिक रहे हैं।.विदेशों मेंइन सेटों में रेडियेशन के मानक निर्धारित हैं,.मगर भारत में कोई मानक नहीं।पेप्सी,कोक और अन्य कोल ड्रिंकस् में तय मात्र से ज्यादा कीटनाशक हैं।मगर बाजारवाद की आंधीने सब की आँखों में धूल झोंक डाली है।दूसरी ओरचीनअपना सारा माल भारत में हीडंपकर रहा है। इलेक्ट्रॉनिकसे लेकर राखी तक! और हाल ही मेंअंतर्राष्ट्रीय ड्रग माफिया ने भी भारत में अपना नकली मालखपाना शुरू करदिया है। इसका कारण यह है कि पहले भी यहां किसी बिक्रेता या कंपनी कोनकली दवाएंबनाने के दोष में कोई ठोस सज़ा नहीं मिली है। यह सब देश में फैले भ्रष्टाचारऔर लचर कानून व्यवस्था का नतीजा है। ऐसे कई उदाहरण मोजूद हैं कि बाजारवाद ने किस प्रकार से इस देशमें फैले भ्रष्टाचार का फायदाउठाकर अपना सारा कचरा खपाना शुरू करदिया हैऔर देशवासियोंसे इस कचरे के पैसे वसूले जा रहेहैं। वास्तव में अंतर्राष्ट्रीयबाजारवाद के लिए भारत एक को एक बड़ा डस्ट बीन बना डाला है।
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