दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन और इसकी ठेका कंपनियों द्वारा श्रम कानूनों का नग्न उल्लंघन
दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन के नेतृत्व में रविवार, 10 जुलाई 2011 को सुबह 11 बजे दिल्ली मेट्रो रेल के सैंकड़ों मजदूर और कर्मचारी जन्तर-मन्तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं और ई.श्रीधरन का पुतला फूंक रहे हैं। हम सभी इंसाफपसंद नागरिकों से अपील करते हैं कि इस प्रदर्शन में शामिल होकर मज़दूरों के साथ अपनी एकजुटता जाहिर करें और उनका हौसला बुलंद करें।
दिल्ली की शान कहे जाने वाले दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन और इसके कर्ता-धर्ता ‘मेट्रो-मैन’ ई.श्रीधरन के पायबोस और सिजदे में सरकार से लेकर मीडिया तक हमेशा दण्डवत रहता है। दिल्ली का खाता-पीता मध्यवर्ग मेट्रो को देखकर फूला नहीं समाता है। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि दिल्ली मेट्रो रेल को चलाने वाले मज़दूर और कर्मचारी, जिनमें से 90 प्रतिशत से भी अधिक ठेके पर काम करते हैं, किन हालात में और कितने वेतन पर काम करते हैं। दिल्ली मेट्रो के स्टेशनों पर काम करने वाले 10,000 से भी ज्यादा कर्मचारी जो टिकट वेंडिंग, हाउसकीपिंग और सिक्योरिटी में लगे हुए हैं, न्यूनतम वेतन, ई.एस.आई., पी.एफ., और कई बार तो साप्ताहिक छुट्टी जैसे बुनियादी श्रम अधिकारों से वंचित हैं। नौकरी पाने के लिए ठेका कंपनियों को इन्हें ‘सिक्योरिटी’ राशि के नाम पर 40 से 70 हज़ार रुपये तक देने पड़ते हैं। वास्तव में यह तथाकथित ‘सिक्योरिटी’ राशि मज़दूरों से नियुक्ति के समय इसलिए ली जाती है कि वे किसी भी शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ कोई आवाज़ न उठा सकें। यह डी.एम.आर.सी और ठेका कंपनियों के शोषण के तंत्र की ‘सिक्योरिटी’ की गारंटी करती है!
कानूनन टिकट-वेंडिंग स्टाफ की न्यूनतम मजदूरी करीब 8 हज़ार है, जबकि वास्तव में उन्हें साढ़े चार से पांच हज़ार रुपये तक दिये जाते हैं; यही स्थिति सफाई कर्मचारियों और सुरक्षा कर्मियों की भी है। डी.एम.आर.सी. के पास अपने ठेका कर्मचारियों का कोई रिकॉर्ड नहीं है, जिससे कि साफ है कि वह श्रम कानूनों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित नहीं कर रही है। यह सीधे-सीधे ठेका मज़दूर कानून, 1971 के प्रावधानों का उल्लंघन है, जिसके अनुसार श्रम कानूनों के लागू होने का सुनिश्चित करना प्रधान नियोक्ता का काम है। वेतन दिये जाते समय डी.एम.आर.सी. का कोई प्रतिनिधि स्टेशनों पर मौजूद नहीं होता है। ऐसे में, डी.एम.आर.सी. ठेका कंपनियों से ही यह पूछ कर सनद कर लेती है कि आप कानूनों का पालन कर रहे हैं? इससे बड़ा मज़ाक और क्या हो सकता है कि कानून का उल्लंघन कर रही कंपनियों से ही पूछा जाय कि आप कहीं कानून का उल्लंघन तो नहीं कर रहे!
इन्हीं धांधलियों और मज़दूरों के अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन पिछले ढाई वर्षों से संघर्ष कर रही है और उसके संघर्ष के बूते सफाईकर्मियों के वेतन में पहले भी बढ़ोत्तरी हो चुकी है। लेकिन अभी भी पूरे स्टेशन स्टाफ के श्रम अधिकारों का बुरी तरह उल्लंघन हो रहा हैा हायर-फायर की नीति, घूसखोरी, न्यूनतम मज़दूरी का न दिया जाना, कंपनियों की मज़दूरों पर तानाशाही, दुर्व्यवहार आम बातें हैं।
इसके खिलाफ दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन के नेतृत्व में रविवार, 10 जुलाई 2011 को सुबह 11 बजे दिल्ली मेट्रो रेल के सैंकड़ों मजदूर और कर्मचारी जन्तर-मन्तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं और ई.श्रीधरन का पुतला फूंक रहे हैं। हम सभी इंसाफपसंद नागरिकों से अपील करते हैं कि इस प्रदर्शन में शामिल होकर मज़दूरों के साथ अपनी एकजुटता जाहिर करें और उनका हौसला बुलंद करें।
दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन का ब्लॉग
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