बुधवार, 13 जुलाई 2011

जामिया मिलिया का खतरनाक कदम



हरिकृष्ण निगम

जामिया मिलिया इस्लामिया जो आज एक केंद्रिय विश्वविद्यालय है उसे हाल में सरकार द्वारा अल्पसंख्यक संगठन घोषित किया जाना देश के एक अनोखे बौध्दिक विभाजन का संकेत देकर फिर बंटवारे की राजनीति की याद दिलाता है। हम सब जानते हैं कि अब तक देश के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपति या तो राष्ट्रपति या संबंधित क्षेत्र के राज्यपाल होते रहते हैं पर यही एक विश्वविद्यालय रहा है जहां मुस्लिम संप्रदाय के नेता कुलपति के साथ-साथ उपकुलपति भी होते रहे हैं। इसके कुलपतियों में डॉ. जाकिर हुसैन, जस्टिस एम. हिदायुतुल्ला, खुर्शीद आलम खां और फखरूदीन खोराकीवाला और उपकुलपतियों में नजीब जंग, मुशीरूल हसन और बशीरूद्दीन अहमद प्रमुख रहे हैं।

पर हाल में ऐसा क्या हुआ है जब सरकार के हाल के एक निर्णय ने इसे अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़े वर्गों के प्रत्याशियों के सरकारी आदेशों के अतंर्गत प्रवेश के अनुपातों को एक झटके में समाप्त कर इसकी 50 प्रतिशत सीटों को पूरी तरह से मुसलमानों के लिए आरक्षित कर दिया। जब से 1988 में जामिया मिलिया केंद्रीय विश्वविद्यालय बना था, गैर-मुस्ल्मि प्रत्याशियों का प्रवेश भी सामान्य निर्देशों के तहत था। अब बाकी 50 प्रतिशत सारी सीटें सभी के लिए मैरिट के आधार पर होगी। अब अनुसूचित और पिछड़े वर्गों के लिए इस विद्यालय में आरक्षण समाप्त हो गया। इसी फरवरी के अंतिम सप्ताह में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के राष्ट्रीय आयोग-एन.सी.एम.आई. ने जामिया मिलिया के विद्यार्थी और अध्यापकों की यूनियन के आग्रह पर इसे अल्पसंख्यक संस्थान घोषित करते हुए स्पष्ट कहा है कि इसकी स्थापना मुसलमानों द्वारा मुसलमानों के हित के लिए ही हुई थी इसलिए वह इसे अल्पसंख्यकों के हितों के लिए बनाए रखने में नहीं झिझकेंगे। इस निर्णय का गंभीर प्रभाव होगा। पहली बार देश में बिना सीमा विभाजन के मानसिकता का विभाजन नया जामा कानून द्वारा पहनाया जा रहा है। यह सरकार पहले ही शिक्षा क्षेत्र में मुस्लिम विश्वविद्यालयों और मदरसों को देश के दूसरे विश्वविद्यालयों के बीच एक नई विभाजन रेखा से पृथक कर रही है। उनकी देश पर मुस्लिमों का पहला हक की अवधारणा एक रेखा 15 प्रतिशत और 85 प्रतिशत जनसंख्या के बीच खींच चुकी है। मुस्लिम-बहुल जिलों को विशेष विकास राशि की आबंटन, पृथक सेंट्रल मुस्लिम मदरसा बोर्ड को सीबीएसई और आईएसबीई के प्राठ्यक्रमों से मुक्ति दिलाने की साजिश और इस्लामी बैंकि ग की अवधारणा देश के नए आंतरिक विभाजन की गारंटी है जिसके लिए वर्तमान सरकार को अगली पीढ़ी जिम्मेदार मानेगी।

* लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं।

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