Written by NewsDesk Category: सियासत-ताकत-राजकाज-देश-प्रदेश-दुनिया-समाज-सरोकार Published on 05 July 2011
जाहिर है कि इस घटना ने यूपी की नौकरशाही और राजनीतिज्ञों के गठजोड़ को पूरी तरह उजागर तो कर ही दिया है। इस घटना ने यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि अगर प्रदेश सरकार की मांग को पूरा करते हुए केंद्र ने 80 हजार की योजना को मंजूरी दे दी होती, तो प्रदेश सरकार की मशीनरी उसे कभी भी अमली जामा नहीं पहना सकती थी।
दरअसल, राहुल गांधी ने बुंदेलखण्ड में एक दलित महिला के घर रोटी क्या खा ली, मायावती की छाती पर मानो सांप ही लोट गया। तब से लेकर लगभग हर मौके पर वे बुंदेलखंड की उपेक्षा के लिए केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार पर कड़े आरोप लगाती रही हैं। इतना ही नहीं, इसके लिए 80 हजार करोड़ रुपयों के पैकेज तक की मांग कर डाली थी और हर मौके पर यही कहा कि केंद्र सरकार जानबूझ कर इस विशेष सहायता को जारी नहीं कर रही है ताकि बुंदेलखंड का पिछड़ापन बरकरार रहे और कांग्रेस उस आग पर अपनी रोटी सेंकती ही रहे।
केंद्र सरकार द्वारा बुंदेलखण्ड के लिए जारी की गयी 3506 करोड़ रुपयों के उपयोग और उसकी समीक्षा के लिए आज लखनऊ में केंद्र और प्रदेश के अफसरों के बीच लम्बी बातचीत हुई। इस बैठक में केंद्र सरकार के डॉक्टर जेएस सामरा, डॉक्टर केएस रामचंद्रा के साथ प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों के अफसरों के साथ मुख्य सचिव अनूप मिश्र ने भी भाग लिया। इस बैठक में मुख्य सचिव के सामने ही डॉक्टर सामरा ने इस योजना के कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में आने वाली शिकायतों का प्राथमिकता के साथ निराकरण करने की बात कही। साथ ही उन्होंने योजना में बनाये जा रहे डगवेलों से पानी उठाये जाने की भी व्यवस्था किये जाने की खास जोर दिया। उनके निर्देशों और अपेक्षाओं पर यूपी सरकार के हाथ बांधे खड़े अफसरों ने राज्य सरकार की ओर से कड़े और संतोषजनक कदम उठाये जाने का आश्वासन दिया और वायदा किया कि इसमें किसी भी तरह की कोताही नहीं बरती जाएगी।
लेकिन इसके बाद ही जो कुछ हुआ वह प्रदेश सरकार द्वारा केंद्र सरकार के खिलाफ छेड़े गये दुष्प्रचार का खुलासा कर गया। यूपी के अफसरों ने बताया कि इस योजना पर काम तो 09-10 में ही काम शुरू हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। इस बारे में जो तर्क दिया गया वह न केवल स्तब्धकारी था, बल्कि प्रदेश सरकार के झूठ के पुलिंदे को भी खोल गया। यूपी के अफसरों ने इस काम के समय से पूरा न हो पाने के सवालों पर जवाब दिया कि चूंकि नहरों, जलाशयों, तालाबों और कुओं में पानी भरा होने के चलते काम किया जा पाना सम्भव नहीं हो पाता है। यह तर्क लोगों की समझ से परे ही रहा। वजह यह कि किसी भी वित्तीय वर्ष के अंत यानी 31 मार्च से बहुत पहले ही प्रदेश के यह सभी ज्यादातर जल स्रोत पूरी तरह सूख चुके होते हैं। कहने की जरूरत नहीं, कि अत्यधिक जल दोहन के चलते भूगत जल स्तर लगातार पाताल की ओर भाग रहा है और बारिश के मौसम के चंद महीनों तक ही इन परम्परागत जल स्रोतों में ही पानी रहता है। जाहिर है कि यूपी के अफसरों ने बिलकुल सफेद झूठ का सहारा लिया।
बहरहाल, यूपी के अफसरों ने तो यहां तक कह दिया कि इस योजना के लिए निर्धारित 31 मार्च-12 तक इसे पूरा कर पाने में बड़ी दिक्कतें आयेंगी, इसीलिए उन्होंने बैठक में मौजूद केंद्र के अफसरों से अनुरोध किया कि इस योजना के समापन के लिए एक वर्ष का समय-सीमा विस्तार और दे दिया जाए।
लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार कुमार सौवीर की रिपोर्ट.
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