दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन
Sunday, 3 July 2011
देश के सभी इन्साफ पसंद नागरिकों से अपील! १० जुलाई को जंतर-मंतर पहुंचे!!
सुबह 11 बजे, 10 जुलार्इ को डी.एम.आर.सी. व उसकी ठेका
कम्पनियों द्वारा श्रम कानूनों के उल्लंघन के खि़लाफ
जन्तर-मन्तर पर मेट्रो मज़दूरों का विशाल प्रदर्शन
दिल्ली मेट्रो रेल के निर्माण से लेकर उसके रख-रखाव और प्रचालन; आपरेशन तक के कामों में आज हज़ारों मज़दूर लगे हुए हैं। इनमें से अधिकांश; 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा ठेके पर काम करते हैं। केवल टिकट वेंडिंग, हाउसकीपिंग से लेकर सिक्योरिटी में करीब 10,000 से अधिक कर्मचारी लगे हुए हैं। निर्माण कार्यों लगे हज़ारों मज़दूरों का तो कोर्इ रिकार्ड ही नहीं है क्योंकि डी.एम.आर.सी. उनसे कोर्इ मतलब ही नहीं रखती है। कमोबेश यही स्तिथि मेट्रो रेल में काम करने वाले समस्त ठेका मज़दूरों की है। यही वे कामगार हैं जिनके बूते आज दिल्ली की आबादी इस आधुनिक और उन्नत परिवहन सेवा का लाभ उठा सकती है। दिल्ली मेट्रो रेल की ऊपरी चमक-दमक के नीचे भ्रष्टाचार, कानूनों के उल्लंघन, ठेकाकरण, निजी ठेका कम्पनियों की तानाशाही, मज़दूरों के दुख-तकलीफ की एक काली दुनिया है। हम इसी स्तिथि को बदलना चाहते हैं।दिल्ली मेट्रो रेल की ऊपरी चमक-दमक के नीचे भ्रष्टाचार, कानूनों के उल्लंघन, ठेकाकरण, निजी ठेका कम्पनियों की तानाशाही, मज़दूरों के दुख-तकलीफ की एक काली दुनिया है। हम इसी स्तिथि को बदलना चाहते हैं।
साथियो! हम आप सबसे अपील करते हैं कि हमारे संघर्ष का समर्थन कीजिये। हम ज्यादा नहीं सिर्फ कानून-प्रदत्त अधिकार माँग रहे हैं। हमारी माँग है कि दिल्ली मेट्रो को सच्चे मायने में एक विश्व-स्तरीय संस्था केवल तब बनाया जा सकता है जब भ्रष्टाचार, स्वेच्छाचार, और तमाम किस्म के गोरखधंधों का मेट्रो रेल से सफाया हो जाय, जो कि ठेका कम्पनियों और डी.एम.आर.सी. की मिलीभगत से चल रही है। हम आपसे मेट्रो मज़दूरों द्वारा 10 जुलार्इ को जन्तर-मन्तर पर किये जा रहे विरोध-प्रदर्शन में आने की अपील करते हैं। आपकी मौजूदगी से हम संघर्षरत मज़दूरों का हौसला बुलन्द होगा और डी.एम.आर.सी. को हमारी बात सुनने और कानूनों का पालन करने को बाध्य होना पड़ेगा। कृपया इस विरोध प्रदर्शन में उपस्थित होकर हमारी हौसला अफ़ज़ार्इ करें।
सम्पर्क: अजय-9540436262, प्रवीण-9289457560, शिवानी-9711736435, आशीष-9211662298, प्रेमप्रकाश-9999750940,
दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन
दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन
मेट्रो मज़दूर अधिकार समर्थक नागरिक मोर्चा
दिल्ली के इंसाफ़पसंद नागरिको के नाम दिल्ली मेट्रो रेल मज़दूरों की अपील
आप सभी जानते और मानते हैं कि दिल्ली मेट्रो रेल दिल्ली की शान है और ठीक ही मानते हैं। दिल्ली मेट्रो रेल ने दिल्ली में सफर करने के तौर-तरीके को बदल डाला है। यह एक तेज़, सुरक्षित और सुविधाजनक परिवहन माध्यम है। दिल्ली मेट्रो रेल के निर्माण से लेकर उसके रख-रखाव और प्रचालन; आपरेशन तक के कामों में आज हज़ारों मज़दूर लगे हुए हैं। इनमें से अधिकांश; 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा ठेके पर काम करते हैं। केवल टिकट वेंडिंग, हाउसकीपिंग से लेकर सिक्योरिटी में करीब 10,000 से अधिक कर्मचारी लगे हुए हैं। निर्माण कार्यों लगे हज़ारों मज़दूरों का तो कोर्इ रिकार्ड ही नहीं है क्योंकि डी.एम.आर.सी. उनसे कोर्इ मतलब ही नहीं रखती है। कमोबेश यही स्तिथि मेट्रो रेल में काम करने वाले समस्त ठेका मज़दूरों की है। यही वे कामगार हैं जिनके बूते आज दिल्ली की आबादी इस आधुनिक और उन्नत परिवहन सेवा का लाभ उठा सकती है।
लेकिन क्या आपको पता है कि इस पूरी ठेका मज़दूर आबादी से किन हालात में काम करवाया जाता है?
क्या आप जानते हैं कि जो युवक या युवती यात्रियों की लम्बी-लम्बी लाइनों को यात्रा करने के लिए टोकन बनाकर देने में दिन भर लगे रहते हैं, उन्हें सरकार द्वारा तय न्यूनतम मज़दूरी, र्इ.एस.आर्इ., पी.एपफ और डबल रेट ओवरटाइम तक नहीं दिया जाता है? क्या आप जानते हैं कि जिन सफार्इ कर्मचारियों की हाड़तोड़ मेहनत के कारण मेट्रो रेल के स्टेशन दमदमाते रहते हैं, उन्हें साप्ताहिक छुटटी, न्यूनतम मज़दूरी, डबल रेट ओवरटाइम, र्इ.एस.आर्इ.-पी.एपफ आदि तक नहीं दिया जाता? क्या आप जानते हैं कि इन मज़दूरों को काम पर रखने से पहले बेदी एंड बेदी, टि्रग, आल सर्विसेज़, ए टू जेड, प्रहरी आदि जैसी कुख्यात ठेका कम्पनियाँ सिक्योरिटी राशि के नाम पर 40 से 70 हज़ार रुपये तक लेती हैं, ताकि ये मज़दूर अपने शोषण और कम्पनियों की तानाशाही के खि़लाफ कुछ न बोल सकें? क्या आपको मालूम है कि इतनी रकम ऐंठने के बाद भी ज़्यादातर मामलों में इन मज़दूरों को साल भर के भीतर ही नाजायज़ तरीके से काम से निकाल दिया जाता है ताकि उन्हें स्थायी मज़दूर की मान्यता न देनी पड़े? क्या आपको पता है कि कानूनन दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन सप़फार्इ, टिकट-वेंडिंग व सिक्योरिटी के कामों में ठेका मज़दूर नहीं रख सकता, क्योंकि ये सभी स्थायी प्रकृति के काम हैं? लेकिन 'मेट्रो-मैन' श्रीधरन के नेतृत्व में डी.एम.आर.सी. खुलेआम और धड़ल्ले से कानूनों को तोड़ रही है। और विडम्बना की बात तो यह है कि मीडिया द्वारा बनायी गयी साफ-सुथरी छवि को चमकाने के लिए श्रीधरन भ्रष्टाचार-विरोधी अभियान में अण्णा हज़ारे के मंच पर पहुँच जाते हैं! कैसी नौटंकी है! बेहतर होता कि पहले वह डी.एम.आर.सी. में हावी भ्रष्टाचार का खात्मा करते। मेट्रो मज़दूर श्रम कानूनों के उल्लंघन, गुलामों जैसी स्तिथियों में काम करवाये जाने, सिक्योरिटी राशि के नाम पर घूसखोरी, मनचाहे तरीके से हायर-पफायर किये जाने के खि़लाफ पिछले कुछ वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। हम जानते हैं कि आप भी एक इंसाफपसन्द नागरिक के तौर पर इस बात को मानेंगे कि मज़दूरों को यदि न्यूनतम मज़दूरी और साप्ताहिक छुटटी भी नहीं मिलेगी और उनके साथ गुलामों-सा बर्ताव किया जाएगा तो इसका सीधा असर सेवाओं पर
पड़ेगा। एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में आप यह भी मानते होंगे कि डी.एम.आर.सी. को इस देश के संविधान और कानूनों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाने का कोर्इ अधिकार नहीं है। हम इन कानूनी और संविधान-प्रदत्त अधिकारों से ज़्यादा कुछ नहीं माँग रहे हैं। हमारा संघर्ष सिर्फ यह है कि सरकार और उसके उपक्रम जो वायदा करते हैं, वह उन्हें पूरा करना चाहिए।
हम अव्यवस्था के समर्थक अराजक तत्व नहीं हैं, बलिक हम मेट्रो में जारी अराजकता को खत्म करने का
प्रयास कर रहे हैं। इसमें हमें आपकी सहायता और समर्थन की आवश्यकता है। मेट्रो रेल में जारी अराजकता के कारण पहले ही उसकी एक सहायक सेवा की रीढ़ टूट चुकी है। मेट्रो फीडर बस सेवा, क्या आप जानते हैं कि यह सेवा क्यों चरमरा गयी? इसका कारण यह था कि डी.एम.आर.सी. ने इस सेवा का ठेका जिस कम्पनी ; आर.बी.टी. को दिया था उसने श्रम कानूनों की खुल्लम-खुल्ला धज्जियाँ उड़ार्इं और फीडर सेवा चलाने वाले कर्मचारियों ने इसके खि़लाफ संघर्ष किया। नतीजतन, डी.एम.आर.सी. ने श्रम कानूनों को लागू करवाने की बजाय कम्पनी का ठेका ही रदद कर दिया और आज स्तिथि यह है कि अनौपचारिक तरीके से ट्रांसपोर्ट काण्ट्रैक्टरों से थोड़ी-बहुत मेट्रो फीडर बसें चलवार्इ जा रही हैं, ठीक वैसे ही जैसे की ब्लू लाइन बसें चलती हैं। इन सबका परिणाम यह है कि मेट्रो फीडर सेवा का भटटा बैठ गया। सिर्फ इसलिए क्योंकि डी.एम.आरसी.
का सरोकार मज़दूरों को उनके कानूनी अधिकार मुहैया कराने से नहीं है उसका ठेका कम्पनियों से बस एक कहना है:
श्रम कानूनों का उल्लंघन करना है तो करो! लेकिन यह बात हम तक या बाहर नहीं पहुँचनी चाहिए, इसे अपने तक ही दबाकर रखो! सच्चार्इ तो यह है कि डी.एम.आर.सी. के पास ठेका कम्पनियों के तहत काम कर रहे सभी कर्मचारियों का कोर्इ प्रत्यक्ष रिकार्ड तक नहीं है। एक सूचना अधिकार याचिका के जवाब में डी.एम.आर.सी. ने इसे माना है। इसी से साफ हो जाता है कि वह श्रम कानूनों के लागू किये जाने को सुनिशिचत नहीं करती है। इसके लिए जिन ठेका कम्पनियों को श्रम कानूनों को लागू करना है, उन्हीं से लिखित में यह कहलवा दिया जाता है कि वे सभी श्रम कानूनों को लागू करती हैं! आप खुद देख सकते हैं कि यह कैसा भददा मज़ाक है! वेतन दिये जाते समय डी.एम.आर.सी. का कोर्इ अधिकारी मौजूद नहीं होता है, जो कि सीधे-सीधे कानून का उल्लंघन है। कुल मिलाकर, दिल्ली मेट्रो रेल की ऊपरी चमक-दमक के नीचे भ्रष्टाचार, कानूनों के उल्लंघन, ठेकाकरण, निजी ठेका कम्पनियों की तानाशाही, मज़दूरों के दुख-तकलीफ की एक काली दुनिया है। हम इसी स्तिथि को बदलना चाहते हैं।
साथियो! हम आप सबसे अपील करते हैं कि हमारे संघर्ष का समर्थन कीजिये। हम ज्यादा नहीं सिर्फ कानून-प्रदत्त अधिकार माँग रहे हैं। हमारी माँग है कि दिल्ली मेट्रो को सच्चे मायने में एक विश्व-स्तरीय संस्था केवल तब बनाया जा सकता है जब भ्रष्टाचार, स्वेच्छाचार, और तमाम किस्म के गोरखधंधों का मेट्रो रेल से सफाया हो जाय, जो कि ठेका कम्पनियों और डी.एम.आर.सी. की मिलीभगत से चल रही है। हम आपसे मेट्रो मज़दूरों द्वारा 10 जुलार्इ को जन्तर-मन्तर पर किये जा रहे विरोध-प्रदर्शन में आने की अपील करते हैं। आपकी मौजूदगी से हम संघर्षरत मज़दूरों का हौसला बुलन्द होगा और डी.एम.आर.सी. को हमारी बात सुनने और कानूनों का पालन करने को बाध्य होना पड़ेगा। कृपया इस विरोध प्रदर्शन में उपस्थित होकर हमारी हौसला अफ़ज़ार्इ करें।सुबह 11 बजे, 10 जुलार्इ को डी.एम.आर.सी. व उसकी ठेका
कम्पनियों द्वारा श्रम कानूनों के उल्लंघन के खि़लाप़फ
जन्तर-मन्तर पर मेट्रो मज़दूरों का विशाल प्रदर्शन
दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन
मेट्रो मज़दूर अधिकार समर्थक नागरिक मोर्चा
सम्पर्क: अजय-9540436262, प्रवीण-9289457560, शिवानी-9711736435, आशीष-9211662298, प्रेमप्रकाश-9999750940,
अपने हक़ों की ख़ातिर यूनियन के साथ आएँ!
अपने हक़ों की ख़ातिर यूनियन के साथ आएँ!
झूठे प्रोफार्मे पर दस्तख़त न करें!
मेट्रो रेल के हमारे कर्मचारी साथियो!
शायद आपको पता न हो कि दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन ने अपने स्टेशनों पर काम करने वाले टाम आपरेटरों, हाउसकीपरों और सिक्योरिटी गार्डों की न्यूनतम मज़दूरी को बीते 1 अप्रैल, 2011 से बढ़ा दिया है। न्यूनतम मज़दूरी अब अकुशल मज़दूरों के लिए रु. 6422, अकुशल मज़दूरों के लिए रु. 7098, कुशल मज़दूरों के लिए रु. 7826, और अति कुशल मज़दूरों के लिए रु. 8502 प्रति माह होगी। हम सभी जानते हैं कि ठेका कम्पनियाँ पहले भी न्यूनतम मज़दूरी कानून का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन कर रही थीं और तय न्यूनतम मज़दूरी नहीं दे रही थीं। ऐसे में, काग़ज़ों पर न्यूनतम मज़दूरी बढ़ जाने से हमें क्या लाभ? इसी मुददे को उठाते हुए दिल्ली मेट्रो रेल के समस्त ठेका मज़दूरों की अपनी यूनियन 'दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन' पिछले 2 वर्षों से संघर्ष कर रही है। और इस संघर्ष के दबाव में ही 30 मर्इ को डी.एम.आर.सी. ने ठेका कम्पनियों को एक सर्कुलर भेजा है। इस सर्कुलर में डी.एम.आर.सी. ने चार बातें कहीं हैं। पहली बात यह कि ठेका कम्पनियाँ 1 अप्रैल से लागू न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान एरियर के साथ ठेका मज़दूरों को करे। दूसरी बात, वेतन का भुगतान कर्मचारी के एकाउंट में किया जाना चाहिए, या फिर चेक से; जब तक एकाउंट नहीं खुलता, और अगर किन्हीं आपात परिसिथतियों में नकद में भुगतान करना पड़े तो वह स्टेशन मैनेजर की उपस्थिति में होना चाहिए। तीसरी बात यह है कि स्टेशन मैनेजर को यह सुनिशिचत करने के लिए हर माह कर्मचारियों से एक प्रोफार्मे पर हस्ताक्षर कराने होंगे, कि न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान हो रहा है, र्इ.एस.आर्इ., पी.एफ. आदि सुविधाएँ दी जा रही हैं। और आखि़री बात यह कही गयी है कि यह प्रोफार्मा हर माह मैनेजरसहायक मैनेजर-लाइंस के जरिये मैनेजर आपरेशंस, ट्रेनिंग इंस्टीटयूट को भेजा जाएगा।
इस सर्कुलर से साफ हो गया है कि डी.एम.आर.सी. यह स्वीकार कर रही है कि स्टेशनों पर उसकी ठेका कम्पनियाँ अब तक न्यूनतम मज़दूरी व अन्य नियमों का पालन नहीं कर रही हैं जो कि संविधान की धारा 21 का नग्न उल्लंघन है। दूसरी बात यह कि डी.एम.आर.सी. मज़दूरी के भुगतान के समय अपने नुमाइन्दे को स्टेशनों पर नहीं भेजती है, जो कि ठेका मज़दूर; विनियमन व उन्मूलन कानून 1971 का उल्लंघन है, वरना उसे पता होता कि न्यूनतम वेतन का भुगतान होता है या नहीं। साफ है, कि डी.एम.आर.सी. और ठेका कम्पनियों ने मिलकर स्टेशन स्टाप़फ, यानी टाम आपरेटरों, हाउसकीपरों और सिक्योरिटी गार्डों को लूटने का एक तन्त्र बना रखा है। 27 मर्इ को 'दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन के मज़दूरों द्वारा क्षेत्रीय श्रमायुक्त कार्यालय में हुर्इ सुनवार्इ के बाद डरकर डी.एम.आर.सी. दिखावे के लिए कुछ कदम उठाने का नाटक कर रही है।
ऐसे में, दिल्ली मेट्रो रेल में काम करने वाले टाम आपरेटरों, हाउसकीपरों और सिक्योरिटी गार्डों से 'दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन' कहना चाहती है कि यह ठेका कम्पनियों द्वारा जारी खुली बेशर्म लूट का पर्दाफाश करने का मौका है। आप ऐसे किसी भी प्रोपफार्मा पर हस्ताक्षर न करें जिसमें न्यूनतम मज़दूरी आदि के बारे में ग़लत सूचनाएँ दर्ज हो। यानी, यदि उसमें लिखा हो कि आपको न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान हो रहा है, और आपको उतनी मज़दूरी न मिल रही हो तो प्रोफार्मे पर दस्तख़त करने से इंकार कर दें। क्योंकि अगर आप दस्तख़त करते हैं तो इसका अर्थ होगा कि आपने ठेका कम्पनियों की इस धोखाधडी को स्वीकार कर लिया है। अगर 4000-5000 रुपये में ही खटना है तो हम कहीं भी खट सकते हैं। ऐसे में, गुलामी करते हुए और बेइज़्ज़ती सहते हुए क्यों मरते रहें? आपके पास यही मौका है कि आप ठेका कम्पनियों की ग़ैर-कानूनी हरक़तों को बेनक़ाब कर सकते हैं। इसलिए झूठी सूचना वाले प्रोफार्मे पर हरगि़ज़ दस्तख़त न करें। ऐसा करने पर यदि आपको डराया-धमकाया जाता है या काम से निकाला जाता है तो नीचे दिये नम्बर पर 'दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन' से सम्पर्क करें और यूनियन इस मामले को लेकर कानूनी तौर पर और आन्दोलनात्मक तौर पर संघर्ष करेगी। याद रखें, यूनियन हर कदम पर आपके साथ है। दूसरी बात यह कि यदि आपको एकाउण्ट के जरिये भी भुगतान होता है तो भी वेतन पर्ची ;वेज सिलपद्ध की माँग करें, जिस पर पी.एप़फ, र्इ.एस.आर्इ. आदि जैसी सभी कटौतियाँ दर्ज हों। तीसरी बात यह कि ठेका कम्पनियों के तहत मेट्रो रेल में काम करने वाले सभी कर्मचारी जब तक 'दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन' के सदस्य नहीं बनेंगे तब तक हम अलग-अलग इन कम्पनियों और डी.एम.आर.सी. के अत्याचार के खि़लाप़फ नहीं लड़ सकते हैं। इसलिए, अगर अभी तक आप यूनियन के सदस्य न बनें हों तो निम्न फोन नम्बरों पर सम्पर्क करके यूनियन के सदस्य बनें। यूनियन ही हमारी शक्ति है। अगर हमारी यूनियन मज़बूत होगी तो हमें कोर्इ लूट नहीं सकेगा। साथियो, हम सभी जानते हैं कि किस प्रकार नौकरी देने के लिए सिक्योरिटी के नाम पर हमसे 60-70 हज़ार रुपये तक वसूल लिये जाते हैं; जो कि ग़ैर-कानूनी है, हमें आम तौर पर कोर्इ नियुक्ति पत्र नहीं दिया जाता ; यह भी ग़ैर-कानूनी है, ताकि हम पूरे समय उनकी जूती के नीचे दबकर काम करें। और उसके बाद भी हमें स्थायी न करना पड़े, इसके लिए कभी साल तो कभी डेढ़ साल में हमें किसी न किसी बहाने से काम से निकाल दिया जाता है। ऐसे में, हमें हासिल ही क्या हो रहा है? कुछ भी नहीं! इसलिए ऐसा कुछ खोने से क्या डरना जो हमारे पर है ही नहीं? इसलिए डर और भय को छोड़कर यूनियन के साथ आएँ! झूठे प्रोफार्मे पर हस्ताक्षर न करें! वेज सिलप माँगें! यूनियन के मेम्बर बनें! डी.एम.आर.सी. और ठेका कम्पनियों के अपवित्र गठबंधन से अपना हक़ लड़कर लेने के लिए आगे आएँ!
बिन हवा न पत्ता हिलता है!
बिना लड़े न कुछ भी मिलता है!
दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन
जन्तर-मन्तर चलो!
दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन में श्रम कानूनों के नग्न उल्लंघन के खिलाफ और
ठेका कर्मचारियों के गैर-कानूनी शोषण उत्पीड़न के खि़लाफ 10 जुलार्इ, 2011 को
जन्तर-मन्तर चलो!
दिल्ली मेट्रो रेल में काम करने वाले हमारे सभी साथियो!
हम जानते हैं कि दिल्ली की शान दिल्ली मेट्रो रेल को चलाने वाले ठेका कर्मचारी किन गुलामों जैसे हालात में काम करते हैं। चाहे टाम आपरेटर हो, हाउसकीपर हों या पिफर सिक्योरिटी गार्ड, सभी को ठेका कम्पनियों की तानाशाही में जीना पड़ता है। न तो हमें तय न्यूनतम मज़दूरी मिलती है, और न ही र्इ.एस.आर्इ. कार्ड, पी.एफ, डबल ओवरटाइम की सुविधा। हाउसकीपरों को तो साप्ताहिक छुटटी तक नहीं मिलती है। श्रम कानूनों का यह घोर उल्लंघन डी.एम.आर.सी. की नाजानकारी में नहीं हो रहा है। पिछले 3 वर्षों में 'दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन' सदस्यों द्वारा श्रम कार्यालय में दर्ज मामलों में यह साबित हो चुका है कि डी.एम.आर.सी. को सब पता है। मज़दूरों की भर्ती के समय इन ठेका कम्पनियों द्वारा 'सिक्योरिटी राशि के नाम पर मोटी रकम वसूल की जाती है ताकि वे हमेशा चुप्पी साधकर सब सहते रहें। लेकिन साथियो, डर कर चुप्पी साधने रहने से भी हमें कुछ नहीं हासिल हुआ है। कोर्इ न कोर्इ नाजायज़ कारण बताकर हमें समय-समय पर निकाल बाहर किया जाता है, या होल्ड पर रख दिया जाता है, ताकि कम्पनियों को हमें स्थायी ;परमानेंट कामगार का दर्जा न देना पड़े। इसलिए डर कर चुप बैठे रहने पर भी तो निकाल दिये जाने की तलवार सिर पर लटकी रहती है! तो क्यों ने लड़कर अपना हक़ हासिल करें? स्वयं डी.एम.आर.सी. श्रम कानूनों का भयंकर उल्लंघन कर रही है। डी.एम.आर.सी. ने टाम, हाउसकीपिंग और सिक्योरिटी में ठेका कर्मचारियों को लगा रखा है, जो कि स्थायी प्रकृति के काम हैं और कानूनन इसमें ठेका मज़दूरी नहीं लगार्इ जा सकती।
ऐसे में, हमें गुलामी की मानसिकता और डर को छोड़कर अपने कानूनी हक़ों के लिए आगे आना होगा। हम ज़्यादा नहीं सिर्फ वह माँग रहे हैं जो इस देश का कानून हमें देता है। लेकिन डी.एम.आर.सी. और ठेका कम्पनियों की मिलीभगत के कारण, वह सबकुछ हड़प लिया जाता है। श्रम कानूनों के इस नग्न, बेशर्म उल्लंघन के खि़लाफ 'दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन के नेतृत्व में 10 जुलार्इ, 2011 को जन्तर-मन्तर पर मेट्रो रेल के सभी ठेका कर्मचारियों द्वारा सैकड़ों की तादाद में विशाल प्रदर्शन किया जा रहा है। धमकियों से न डरें! इस प्रदर्शन में सैकड़ों की संख्या में शामिल हो रहे मेट्रो कर्मचारियों में आप भी शामिल हों, और अपनी एकजुट आवाज़ को बुलन्द करें। यदि आपको डराया जाता है या काम से निकालने की धमकी दी जाती है तो 'दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन से निम्न पफोन नम्बरों पर सम्पर्क करें, पूरी यूनियन आपके साथ है! एकता में ताक़त है! हम किसी और से नहीं, अपने ही डर से हारते हैं! इसलिए डर के आगे बढि़ये! जीत आपका इंतज़ार कर रही है!
दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन और उसकी ठेका कम्पनियों द्वारा श्रम कानूनों के उल्लंघन के खि़लाफ
10 जुलार्इ को जन्तर-मन्तर चलो!
समय: सुबह 11 बजे तारीख़: 10 जुलार्इ, 2011 स्थान: जन्तर-मन्तर
दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन
इसी दुनिया की यही है रीत! संघर्ष करोगे मिलेगी जीत!!
इस बार 1 मई को मजदूर दिवस के दिन मेट्रो रेल के ठेका मजदूरों ने भी जन्तर-मन्तर पर एकजुट हुए हज़ारों मजदूरों के साथ अपने हकों-अधिकारों के लिए आवाज उठाई। सोचने की बात है कि विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र होने का दावा करने वाला देश अपने करोड़ों मजदूरों को संविधान-प्रदत्त श्रम अधिकार भी नहीं देता। आज दिल्ली मेट्रो रेल को ‘‘वर्ल्ड क्लास’’ मेट्रो का दर्जा प्राप्त हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री से लेकर मीडिया तक इसके गुणगान गाते हैं, दिल्ली के खाते-पीते घरों के लोग भी मेट्रो रेल देखते हैं तो फूला नहीं समाते। लेकिन क्या उन्हें पता हैं कि ‘‘वर्ल्ड क्लास’’ मेट्रो रेल को बनाने व चलाने वाले हज़ारों मज़दूरों की जि़न्दगी को मेट्रो प्रशासन और ठेकेदारों ने नरक से भी बदतर बना रखा है?
साथियो, आप सभी को पता होगा कि मेट्रो परिचालन में तीन प्रकार के कामों को ठेका कम्पनियों द्वारा चलाया जाता हैं: टिकेटिंग, सिक्योरिटी और हाउसकीपिंग। हर तरह की मेंटेनेंस सुविधाओं की सेवा उपलब्ध कराने का दावा करने वाली ये ठेका कम्पनियां अपने कर्मचारियों को कोई सुविधा नहीं देती। यूं तो दिल्ली सरकार ने कागजों पर न्यूनतम मजदूरी बढ़ा दी लेकिन मेट्रो में कार्यरत मजदूरों को आज भी न तो न्यूनतम मजदूरी मिलती न ही पीएफ, ईएसआई आदि की सुविधा। दूसरी ओर ठेका कम्पनियों की इस अंधेरगर्दी पर मेट्रो प्रशासन गूंगा-बहरा बना रहता है। असल में, सारे कानूनों को कायदे से लागू करने की जिम्मेदारी मेट्रो-प्रशासन की हैं क्योंकि कानूनन मेट्रो प्रशासन ही सभी ठेका मजदूरों का प्रमुख नियोक्ता हैं। यह कैसा भद्दा मज़ाक है कि ‘‘मेट्रो मैन’’ ई. श्रीधरन अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार-विरोधी नौटंकी में शामिल होते हैं लेकिन मेट्रो में मजदूरों के साथ हो रहे भ्रष्टाचार पर एक शब्द भी नहीं बोलते! ऐसे में साफ हैं कि मेट्रो प्रशासन और ठेका कम्पनियां की मिलीभगत से ही मजदूरों का शोषण और उत्पीड़न हो रहा हैं।
साथियो! मेट्रो प्रशासन और ठेका कम्पनियों की इस तानाशाही का प्रत्यक्ष उदाहरण अभी हाल की घटना हैं जिसमें ट्रिग कम्पनी द्वारा पिछले तीन महीने में 100 से ज्याद टॅाम आपरेटरों (टिकेटिंग व मेंटेनेंस स्टाफ) को बिना किसी कारण काम से बाहर कर दिया गया या फिर कैष में कमी आने पर टाम आपरेटर को बिना चेतावानी दिये ही बाहर कर दिया गया है, जबकि तीन चेतावनियों का नियम है! दोस्तो! टाम आपरेटर, गार्ड्स, और हाउसकीपरों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ हमें आवाज बुलन्द करनी होगी। अगर हम एकजुट होकर अपने हक़ों के लिए लड़ें तो हम निश्चित तौर पर जीतेंगे। अलग-अलग रहकर हम कुछ नहीं कर सकते। लेकिन हम एकजुट होकर संगठित लड़ाई लड़ें तो हज़ारों मेट्रो स्टेशन स्टाफ को कौन हरा सकता है? हम सभी कम्पनियों के तहत काम करने वाले टाम आपरेटरों से भी कहेंगे कि वे संघर्ष में साथ आएँ।
हम मेट्रो प्रशासन के सक्षम निम्न जायज मांगे ररखते हैं-
- अन्यायपूर्ण तरीके से निकाले गऐ टाॅम आॅपरेटरों व अन्य कर्मचारियों को वापस लिया जाए।
- न्यूनतम मजदूरी तथा पेस्लिप के साथ समय पर भुगतान किया जाए।
- हाउसकीपरों, गार्डों और टाम आपरेटरों के लिए सभी श्रम कानूनों को लागू किया जाए तथा कानून का उल्लंघन करने वाली कम्पनियों को दण्डित किया जाए।
- दिल्ली मेट्रो रेल के हर विभाग से ठेका प्रथा ख़त्म की जाए।
इन चार माँगे के साथ हम संघर्ष की नयी शुरूआत करे रहे हैं क्योंकि बिना संघर्ष के कुछ नहीं मिलता। वैसे आप सभी जानते होंगे कि मेट्रो और ठेका कम्पनियों के शोषण और अन्याय के खिलाफ पहले भी ‘दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन’ ने कई संघर्ष लड़े हैं, जिनमें कुछ जीतें भी हासिल हुई। लेकिन अभी-भी ज़्यादातर मजदूरों यूनियन के सदस्य नहीं हैं। साथियो! हमारी असली ताकत हमारी यूनियन है! इसलिए यूनियन के सदस्य बनें और यूनियन की ताकत को मजबूत बनाएँ! उनकी ताक़त सत्ता और धन है, हमारी ताक़त यूनियन है!
दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन
दिल्ली मेट्रो की चकाचौंध के पीछे निर्माण मजदूरों की जिन्दगी में अँधेरा
मेट्रो निर्माण मज़दूरों की नारकीय जीवन स्थितियों की तस्वीर- अगर मज़दूरों के काम की परिस्थितियों की बात की जाये, तो वह दिल दहला देने वाली हैं। मेट्रो के दूसरे चरण में 125 कि.मी लाइन के निर्माण के दौरान 20 हजार से 30 हजार मजदूर दिन-रात काम करते है मज़दूरों से श्रम कानूनों को तोड़ते हुए 12 से 15 घण्टे काम करवाया जाता है। इन्हें न तो न्यूनतम मज़दूरी दी जाती है और कई बार साप्ताहिक छुटटी तक नहीं दी जाती, ई एस आई और पी एफ तो बहुत दूर की बात है। सरकार और मेट्रो प्रशासन ने दिल्ली का चेहरा चमकाने और कामनवेल्थ गेम्स से पहले निर्माण कार्य को पूरा काने के लिए ठेका कम्पनियों को मज़दूरों को जानवरों की तरह निचोड़ने की पूरी छूट दे दी है। मज़दूरों से अमानवीय स्थितियों से काम कराया जाता है। उनकी के लिये सुरक्षा उपायों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। मज़दूरों की जान से खिलवाड़ करते हुए मुनाफा कमाने का यह नंगा खेल लगातार जारी रहता है। इन्हें जो सेफ्टी हेलमेट दिया जाता है वह पत्थर की बात की चोट तक नहीं
रोक सकता। एक हेलमेट के अतिरिक्त इतना ख़तरनाक काम करने के बावजूद उन्हें कुछ नहीं दिया जाता है।बात सिर्फ इतनी ही नहीं है आज मज़दूर ठेकेदारों के रहमोकरम पर इतना निर्भर है वह कम्पनी द्वारा एक ठेकेदार या आगे सब-ठेकेदारों द्वारा रखे जातें हैं, इन ठेकेदार को जोबर भी कहा जाता है वह अपने गांव के लोगों को व्यक्तिगत सम्बन्धों के तौर पर लेकर आता है और उनके गांव की गरीबी का फायदा उठाते हैं। जिनकी गिनती 10 से 100 तक की भी होती हैं। वह खुद उनके रहने का इन्तज़ाम करता है। रहने वाले कमरों में 10 से १५ मज़दूर होते हैं जहां पर न तो साफ हवा, पानी, बिजली, सीवरेज आदि सुविधायें मज़दूरों को उपलब्ध नहीं जो जिन्दगी को ओर अधिक नर्क बना देती हैं, क्योंकि अगर मज़दूर की किसी भी सूरत में अपने हक के लिए बात करता है यानि श्रम कानूनों व सुरक्षा उपायों को लागू करने के लिए तो तुरन्त डीएमआरसी और ठेका कम्पनी उस जोबर को बुलवाकर मज़दरों की आवाज को दबा दिया जाता है या काम से निकलवा दिया जाता है और जोबर मज़दूरों से जगह खाली करवा लेता है । ऐसे में मज़दूर तुरन्त सड़क पर आ जाते हैं। उनके सामने सीधा अस्तित्व का सवाल खड़ा हो जाता है या तो वह इसका सामने करने के लिए खड़ा हो या फिर समझौता कर लें। ज्यादातर ऐसी परिस्थिति मज़दूरों को झुकने के लिए तथा सब कुछ सहन करने के लिए मजबूर कर देती है। मेट्रो प्रशासन तथा ठेका कम्पनी साफ बच निकलती है। मजदूरों की अपनी कोई यूनियन न होने की वजह से वे सीधे ठेकेदार से हक मांगना तो दूर वह कोई सवाल तक नहीं कर पाते। मजदूरों की मज़दूरी का भुगतान और पहचान का सवाल- ठेकेदारों द्वारा काम पर रखे गए मजदूरों में से किसी केा भी कानूनी रूप से तयशुदा न्यूनतम मजदूरी और अन्य सुविधा नहीं दी जाती है। मजदूरों को मिलने वाली मजदूरी में काफी अंतर है क्योंकि ये मजदूरी मनमाने ढ़ग से ठेकेदारों द्वारा तय की गई है मेट्रो रेल में अकुशल मजदूरों को 12 घण्टे के काम के लिए 100 से 140 रुपये प्रतिदिन तक दिये जाते है जबकि कानूनन न्यूनतम वेतन के अनुसार एक अकुशल मजदूर का 12 घण्टे काम के २८४ रुपये मिलने चाहिए। जिसे सापफ है मजदूरों का उनकी न्यूनतम मजदूरी से 150 रुपये कम मिल रहे है । मजदूरों को कोई वेतन पर्ची या भुगतान रसीद भी नहीं दी जाती । इस तरह उनके पास अपने रोजगार या उसकी अवधि का कोई सूबत नहीं होता है। पहचान के नाम पर मजदूरों पास हेलमेट और जैकेट होती है वैसे नाम के लिए ठेका कम्पनियों कुछ मजदूर को पहचान पत्रा देती भी है जो सिपर्फ खानापूर्ति होती है क्योंकि इस कार्ड पर न तो मजदूरों का जॉब नम्बर होता है न ही काम पर नियुक्ती की तिथि होती है दूसरी तरपफ मेट्रो के लिए काम करने वाले निर्माण मजदूरों को डी.एम.आर.सी ने कोई पहचान पत्र नहीं दिया है और वह उन्हें अपना मजदूर तक भी नहीं मानता। जबकि कानूनन मेट्रो के निर्माण से प्रचलन तक में लगे सभी ठेका मजदूरो का प्रमुख नियोक्ता डी.एम.आर.सी है। पारदर्शिता का दावा ठोकने वाली मेट्रो के पहियों और खंभों में न जाने कितने मजदूरों की लाश दफन है। इसका खुलासा अब धीरे-धीरे हो रहा है मेट्रो का चेहरा अंदर से कितना क्रूर है इसकी तस्वीर एक दैनिक अखबार की रिपोर्ट बताती है जिसके अनुसार मेट्रो के दस साल के निर्माण कार्य में 200 से ज्याद मजदूर मारे गए है अब तक हुए मेट्रो हादसे मे जब भी एक से अधिक मजदूरो, कर्मचारियों और लोगों की मौत हुई है तो उस पर हल्ला मचा है। इस हल्ले के शोर को कम करने के लिए मेट्रो ने हर बार मुआवजे की घोषणा की है। लेकिन दूसरी तरफ जब भी किसी अकेले मजदूर,कर्मचारी या राहगीरों की मौत हुई है मेट्रो उससे पल्ला झाड़ने में जुट गया। और इन इक्का-दुक्का मौत पर मुआवजा भी नहीं दिया। जिसका उदाहरण नांगलोई में मजदूरों के मरने की बात हो या मंदिर मार्ग हादसा की घटना है कहीं भी मेट्रो न मुआवजा नहीं दिया। और यही नहीं 22 जुलाई को इंद्रलोक- मुंडका लाइन पर मरे गए मजदूर विक्की की मौत पर भी मेट्रो पल्ला झाड़ता नजर आया। ठेका कम्पनियों के प्रति डी.एम.आर.सी की वापफदारी- दिल्ली मेट्रो के द्वितीय चरण के निर्माण एवं अन्य कार्यों में करीब 215 कम्पनियां शामिल हैं, जिसमें एलिवेटेड लाइन के निर्माण में गेमन इंडिया,एल एंड टी, एफकॅान, आईडीईबी, सिंप्लेक्स कम्पनी लगी हुई है जबकि भूमिगत लाइनों के निर्माण में एफकान, आईटीसीएल, आईटीडी, सेनबो इंजीनियरिगं कम्पनियां लगी हुई हैं इन कम्पनियां का उद्देश्य सिर्फ लाभ कमाना है, सामाजिक जिम्मेदारी से इनका कोई सरोकार नहीं हैं यही वजह है कि मेट्रो की कार्य संस्कृति भी सामाजिक सरोकारों से बहुत दूर हैं तभी तो मजदूर के शरीर पर लांचर गिरे,
पुल टूटकर मजदूर केा दफनाए या जिंदा मजदूर मिटृी में दफन हो जाए लेकिन मेट्रो निर्माण में लगी कम्पनियों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। जिसका उदाहरण लक्ष्मीनगर हादसे की दोषी एफकॅान कम्पनी है क्योकि लक्ष्मीनगर हादसे के बाद डी.एम.आर.सी ने एफकॅान कम्पनी पर 10 लाख का जुर्माना लगाने के साथ ही उसे काली सूची में डाल दिया था लेकिन फिर भी एफकॅान कम्पनी दूसरे चरण के किसी निर्माण कार्य से अलग
नहीं किया गया। कैग रपट के अनुसार मेट्रो प्रशासन की काली करतूतें
1.मेट्रो रेल पुल और लाईन बनाने मे प्रयुक्त सामानेां की गुणवत्ता की जांच अवैध्
प्रयोगशालों मे होती है। जांच के समय डी.एम.आर.सी का अधिकारी भी नहीं रहते
मौजूद।
2. रपट में कहा गया कि डी.एम.आर.सी की सीधी जबावदेही न तो केन्द्र सरकार के
शहरी विकास मंत्रालय के प्रति है और न ही सापफ तौर पर दिल्ली सरकार के प्रति।
दूसरी तरफ डी.एम.आर.सी पर केन्द्र व राज्य की ओर से कोई नियमित निगरानी तंत्रा का
अभाव है
3.समय पर काम पूरा करने के लिए जंाच के नाम पर होती है खानापूर्ति और जांच पूरी
तरह ठेकेदारों के हवाले।
4.लक्ष्मीनगर हादसे की दोषी एफकॅान इंडिया पर 10 लाख का जुर्माना लगाने के साथ
ही उसे काली सूची में डाल दिया था। लेकिन फिर भी एफकॅान को दूसरे चरण के
काम से हटाया ही नहीं गया।
5.मेट्रो ने सरकार से 14 से 354 पफीसद अधिक जमीन ली थी लाइन बिछाने के लिए, लेकिन वहां बना दिये शॅापिंग माल और शोरूम ताकि मुनाफा पिट सके। और एक आरटीआई के जबाव में मेट्रो ने बताया है कि डी.एम.आर.सी एक माह का शुद्ध मुनाफा 17 करोड़ है। डी.एम.आर.सी. और सरकार की हत्यारी नीतियाँ और ठेका कम्पनी की मुनाप़फाख़ोर हवस!
दिल्ली मेट्रो में कार्यरत मज़दूरों की जीवन स्थितियां आज हमें सोचने के लिए मजबूर कर रही है कि देश के 63 साल आजाद होने के बाद भी क्या सचमुच देश की मेहनतकश आबादी आजाद है? अगर वह आजाद है तो 10-12 घण्टे हर रोज मौत के साये तले गुलाम की तरह काम करने के लिए, जिसमें अगर जिन्दा रहा तो उसे पगार मिल जायेगी वरना वे भी काम के दौरान हर रोज देश मे मरने वाले 6000 मजदूरों की गिनती में शामिल हो जायेगें। दूसरी तरफ इन तमाम बेकसूर मेहनतकशों की मौत के जिम्मेदार हत्यारों की न तो गिरफ्तारी होती, न ही सजा मिलती और न ही मजदूरों को इंसाफ मिलता है। जमरूदपुर मेट्रो हादसे की ताज़ा घटना उसी का एक और प्रमाण है। पिछली 12 जुलाई की सुबह दिल्ली के जमरूदपुर इलाव़फे में मेट्रो रेल का बन रहा पुल गिर जाने से 6 मज़दूरों की मौत हो गयी और करीब 20 से 25 मज़दूर घायल हो गये जिनमें से कुछ की हालत गम्भीर है। उस जगह पर काम करने वाले मज़दूरों और उनके सुपरवाइज़र ने मेट्रो प्रशासन और ठेका कम्पनी गैमन को बहुत पहले ही बता दिया था कि इस जगह पर काम करना ख़तरे से ख़ाली नहीं है। पुल के पिलर न0 ६७ में कुछ महीने पहले दरार आ गयी थी जिसके चलते करीब तीन महीने पहले काम रोकना पड़ा था। लेकिन 2010 के कामनवेल्थ गेम्स से पहले मेट्रो रेल का काम पूरा करके वाहवाही लूटने के चक्कर में मेट्रो प्रशासन ने ठेका कम्पनियों को मज़दूरों का शोषण करने, सभी श्रम व़फानूनों का उल्लंघन करने और तमाम सुरक्षा उपायों की
अनदेखी करने की पूरी छूट दे रखी थी। इसीलिए ठेका कम्पनी गैमन इण्डिया ने मेट्रो प्रशासन के इंजीनियरों की जानकारी और इजाज़त से उस दरार की थोड़ी-बहुत मरम्मत करवाकर दो-तीन दिन पहले पिफर से काम शुरू करा दिया। 11 जुलाई की रात भी पुल के टूटने के डर से काम को रोकना पड़ा था। लेकिन मुनाप़फे की हवस में अन्धी कम्पनी ने 12 जुलाई की सुबह 4.30 बजे पिफर से काम शुरू करवा दिया। कुछ ही देर में दरार वाला खम्भा टूट गया और पुल में लगने वाला लोहे का कई सौ टन का लांचर टूटकर गिर पड़ा जिसके नीचे करीब 35 मज़दूर आ गये। इनमें से कुछ ने दुर्घटना स्थल पर ही दम तोड़ दिया और कुछ ने अस्पताल में दम तोड़ा। इस दुर्घटना के तुरन्त बाद दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन के प्रबन्ध निदेशक ई. श्रीधरन ने प्रेस कांफ्रेंस में इस्तीफा देने की घोषण कर दी। जैसाकि तय ही था, शीला दीक्षित की सरकार ने इस्तीफा नामंजूर कर दिया। साफ है कि यह इस्तीफा इस भयंकर दुर्घटना से ध्यान हटाने के लिए की गयी एक नौटंकी था ताकि यह बात ही किनारे हो जाये। ऐसे में यह सोचने की बात है कि इन मौतों का जि़म्मेदार कौन है? इस घटना के अगले ही दिन उसी जगह पर टूटे लांचर को हटाने के लिए लगायी गयी 4 क्रेनें पलट गयीं जिससे पूरा लांचर और ढेरों मलबा पिफर नीचे गिर पड़े। इस दुर्घटना में तीन इंजीनियर और तीन मज़दूर घायल हो गये। कारपोरेट जगत की आँखों के तारे बने श्रीधरन महोदय से पूछा जाना चाहिए कि इन मज़दूरों को ठेका कम्पनियों की मुनाप़फे की हवस के भरोसे छोड़ देने के समय उनकी नैतिकता कहाँ चली गयी थी? इस हादसे के दो दिनों बाद ही 14 जुलाई की सुबह मुम्बई मेट्रो का भी पिलर गिर गया। यहाँ पर भी गैमन इण्डिया काम करवा रही थी। यही वह ठेका कम्पनी है जिसके
द्वारा निर्मित एक फ्लाईओवर पिछले वर्ष हैदराबाद में ध्वस्त हो गया था जिसमें दो लोगों की मौत हो गयी थी। गैमन इण्डिया द्वारा बनाये गये कई ढाँचे पिछले सालों के दौरान क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। इन सबके बावजूद गैमन इण्डिया को हमेशा ‘क्लीन चिट’ मिल गयी। इसी से ठेका कम्पनियों और सरकार में बैठे अधिकारियों के अपवित्रा गठबन्धन के बारे में साप़फ पता चल जाता है। मेट्रो रेल के निर्माण में होने वाली यह पहली दुर्घटना नहीं है। इससे पहले अक्टूबर, 2008 में लक्ष्मीनगर, सितम्बर 2008 में चांदनी चैक और जुलाई 2008 में राममनोहर लोहिया अस्पताल के पास भी मेट्रो निर्माण स्थल पर दुर्घटनाएँ हो चुकी हैं, जिनमें बेगुनाह मज़दूर और नागरिक मारे गये थे। छोटी-छोटी दुर्घटनाओं की तो कोई गिनती ही नहीं है। एक घटना में तो मेट्रो के एक डम्पर ने सोते हुए मज़दूरों पर मिटटी से भरा ट्रक पलट दिया था, जिससे कई मज़दूरों की दबकर मौत हो गयी थी। इन घटनाओं की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इस पूरे निर्माण मे किसी की जिम्मेदारी तय नहीं हैं ठेका कम्पनियां सुरक्षा मानकों का पालन नहीं करती हैं। ऐसे में कोई भी दुर्घटना होने पर सरकार डी.एम.आर.सी पर जिम्मेदारी डालती है,डी.एम.आर.सी ठेकेदार पर और ठेकेदार छोटे ठेकेदार या छोटे कर्मचारी को जिम्मेदार ठहरा कर पल्ला झड़ा देते है। और बलि का बकरा बनता है एक अदना सा कर्मचारी जबकि हकीकत में मूल जिम्मेदारी डी.एम. आर.सी की बनती है क्योंकि डी.एम.आर.सी ही सुरक्षा तंत्रा और ठेका कम्पनियां की
निगरानी के लिए जबावदेह हैं, श्रम कानूनों का यह नंगा उल्लंघन सिर्फ निर्माण मज़दूरों के साथ ही नहीं हो रहा है। मेट्रो में काम करने वाले समस्त ठेका मज़दूरों के श्रम अधिकारों का डी.एम.आर.सी. और ठेका कम्पनियाँ इसी बेशर्मी के साथ मखौल उड़ा रही हैं। कुछ और तथ्यों पर निगाह डालिये। मेट्रो स्टेशनों और डिपो पर काम करने वाले करीब 3000 सफाई कर्मचारी नौ ठेका कम्पनियों के तहत काम कर रहे हैं, जिन्हें 2800 से 3300 रुपये तक तनख़्वाह मिलती है, जबकि कानूनन उनकी तनख़्वाह 5300 रुपये होनी चाहिए। इस पर जब मज़दूरों ने ‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ बनाकर आन्दोलन किया तो आन्दोलन में शामिल मज़दूरों को डी.एम.आर.सी. और ठेका कम्पनियों ने निकालना शुरू कर दिया। जब इससे भी बात नहीं बनी तो दिल्ली प्रशासन के साथ मिलकर डी.एम.आर.सी. ने उन्हें दो दिनों के लिए जेल में भी डलवाया। यह आन्दोलन अभी भी जारी है। इस तरह के सैकड़ों आँकड़े गिनाये जा सकते हैं जिसके ज़रिये डी.एम.आर.सी. और ठेका कम्पनियों द्वारा श्रम व़फानूनों, सुरक्षा उपायों और कार्य-स्थितियों की उपेक्षा का प्रमाण मिलता है। यह कोई अनजाने में होने वाली उपेक्षा नहीं है। इसके पीछे डी.एम.आर.सी. और ठेका कम्पनियों की मुनाफे की हवस और उनका भ्रष्टाचार है। जिसके कारण मेट्रो कामगार संघर्ष समिति ने निर्माण मजदूरों को आन्दोलन में साथ लेते हुए ठेक
मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित और तमाम बड़े नेता और नौकरशाह सामने आ चुके हैं। दूसरी तरफ, यह तथ्य भी सामने आया कि मेट्रो रेल के तमाम निर्माण स्थलों पर सभी श्रम कानूनों और सुरक्षा मानकों का उल्लंघन करते हुए मज़दूरों से काम करवाया जा रहा है। यह कारगुज़ारी अभी भी जारी है। ज्ञात हो कि मेट्रो रेल के निर्माण में लगे लगभग सभी मज़दूर ठेके पर काम कर रहे हैं। इन्हें डी.एम.आर.सी. अपना कर्मचारी तक नहीं मानता
जो कि 1971 के ठेका मज़दूर कानून का सरासर उल्लंघन है। इस कानून के अनुसार ठेके पर काम करने वाले मज़दूरों का भी प्रमुख नियोक्ता काम करवाने वाली कम्पनी या कारपोरेशन ही होगा और न्यूनतम मज़दूरी कानून, ट्रेड यूनियन एक्ट और वर्कमेंस कंपेंसेशन एक्ट जैसे कानूनों को लागू करवाना प्रमुख नियोक्ता की जिम्मेदारी होगी। लेकिन डी.एम.आर.सी. इन मज़दूरों को न कोई पहचान पत्रा देता है और न ही उन्हें
अपना मज़दूर मानता है। इन मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी तक नहीं दी जाती। इनके सुरक्षा के क्या इंतज़ाम किये गये हैं यह तो जमरूदपुरा में हुई दुर्घटना ने दिखला ही दिया। सुरक्षा के नाम पर इन्हें एक प्लास्टिक की टोपी और फ्लुरोसेंट जैकेट दे दिया जाता है जो इन्हें पत्थर की चोट से भी नहीं बचा सकता। जो इन्हें पत्थर की चोट से भी नहीं बचा सकता। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मेट्रो के निर्माण में लगे
मज़दूर अपनी जान पर खेलकर काम कर रहे हैं। डी.एम.आर.सी. ने कामनवेल्थ गेम्स से पहले दूसरे चरण का काम पूरा करवाने के लिए ठेका कम्पनियों को मज़दूरों को निचोड़ डालने की पूरी आज़ादी दे दी है। बिना
डबल ओवरटाइम दिये मज़दूरों से 13-14 घण्टे तक काम करवाया जा रहा है। ज्ञात हो कि कानून सिर्फ़ चार घण्टे के ओवरटाइम की इजाज़त देता है। लेकिन गैमन इण्डिया जैसी कम्पनियां मज़दूरों से गुलामों की तरह 14 घण्टे तक काम करवा रही हैं, जो एक तरह से बेगारी है। न्यूनतम मज़दूरी की आधा मज़दूरी श्रमिकों को दी जा रही है। इस प्रदर्शन के बाद मेट्रो कामगार संघर्ष समिति ने अपना माँगपत्राक सरकार को और
डी.एम.आर.सी. को सौंपा। मेट्रो कामगार संघर्ष समिति ने इस माँगपत्राक में माँग की है कि-
1. जमरूदपुरा में हुई दुर्घटना की उच्चस्तरीय न्यायिक जाँच हो, न कि डी.एम.आर.सी. द्वारा
विभागीय जाँच।
2. दुर्घटना में पीडि़त मज़दूरों और उनके परिवार को डी.एम.आर.सी. भी हरज़ाना दे और
साथ ही परिवार के काम करने योग्य सदस्य को नौकरी भी।
3. गैमन इण्डिया को सरकार तत्काल ब्लैकलिस्ट करे ।
4. जमरूदपुरा की साइट पर काम को जारी रखने की अनुमति देने वाले डी.एम.आर.सी.
अधिकारी को तत्काल बर्खास्त किया जाय, उसके खि़लाफ़ आपराधिक मामला दजऱ् किया
जाय और उसके खि़लाफ़ जाँच करवाई जाय।
5. डी.एम.आर.सी. मेट्रो के निर्माण और प्रचालन में लगे सभी श्रमिकों को श्रम कानून
प्रदत्त सभी अधिकार दे और श्रम कानूनों का उल्लंघन बन्द करे ।
6. मेट्रो में ठेका प्रथा को समाप्त करके सभी मज़दूरों को स्थायी किया जाय।
7. आगे ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए डी.एम.आर.सी. ऐसी प्रणाली बनाए जिसमें
ठेकेदारों और डी.एम.आर.सी. के अधिकारियों के प्रतिनिधित्व के अलावा मज़दूर प्रतिनिधि
और नागरिक प्रतिनिधि भी हों।
मेट्रो कामगार संघर्ष समिति ने डी.एम.आर.सी. को चेतावनी दी कि अगर मेट्रो
प्रशासन मज़दूरों की इन माँगों को नहीं मानता है तो उसके खि़लाफ़ आन्दोलन को और तेज़
किया जाएगा। मज़दूर डी.एम.आर.सी. और ठेका कम्पनियों के अत्याचार के विरुद्ध चुप नहीं
रहेंगे। मेट्रो प्रशासन को इस मामले में कोर्ट में भी घसीटकर लाया जाएगा।
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