सोमवार, 11 जुलाई 2011

दिल्‍ली का बाबू : कपिल सिब्बल का बदला मिजाज




ऐसा लगता है, मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने शिक्षा क्षेत्र में शीर्ष पदों पर नौकरशाहों को नियुक्त न करने के अपने पुराने फैसले को तिलांजलि दे दी है. पिछले साल तक सिब्बल का स्पष्ट रवैया था कि वह शिक्षा विभाग में शीर्ष पदों पर नौकरशाहों की अपेक्षा शिक्षाविदों की नियुक्ति के पक्ष में हैं, लेकिन अब वह अपनी बात से पीछे हटते दिख रहे हैं. 1986 बैच के डिफेंस एकाउंट्‌स सर्विस के अधिकारी अविनाश दीक्षित को केंद्रीय विद्यालय संगठन के आयुक्त के रूप में नियुक्त करने की उनकी अनुशंसा से तो यही लगता है.
सूत्र बताते हैं कि दीक्षित के नाम की अनुशंसा मंत्रालय की चयन समिति ने की थी, जिसका गठन सिब्बल ने किया था. रोचक तथ्य यह है कि यूपीए के पिछले कार्यकाल में जब सिब्बल विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री थे तो दीक्षित उनके निजी सचिव हुआ करते थे और सिब्बल के हृदय परिवर्तन का संभवत: यही राज है. सिब्बल के इस कदम के खिलाफ विरोध के स्वर अब तक सुनाई नहीं पड़े हैं, लेकिन शिक्षा विभाग में शीर्ष पदों पर नौकरशाहों की नियुक्ति के खिलाफ शिक्षाविद पहले से ही सवाल उठाते रहे हैं. अब आगे क्या होता है, इसके लिए प्रतीक्षा करें.

नौकरशाहों पर ऩजर

चंडीगढ़ में प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति पंजाब और हरियाणा राज्य सरकारों के बीच अक्सर विवाद का कारण बनती रही है. अब एक बार फिर ऐसा ही देखने को मिल रहा है. चंडीगढ़ प्रशासन में अपनी हिस्सेदारी को लेकर पंजाब ने विरोध की आवाज बुलंद की है. मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक, चंडीगढ़ का प्रशासन दोनों राज्य मिलकर चलाते हैं, जिसमें साठ प्रतिशत अधिकारियों को पंजाब सरकार नियुक्त करती है, बाकी चालीस प्रतिशत अधिकारियों की नियुक्ति हरियाणा सरकार द्वारा होती है. लेकिन पंजाब के उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल का दावा है कि यह आंकड़ा अभी हरियाणा के पक्ष में है. बादल के मुताबिक, वर्तमान में चंडीगढ़ में कुल 13 प्रशासनिक पदों में से केवल तीन पदों पर ही पंजाब कैडर के अधिकारी काबिज हैं.
एक ओर बादल चंडीगढ़ में पंजाब कैडर के अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर चिंतित हैं तो दूसरी ओर नौकरशाह खुद ऐसा नहीं चाहते. इस केंद्र शासित प्रदेश में घोटालों-घपलों की बढ़ती संख्या के चलते आईएएस अधिकारी इससे बचने की कोशिश में रहते हैं. और तो और, वर्तमान में चंडीगढ़ में प्रतिनियुक्ति पर काम करने वाले अधिकारी भी अपने मूल कैडर में वापस लौटने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं.

विवाद थम नहीं रहा

कर्नाटक में आय से ज्यादा संपत्ति अर्जित करने वाले आईएएस एवं आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ छापों की कार्रवाई को हरी झंडी देने के एक साल बाद लोकायुक्त एन संतोष हेगड़े मुश्किल में हैं. राज्य में एंटी टेररिस्ट स्न्वॉयड के लिए काम कर चुके आईपीएस अधिकारी एच निंबालकर ने बंगलुरू की एक अदालत में हेगड़े के खिलाफ मानहानि का मुकदमा ठोंक दिया है. निंबालकर का आरोप है कि लोकायुक्त ने उनकी पत्नी की संपत्ति को बेनामी संपत्ति मानकर उनके खिलाफ कार्रवाई की थी. इसकी एवज में उन्होंने एक रुपये के हर्जाने का दावा किया है.
सूत्रों के हवाले से मिली खबर के अनुसार, निंबालकर के खिलाफ अपनी कार्रवाई को लेकर हेगड़े पूरी तरह आश्वस्त हैं और अदालत में दर्ज अपील से बेफिक्र हैं. इतना ही नहीं, उनका यह भी मानना है कि सरकारी अधिकारियों को नियुक्ति से पहले अपनी सारी संपत्ति की जानकारी लोकायुक्त कार्यालय एवं राज्य सरकार को देनी चाहिए. इसके पीछे उनकी स्पष्ट सोच है कि सार्वजनिक सेवाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करना एक मुश्किल काम है और इसके लिए ऐसे कदम उठाने ही होंगे. लेकिन हेगड़े की इस सलाह पर राज्य सरकार ने अभी तक अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है.

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