सोमवार, 11 जुलाई 2011

बनते ही उखड़ती हैं सड़कें




मध्य प्रदेश में सड़कें बनने के तुरंत बाद टूटने लगती हैं. यह सिलसिला कांग्रेस और भाजपा, दोनों की सरकारों के दौरान बदस्तूर जारी है. इसका एक बड़ा कारण सरकारी निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार और घपले- घोटाले हैं जिसके कारण निर्माण के गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता है. आरोप है कि अधिकारी केवल सरकारी पैसे खर्च करने और जल्दी-जल्दी निर्माण कार्य पूरा करने पर ही ध्यान देते हैं. इसीलिए मध्य प्रदेश की सरकारी सड़कों के बारे में यह कहावत प्रसिद्ध है कि सड़कें पूरी बनकर तैयार होती नहीं  कि उखड़ने लगती हैं और मरम्मत की मांग करने लगती हैं. मध्य प्रदेश में सड़क, परिवहन यातायात के साधन के रूप में भले ही ज्यादा उपयोगी न हो, राजनीति के लिए सड़क ज़रूर एक भड़काऊ मुद्दा रही हैं.
लोकनिर्माण विभाग के अधिकारियों ने प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत बनाई गई सड़कों के टूट-फूट जाने और उखड़ जाने से परेशान होकर राज्य के संबंधित विभाग ने इन सड़कों की मरम्मत और रखरखाव के लिए सरकार से अतिरिक्त 300 करोड़ रूपयों की मांग की है. सरकार के पास पैसा है नहीं, इसलिए सैकड़ों ग्रामीण सड़कें अपनी दुर्दशा खुद ही बयान कर रही हैं.
2003 के विधानसभा चुनाव में सड़कों की कमी और सड़कों की दुर्दशा को भाजपा ने मुद्दा बनाया था और चुनाव भी जीता. चुनाव जीतने के बाद भाजपा सरकार ने बड़े पैमाने पर गांव और शहरों में सड़कें बनाने का काम शुरू किया और इसका श्रेय लूटने के लिए करोड़ों रूपए विज्ञापनों और प्रचार-प्रसार के लिए खर्च कर दिया. रोज़ 8 किलोमीटर सड़क बनाने का दावा करने वाली सरकार ने कभी यह नहीं देखा कि जल्दी-जल्दी बन रही सड़कों की असली हालत क्या है. पता चला है कि लोकनिर्माण विभाग के अधिकारियों ने प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत बनाई गई सड़कों के टूट-फूट जाने और उखड़ जाने से परेशान होकर राज्य के संबंधित विभाग ने इन सड़कों की मरम्मत और रखरखाव के लिए सरकार से अतिरिक्त 300 करोड़ रूपयों की मांग की है. सरकार के पास पैसा है नहीं, इसलिए सैकड़ों ग्रामीण सड़कें अपनी दुर्दशा खुद ही बयान कर रही हैं.
राज्य में वर्ष 1999-2000 से प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना प्रारंभ हुई थी. पहले चरण में इस योजना के तहत पांच सौ की आबादी के 32 तथा एक हज़ार की आबादी के 173 गांव तथा दूसरे चरण में पांच सौ की आबादी के 199 गांव एवं एक हज़ार की आबादी के 731 गांव सड़कों से जोड़ने का कार्यक्रम बनाया था. इन सड़कों के निर्माण का ठेका भी पांच साल तक मेंटेनेंस योजना में ठेकेदारों को दिया गया था. पहले चरण में 207 सड़कें 207 करोड़ की राशि खर्च कर निर्मित कराई गई थीं और दूसरे चरण में 793 सड़कों के निर्माण पर 638 करोड़ की राशि व्यय की गई थी. अधिकृत सूत्रों ने बताया कि ग्रामीण सड़क योजना में निर्मित लगभग 1100 सड़कों के रख-रखाव का कार्य पांच साल तक तो ठेकेदारों ने किया, मगर बाद में उन्होंने इससे अपने हाथ खींच लिए. रखरखाव के अभाव में पिछले पांच साल से इन सड़कों की मरम्मत पर केंद्र सरकार ने कोई अतिरिक्त फंड रिलीज नहीं किया. यही स्थिति फेस-3 में निर्मित कराई गई 573 सड़कों तथा फेस-4 में निर्मित 743 सड़कों की भी हो गई है.
ग्रामीण सड़कों के मरम्मत कार्य पर पहले चरण में सड़कों पर लगभग 65 करोड़ और दूसरे चरण में 214 करोड़ रुपयों की राशि खर्च होने का अनुमान है.अब हालत यह है कि खराब हालत में पहुंच चुकी ग्रामीण सड़कों के मरम्मत कार्य के लिए पुन: ठेके दिए जाएंगे और इस कार्य में पुराने ठेकेदार फिर से सक्रिय नज़र आएंगे. मतलब वही ढाक के तीन पात वाला किस्सा.

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